": बिटिया अल्पायु है"
वर्तिका मन्दिर के पुजारी की पोती है । चार बेटे के बाद जन्मी है । घर आंगन जगमगा उठा। ढोलक की थाप पर पड़ोस की रज्जो चाची के खनकते स्वर में सोहर गीतों से दूर तक अजवाइन हल्दी और सोंठ की खुशबू बिखर गई । तो पता चला कि छट्ठी भी हो गई । बारह दिन में बारसा भी पूरे पारम्परिक ढंग से मनाया गया । सवा महीने में नामकरण के लिए ज्योतिषी जी को बुलाया गया व अक्षर से नाम निकला तो वर्तिका नाम रखा गया । पुकारने का नाम मिला वीरा .... यह कहानी बड़ी नानी याने वीरा की बुआ उसकी पोती श्रद्धा से बता रही है ।
दादी ने ज्योतिषी जी से वीरा के भविष्य क बारे में पूछने पर बताया --- कन्या बड़ी भाग्यवान है । अच्छे घर वर का योग है बस जीवन की अवधि बहुत कम बता रहा है। कुल मिला कर कन्या अल्पायु है।
ये तो हमने ग्रह नक्षत्रों की गणना केआधार पर बताया है । हस्तरेखा विज्ञानी जो ज्योतिषी के बहनोई लगते थे, उन्होंने ने
भी आठ साल की वीरा का हाथ देख कर बताया - कि उसकी जीवन रेखा बहुत छोटी और कटी हुई है ।
अल्पायु योग के कारण दादा दादी की जिद से मात्र तेरह बरस की उम्र में ही गांव के सुसम्पन्न पुरोहित जी के पन्द्रह वर्षीय बेटे नीलमणि से वीरा की शादी कर दी गई।नीलमणि के वृद्ध दादा - दादी की भी उत्कट इच्छा है- कि परपोते का मुंह देख लें तो सोने की सीढ़ी चढ़ कर स्वर्ग जाएंगे । दो साल बाद वीरा का गौना करा दिया गया । वीरा की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी। बाईस की उम्र होते तक वह चार बच्चों की माँ बन गई । लातूर नामक शहर के पास ही वीरा का ससुराल था। दैवयोग से लातूर में महा विनाशकारी भूकंम्प आया । वीरा उस समय अपने दो छोटे बच्चों को साथ लेकर रक्षाबन्धन पर्व पर अपने भाइयों को राखी बांधने पीहर आई हुई थी । इधर भूकंम्प में उसके ससुराल में पूरा गांव का गांव जमीन के अंदर धंस गया । घर मकान परिवार वाले कोई भी नहीं बच पाये।
वीरा की दुनियां ही उजड़ गई । उसे सामान्य होने में चार साल लगे ।धन्नो बुआ की एक ही बेटी है शादी के बाद से ससुराल चली गई है ।बुआ के पास खाने पहनने की कमी नही है।अकेली रहती हैं भाई से कहकर वीरा को अपने पास ले आई । वक्त गुजरा ,माहौल बदला , अब उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता होने लगी। उसे ये बात समझ मे आने लगी कि माँ बाप के जीवित रहते तक ही मायके में पूछ-परख रहती है । वह भाइयों पर बोझ नही बनना चाहती है। बुआ के घर किराये में स्कूल की मेडम रहती है । उसने वीरा को सर्वशिक्षा अभियान से जोड़ा ,वयस्क शिक्षा के बारे में बताया । उसने बड़ी मेहनत से पढ़ाई की ।
मेडम के मार्गदर्शन में दसवीं ,बारहवीं की परीक्षा पास कर ली अब तो उसके दोनों बेटे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। उसे आंगनबाड़ी में ग्राम सहायिका की नौकरी मिल गई । बुआ ने आसरा दिया । शिक्षाऔर नौकरी ने आत्मविश्वास दिया । पिता ने दो एकड़ खेती बेटी के नाम कर दी । जब वीरा के बेटे भी कमाने लगे तो सही उम्र में उनकी शादी करवा दिया गया।
ज्योतिषी जिसे अल्पायु बताया करते थे। अब वही वीरा 65 साल की दादी बन गई है। वह समाजसेवा से जुड़ कर सेवा और सहायता का ऋण उतार रही है ।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 11, 7, 2021
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शीर्षक -ये तू तू -मैं मैं क्यों?
