Monday 19 July 2021

छंद रचना के नियम भाग 3 :-----द्विगुणित पद पादाकुलक /राधेश्यामी/मत्त सवैया ' (सममात्रिक छंद) ,


     
संरक्षक परम श्रद्धेय प्रो.विश्वंभर शुक्ल जी एवम् सुधी मंच को सादर निवेदित प्रदत्त छंद पर आधारित गीत :-
प्रदत्त छंद - ' द्विगुणित पद पादाकुलक /राधेश्यामी/मत्त सवैया  ' (सममात्रिक छंद). 
विधान - 16,16 =32 मात्रा , आदि में गुरु अनिवार्य. 
यदि आदि में द्विकल के बाद त्रिकल आता है तो एक और त्रिकल रखकर दो चौकल बनते हैं. 
********************************************प्रदत्त छंद पर आधारित गीत :-
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जय-जय जय-जय भारत माता, तव वंदन मैं निशिदिन गाता |
तेरा आँचल भाये  मुझको,  सुख  वैभव  सब  मैं  पा  जाता ||
~
सुंदर रूप अनोखा जग में, गाती  दुनिया  तेरे  गाने |
सबको भाता वेश तुम्हारा, सब गाते हैं नवल तराने ||
तव गुण गाऊँ तुम्हें मनाऊँ, सुंदर जग में अपना नाता |
तेरा आँचल भाये मुझको, सुख वैभव सब मैं पा जाता || 
~
माता वंदन तव अभिनंदन,  सबको चरण-धूलि है  चंदन |
रखना माता ममता सुंदर, कट जायें अब सब छल-छंदन ||
साक्षी  आज  बने  हैं  सुंदर,  नीला  अंबर  धरती  माता |
तेरा आँचल भाये मुझको,  सुख वैभव सब मैं पा जाता ||
~
देना खुशियाँ सबको माता, हम याचक  झोली  फैलाते |
जन्में माता तव चरणों में, हम सब तुझको सदा मनाते ||
भाती शस्य श्यामला मूरत,  रक्षक तुंग हिमालय भाता |
तेरा आँचल भाये मुझको, सुख वैभव सब मैं पा जाता ||
जय-जय जय-जय भारत माता, तव वंदन मैं निशिदिन गाता ||श्यामराव धर्मपुरीकर ।।


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