पति देव तो बड़े अक्खड़ मिजाज के हैं। मेरी तो कुछ सुनते ही नहीं ----- ऐसा बड़बड़ाते पुष्पा अपने बहते हुए आंसू पोंछती हुई, घर के बाकी काम जल्दी जल्दी निपटाने लगी इनकी इसी आदत से समझौता करके जिंदगी गुजारनी होगी। मैं घर में अशान्ति नहीं चाहती, क्या करूँ ??? ऐसा सोच ही रही थी इतने में दरवाजे की घन्टी बजी तो देखा उसकी सहेली अलका मुस्कुराती खड़ी है ।
पुष्पा -अरे अंदर आएगी ... कि बाहर ही खड़ी रहेगी ?
अलका -- ऐसी रोनी सूरत बना के बुलाएगी तो भीतर कैसे आऊं ? थोड़ा मुस्कुरा के गले तो लगा।
दोंनो एक दूसरे से गले गकर साथ साथ सोफे पर बैठी। फिर पूछा --.अब बता तेरा मूड क्यों उखड़ा हुआ है ?
पुष्पा -- अरे क्या बताऊँ?? वही बढ़ते बच्चों की परेशानी ,पति का तुगलकी फरमान ,असहयोग , शांति से कोई बात न सुनना न समझना .... मैं अकेली क्या क्या करूँ ? समझ ही नहीं आता।
अलका-- वाकई तुझे देखकर ऐसा लगता है ,कि कहाँ फँस गई मेरी बेस्ट फ्रेंड कालेज के जमाने की *सावन क्वीन* पढ़ाई ,नृत्य, गीत में अव्वल रहने वाली *यथा नाम तथा गुण* तेरे चेहरे पर फूलों सी मुस्कान सदा खिली रहती ।
पुष्पा -- बस बस अब उन दिनों की याद मत दिला, वो तो जीवन का गुजरा हुआ अध्याय है। जिसे वापस नहीं लाया जा सकता । अब तो हमे सोचना है कि जिंदगी की इस अध्याय को कैसे खुशरंग बनाया जाए ।
अलका-- ये अच्छा हुआ कि तेरा -मेरा
ससुराल एक ही शहर में हैं ,तो जब मन हुआ एक दूसरे से मिल कर दिल की बातें कर लेते हैं।यार मैं तुझे इस बात की दाद देती हूँ कि हर परिस्थिति के तू खुद को ढाल लेती है । मुझमे तो इतना धैर्य नहीं है ।
अब ये भी तो बता दे कि - मैं आई तब तू किस बात से इतनी अपसेट थी .....
पुष्पा -- मैं चाहती हूं कि बच्चों के भविष्य के बारे में हम दोनों आपसी मतभेद और अहम के घेरे से निकल कर गम्भीरता से सोचें, विचारविमर्श करें इसके लिए मैं अपने पतिदेव से जब भी बात करना चाहती हूं वे समय ही नहीं देते ।आफिस जाने से पहले नाश्ते के बाद कुछ कहना चाहती हूं ,तब कहते हैं अभी नहीं, शाम को चाय के बाद कहूँ , कहते है अभी नही , डिनर केबादभी नहीं। छुट्टी के दिन कहते है हफ्ते भर में आज तो आराम का दिन है ,आज तो कतई नही -- तो कब कहूँ इनसे ?
मेरी समस्या, मेरी परेशानी को सुनने समझने के लिए कभी वक्त ही नहीं मिला इन्हें। अब बच्चों के लिए भी वही रुख अपना रहे हैं।
अबतो पानी सिर से ऊपर निकला जा रहा है।
मैं सोचती हूँ ,कि कोई भी मसला पति- पत्नी शांति से बैठ का सुलझा सकते हैं। उसके लिए तू तू - मैं मैं करना ऊंची आवाज में बोलना जरूरी नहीं है ।थोड़े दिन की जिंदगी को आपस मे मिल जुल कर हंसी खुशी से गुजारा जा सकता है।
अलका बोली--लेकिन अब अपना रौद्र रूप दिखाना ही पड़ेगा --तभी काम बनेगा ???????
पुष्पा के पति किसी काम से घर आये थे उन्होंने उनकी अधिकांश बातें सुन ली और उन्हे अपनी गलती का एहसास हुआ । दोनो सहेलियां अपनी बातों में इतनी मशगूल थी कि उन्हें पता ही नहीं चला -------
फिर उन्हें तू तू -मैं मैं की जरूरत नहीं पड़ी ।.....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 11 ,6, 2021
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"गृहप्रवेश समारोह"
शुभम और शिशिर अमेरिका से आये हैं।अपने चाचा के घर रायपुर में रुके हैं। इस सन्डे उन्हें कार में तीन घण्टे का सफर करके डोंगरगढ़ के पास ही देवकट्टा गाँव में नानी के घर जाना है । वहाँ उनके ममेरे भाई की पत्नी यानी कज़िन सिस्टर इन लॉ का होम एंट्रेस सेरेमनीै है। याने कि "गृहप्रवेश समारोह" होने वाला है।
नानी ने बताया कि -- दोनो भाइयों को भारतीय परम्पराओं ,रीति रिवाजों को जानने देखने,समझने में बहुत ज्यादा रुचि है। वे बचपन में अपनी नानी - दादी के संरक्षण में पले हैं । उनकी माम् और डैड दोनो डॉक्टर हैं ।उनके पास भले ज्यादा समय तो नहीं होता था ।पर इस बात का ध्यान रखा गया कि बच्चों को नानी -दादी का संरक्षण और मार्ग दर्शन मिले ।
जब शिशिर और शुभम छोटे थे , तब उनकी नानी और दादी बारी बारी से उनके घर अमेरिका जाया करते रहें हैं । हिंदी ही बोली जाती है। इन बुजुर्गों के की देख रेख में ये बड़े हुए। गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, जन्माष्टमी,होली, दिवाली रक्षाबंधन ये वहां के भारतीय परिवारों के साथ मंदिर में मनाया करते हैं। ये लोग u s में आपस मे हिंदी बोलते हैं।
यहां पर नानी के घर में बड़ी गहमा -गहमी है। लोगों का आना जाना लगा हुआ है । बारात पहुंचने मेंअभी कुछ देर है दोनो भाइयों को भारतीय रीतिरिवाज के बारे में जानने की ललक है।
पंडित जी आ चुके हैं। बारात आने में शायद पौना घण्टा लगे। नानी ने दोनों भाइयों को पंडित जी के पास बैठा दिया। उन्होंने पंडित जी को प्रणाम किया और
पूछा --- पंडित जी हम जानना चाहते हैं कि--- गृह प्रवेश क्यों होता है??
पण्डित जी बोले --- गृह प्रवेश दो तरह का होता है । पहला नए बने मकान में पुराने व्यक्तियों का प्रथम प्रवेश ।
दूसरा -- पुराने मकान में नए व्यक्तियों का प्रवेश । (जैसे नव वधू या दामाद के रूप में प्रथम आगमन) नए रिश्ते में बंधे व्यक्ति का प्रवेश ।
यह जीवन ऊर्जा को उन्नत बनाने की प्रक्रिया है। शादी का मतलब सिर्फ स्त्री पुरुष का रोमांस नही हैं।
यह दो व्यक्तियों के साथ दो परिवारों का जीवनभर के लिये सुख दुख में साथ बने रहने का गठबंधन है। सही मुहूर्त में हँसी खुशी के माहौल में नई ऊर्जा के साथ उत्साह उमंग से पूरित आनंदित मन से घर के भीतर के भीतर कदम रखा जाता है। मन में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव और मंगल कामना की जाती है - कि यह स्थान हमार लिए मंगल कारी हो । यहाँ रहते हुए हम फूलें फलें, हर तरह से समृद्ध बनें, सुख शांति मिले। घर को स्वच्छ और पवित्र करके वेद मंत्रों द्वारा प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है।
-- --- ऐसा नहीं करने से क्या नुक्सान होता है पण्डित जी ??
यह प्राक्रिया वैसे ही है जैसे धरती में पौधा लगाना मिट्टी पर्याप्त समृद्ध और उपजाऊ हो, पर्याप्त जलसींचन की व्यवस्था हो , हानिकारक कीटों और पशुओं से सुरक्षा हो ।
मुझे अफसोस है , बच्चों कि जिस तरह की रुचि और जिज्ञासा तुम्हारे मन में अपनी भारतीय संस्कृति को जानने समझने की है ....वैसी प्रवृत्ति आज तक इस देश के युवाओं ,बड़े बुज़ुर्गों के मन हो ,ऐसा मैंने महसूस नहीं किया है ???
पिछले आठ नौ सौ सालों से यही सब इस देश के लोग भुलाते जा रहें हैं। इसीलिए हमारी पीढ़ी उत्तरोत्तर मतिहीन, गतिहीन, चिन्तनहीन, कर्तव्य विमुख, उत्साहहीन,उदासीन होती जा रही है
ये वे परम्पराएं हैं, जो जीवन दर्शन का भंडार समेटे हुये हैं ।जिसने आत्मज्ञानियों की लम्बी कतार पैदा की है ।
हम क्या खाते हैं, कया सोचते है कहां रहते है,इसके आधार पर असाधारण बुध्दि वाले अत्यंत ऊर्जावान पीढ़ी की फौज तैयार कर सकते हैं ।
इनके भीतर गहन ज्ञान और विज्ञान भरा है । जो व्यक्ति की पूरी क्षमता को विकसित करती है। उनकी सफलता की सोच व्यापक होती है ,उन्हें संसारिक रूप से समृद्ध और समाज में सम्मानित होने लायक बनाता है ।
हमारे पर्व त्यौहार ,रीति रिवाज समय समय पर हमारे भीतर नई ऊर्जा,नया उत्साह और ताजगी भरते हैं।,हमे रिचार्ज करते रहते हैं ।रिश्तों को मजबूती देते हैं ।
अच्छा बच्चों बारात आ गई है ।कार्यक्रम शुरू होने वाला है ।मुझे जाना होगा ।आप लोगों को भारतीय परम्परा,रीति रिवाज की जो जानकारी चाहिए तो मुझे फोन करके पूछ लेना मैं जरूर बताऊंगा .......
उन्होंने नववधू का स्वागत सत्कार देखा, आरती तिलक के बाद कुमकुम घुले रंग से दरवाजे पर नववधू की हथेलियों के छाप लगवाए गए , कुम कुम घुले जल भरे परात में
मे पांव रख उन्हें घर के भीतर कदम रखते हुए भीतर जाने कहा गया । दूर तक उनके शुभ पद चिन्ह बनते गए ।जो गृह लक्ष्मी बन हर तरह से इस घर की समृद्धि में भागीदारी निभाती रहेंगी । मन के भाव से प्रेरित हमारे कर्म होते हैं। कर्म से हमारा जीवन संचालित होता है ------
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
17, 7 ,2021
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शीर्षक ---- "हमारा पहिचान पत्र अभिवादन
कान्वेंट स्कूल में दसवीं में पढ़ने वाले दो मित्र शाश्वत शुक्ला और निमेष वर्मा शाम को कॉफी हाऊस की ओर जा रहे थे ।उन्हें सामने से म्यूज़िक टीचर भवानंद शास्त्री आते हुए दिखाई दिए तो शाश्वत ने कहा - अब इसको नमस्ते करना पड़ेगा।चल अपन उस गली में चलते हैं
ऐसे ही एक दिन पड़ोस के त्रिपाठी अंकल उन्हें देखते हुए बगल से गुजर गए ,पर निमेष आरव और सुदीप एक दूसरे से बात करते हुए जानबूझ कर उन्हें इग्नोर किया । ऐसी घटना प्रायः कई लोगों के साथ घटती है कि सुशिक्षित, सभ्य घर के अच्छे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बड़े बुजुर्गों, शिक्षकों का अनादर करके ,रास्ता बदल के,उन्हें बिना अभिवादन किये निकल जाते हैं ।
दरअसल अभिवादन करने के तरीके से व्यक्ति का संस्कार, परवरिश,शिक्षा,पास-पड़ोस के माहौल का पता चल
जाता है । दिन में पहली बार जब भी हम किसी से मिलते हैं तो एक दूसरे अभिवादन जरूर करना चाहिए ।
यह प्रथा विश्व के हर देश मे,हर जाति,हरधर्म,हर सम्प्रदाय, हर भाषा ,हर क्षेत्र में है। सबका तरीका अलग अलग है, लेकिन मकसद एक ही है । परस्पर एक दूसरे का स्वागत और सम्मान करना ,आपसी संवाद की शुभ शुरुआत करना । अभिवादन आपसी परिचय की डोर थाम कर आपसी रिश्ते जोड़ता है ।
प्रायः सभी परिवारों में शैशवकाल से ही बच्चों को अपनी परम्परा के अनुसार अभिवादन करना सिखाया जाता है। अभिवादन के लिए न समय का बंधन है,न रिश्ते का,न पद का, न उम्र का , न हैसीयत का । कोई भी ,कभी भी, किसी का अभिवादन कर सकता है।
एक दिन मेरी नौ वर्षीया पोती आस्था ने अपनी मम्मी से पूछ लिया -- मम्मा मुझे कल असेम्बली में प्रेयर के बाद " नमस्ते और हेलो " के बारे में बोलना है । आप बताइए न मैं क्या बोलूं ??
मम्मी -- मुझे अभी काम है, जाओ अपने पापाजी से पूछ लो।
पापा जी उसेे पड़ोस की केंद्रीय विद्यालय की पास भेज दिया। उन्होंने कहा - बेटा अभी मुझे मैं कुछ जरूरी काम से बाहर जा रही हूं कल आना । इस तरह आस्था मन्दिर के पुजारी से लेकर अनेक लोगों से पूछा ,पर सब एक दूसरे पर टालते रहे। किसी ने सन्तोष जनक उत्तर नहीं दिया । वह मन्दिर के बाहर बेंच में बैठ गई और सुबकने लगी । वहीं बैठी एक बुजुर्ग महिला ने उससे रोने का कारण पूछा - दादी जी मुझे कल नमस्ते के बारे में बोलना है और कोई ठीक से नहीं बता रहा है .....
उस दादी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ---चलो मैं बताती हूँ --कॉपी पेन लाई हो ??तो लिखो ----
जब हम किसी से मिलते हैं ,तो बातचीत करने से पहले ईश्वर का नाम लेते हैं , या उसके लिए शुभता की भावना प्रकट करते हुए बातचीत की शुरुआत करते है -- जैसे नमस्ते, जै राम नमस्कार, प्रणाम,चरण स्पर्श,ऐसा कहते हुये मन ही मन उसे सम्मान देते हैं ।
जय श्री कृष्ण,राधे राधे, जय माता दी ,जय ईशू,, आदि, सिक्ख लोग -- सत श्री अकाल (काल के बंधन से ऊपर ईश्वर ही सत्य है)। मुस्लिम लोग--अस्सलाम वा अल्लयेकुम (खुदा तुम्हें सलामत रखे ) प्रत्युत्तर में कहा जाता है - वा अल्लएकुम अस्सलाम(तुम्हें भी खुदा सलामत रखे )
नमः + ते --नमस्ते ( उसे नमन याने हमारे भीतर परमात्मा का अंश आत्मा है ,उसे नमन) नमः + कार --नमस्कार ( कार्य को नमन --कर्म ही पूजा है ) इसी तरह सभी अभिवादन प्रभु और बड़ों के प्रति सम्मान, प्रेम ,लगाव दर्शाता है । सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करता है। सुप्रभात,शुभ संध्या, शुभ रात्रि, में भी यही ध्वनित होता है ।
बस अंत मे इतना ही कहूंगी --- हम अपनी प्राचीन परम्पराओं की वैज्ञानिकता को समझने का प्रयास करें उन्हें अपनाएं जो नैतिक पतन से हमे उबरेगा ,विनम्र बनाएगा, चरण स्पर्श , झुक कर प्रणाम करने से श्रद्धा और दुआ का हस्तांतरण होता है - स्पर्श चिकित्सा पद्धति का उद्गम यहीँ से हुआ था । नमन से बड़ों का सम्मान भाव विकसित होगा ।
अभवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारितस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलं
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 25 , 7 ,2021
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शीर्षक --" नामकरण वंदिता का "
सौम्या आलोक की बेटी आज 40 दिन की हो गई आज उसका नामकरण संस्कार किया जा रहा है । खुशी का माहौल है ।सभी मित्र और परिचितों को आमंत्रित किया गया है ।
मित्र अंशुल ने पूछा - यार तेरी बेटी का नामकरण उसके पैदा होने के पहले ही कर चुके हो ।फिर यह आयोजन क्यों?
आलोक- उस समय मेरी माँ यहां नहीं थी । अब वो आ गयी है। हमारी इच्छा है ,कि भारतीय तरीके से सभी मित्रों की उपस्थिति में उसका नामकरण कार्यक्रम हो । ताकि हम और हमारे बच्चे अपनी परम्परा और रीति रिवाजों को देखें ,जानें, और समझें।
रचना -- ठीक किया आलोक। हम तो भारत के महानगरों में पले बढ़ें हैं । हमे भी इसके बारे क़ुछ नहीं पता।
हवन की तैयारी हो चुकी है सारे लोग हॉल में यथा स्थान बैठ चुके हैं। तभी 12वर्षीय साहिल ने पूछा - नाम करण क्यों होता है ?? दादी ने कहा -गुड क्वेश्चन -- अगर किसी का कोई नाम न हो तो हम उसे पुकारेंगे कैसे ?? जहाँ बहुत सारे लोग उपस्थित हों तो किसी काम मे लिए कैसे बुलाएंगे ? उसे इशारों से भी कैसे पता चलेगा कि उसे ही जाना है ?
न+आम - नाम अर्थात जो आम या सामान्य न होकर खास हो ,औरों से अलग हो । जब एक उम्र ,एक रंग ,एक जाति के बहुत से लोग हों,तो उन्हें नाम से ही पहचान सकते हैं।एक नाम के एक से अधिक हो सकते हैं ,पर ज्यादा नहीँ । तब उन्हें उनके उपनाम या पिता के नाम से भी पहचान सकते हैं । नाम हर व्यक्ति को समूह से एक अलग पहिचान देता है ।
जब नाम नहीँ पता होता तो उसके कपड़ों के रंग उसके अपने रंग , रूप ,ऊंचाई , मोटाई से बुलाया जा सकता है जैसे :- लम्बू ,छोटू,कालू , मोटू भुरू ,आदि । पर ऐसे सम्बोधन उन्हें पसंद नहीं आते । इसीलिए माता पिता बच्चों को अच्छा सा नाम देते हैं । यह नाम उसे अन्य लोगों से अलग पहचान देती है ।
सुवर्णा -- दादी नाम कुछ भी रखा जा सकता है न ? फिर कैसे पता चलता है, कि कोई नाम अच्छा या बुरा है ?
हर माता - पिता का चाहते हैं कि उसका बच्चा अच्छे काम करे ,अच्छा व्यक्ति बने ,सब उसको प्यार करें ,सब उसे सम्मान दें । इसीलिए प्रसिद्ध व्यक्ति ,प्रसिद्ध स्थान,गुणवान, चरित्रवान लोगों के नाम पर अपने बच्चों का नाम रखते हैं। कुछ लोग साहित्यिक ,कुछ धार्मिक नाम रखते हैं ।
हर शब्द का अर्थ होता है।शब्द अगर शरीर है तो अर्थ उसकी आत्मा होती है । अतः अच्छे अर्थ वाले शब्दों को ही नाम के लिए चयन करना चाहिये । गप्पू,टप्पू, मल्लू ,टिल्लू, बल्लू कल्लो, कचरा,काना,लूला , घसिया , घोंचू, लल्लू, जैसे निरर्थक नाम नहीं रखना चाहिये ।
सार्थक नाम से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं यदि नाम सुंदर,सहज, सरल मोहक और सार्थक हो तो बोलनेऔर सुनने वालों को अच्छा लगता है। हर माता -पिता चाहते हैं कि उनकी संतान आगे चलकर उनके कुल परिवार का नाम रोशन करने वाला बने , उन्हें अपनी सन्तान पर गर्व हो ।उनका बच्चा विशिष्ट व्यक्तित्व का स्वामी बने । तो बहुत सोच समझ कर उसका नाम रखें ।उसे उसके नाम का अर्थ बताइये।
नाम से व्यक्ति को भीड़ से अलग पहिचान मिलती है । और व्यक्ति से नाम की आन और शान बढ़ती है।
नाम अगर अपनी मातृ भाषा, अपनी संस्कृति,अपने परिवेश के अनुकूल हो तो बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता हैं । नाम का अर्थ उसके अन्तः करण को उद्वेलित करता है।उसे अच्छे कर्म करने को प्रेरित करता है।
नामकरण की हर जाति ,धर्म , क्षेत्र ,और देश में अलग अलग परम्परा है ।कहीं घर के बड़े बुजुर्ग ,कहीं पुजारी कहीं माता पिता बच्चे का नामकरण करते हैं। पहले के जमाने में देवी -देवता के नाम पर बच्चों के नाम होते थे ताकि बच्चे को पुकारते थे तो भगवान को याद कर लेते थे।,कुछ लोग सिनेमा /टी वी सीरीयल के पसंदीदा किरदारों के नाम रखते हैं,कुछ राजा महाराजा के जैसे बने यह सोच कर नाम रखते हैं, आजकल गूगल से सर्च करकेलेटेस्ट,यूनीक,मार्डन नाम रखने का प्रचलन बढ़ा है।
किसी पौधे की डाल काट कर दूसरी मिट्टी में रोप देने से ऊंचीवहाँ उसके जड़ पकड़ने की संभावना कम होती है ।यदि जड़ निकल भी गई तो पौधा दीर्घजीवी नहीं होता, अच्छी तरह से फलता फूलता नहीं ।
यदि हर माता-पिता चाहते हों कि उनका बच्चा आम या सामान्य न होकर खास व्यक्तित्व वाला हो ,तो उसका नाम भी विशिष्ट हो।ऊंची सोच रखें दूरदर्शिता से कामलें।
जैसी सोच वैसा प्रभाव ।जैसा बीज वैसी पौध । आज भी लोग रावण,कैकयी, मन्थरा,कंस सूर्पनखा नाम इसीलिए नहीं रखते हैं। नाम का मनोवैज्ञानिक प्रभाव मन मे गुंजित होता रहता है ।
अंत में हवन पूजन के बाद फ़ूलों से सजी एक थाली में अक्षत चिपका कर " वन्दिता" लिखकर उसपर लाल चुन्नी ढंककर रखा गया था । बच्चे को माता की गोद मे देकर अक्षत कुमकुम से पूजित करके दादी के द्वारा चुन्नी हटा कर नाम की घोषणा हुई । सबने ताली बजाकर हर्ष प्रगट किया । बच्ची को शुभकामना,आशीष दिया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि . 31 ,07 ,2021
सके
[30/07, 21:12] Chandrawati: " नाम कारण नायरा का "
सौम्याऔर आलोक की बेटी आज 40 दिन की हो गई आज उसका नामकरण संस्कार किया जा रहा है । खुशी का माहौल है ।सभी मित्र और परिचितो को आमंत्रित किया गया है ।
मित्र अंशुल ने पूछा - यार तेरी बेटी का नामकरण उसके पैदा होने के पहले ही कर चुके हो ।फिर यह आयोजन क्यों?
निशांत - उस समय मेरी माँ यहां नहीं थी । अब वो आ गयी
है।भारतीय तरीके से सभी मित्रों की उपस्थिति में उसका नामकरण कार्यक्रम हो । ताकि हम और हमारे बच्चे अपनी परम्परा और रीति रिवाजों को देखें ,जानें, और समझें। ।
रचना -- ठीक किया निशांत हम तो भारत के महानगरों में पले
बढ़ें हैं । हमे भी इसके बारे क़ुछ नहीं पता।
हवन की तैयारी हो चुकी है सारे लोग हॉल में यथा स्थान बैठ चुके हैं। तभी 12वर्षीय साहिल ने पूछा - नाम करण क्यों होता है ?? दादी ने कहा -गुड़ क्वेश्चन -- अगर किसी का कोई नाम न हो तो हम उसे पुकारेंगे कैसे ?? जहाँ बहुत सारे लोग उपस्थित हों तो किसी काम मे लिए कैसे बुलाएंगे ? उसे इशारों से भी कैसे पता चलेगा कि उसे ही जाना है ?
न+आम - नाम अर्थात जो आम या सामान्य न होकर खास हो ,औरों से अलग हो । जब एक उम्र ,एक रंग ,एक जाति के बहुत से लोग हो तो उन्हें नाम से ही पहचान सकते हैं।एक नाम के एक से अधिक हो सकते हैं पर ज्यादा नहीँ ।उन्हें उनके उपनाम या पिता के नाम से भी पहचान सकते हैं नाम हर व्यक्ति को ए के अलग पहिचान देता है ।
जब नाम नहीँ पता होता तो उसके कपड़ों के रंग उसके अपने रंग , रूप ,ऊंचाई , मोटाई से बुलाया जा सकता है जैसे :- लम्बू ,छोटू,कालू , मोटू भुरू ,आदि । पर ऐसे सम्बोधन उन्हें पसंद नहीं आते । इसीलिए माता पिता बच्चों को अच्छा सा नाम देते हैं । यह नाम उसे अन्य लोगों से अलग पहचान देती है ।
सुवर्णा -- दादी नाम कुछ भी रखा जा सकता है न ? फिर कैसे पता चलता है, कि कोई नाम अच्छा या बुरा है ?
हर माता - पिता का चाहते हैं कि उसका बच्चा अच्छे काम करे ,अच्छा व्यक्ति बने ,सब उसको प्यार करें ,सब उसे सम्मान दें । इसीलिए प्रसिद्ध व्यक्ति ,प्रसिद्ध स्थान,गुणवान, चरित्रवान लोगों के नाम पर अपने बच्चों का नाम रखते हैं।
हर शब्द का अर्थ होता है।शब्द अगर शरीर है तो अर्थ उसकी आत्मा होती है । अतः अच्छे अर्थ वाले शब्दों को ही नाम के लिए चयन करना चाहिये । गप्पू,टप्पू, मल्लू ,टिल्लू, बल्लू कल्लो, कचरा,काना,लूला , घसिया , घोंचू, लल्लू, जैसे निरर्थक नाम नहीं रखना चाहिये ।
सार्थक नाम से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं।
[30/07, 21:56] Chandrawati: यदि नाम सुंदर,सहज, सरल मोहक और सार्थक हो तो बोलनेऔर सुनने वालों को अच्छा लगता है। हर माता -पिता चाहते हैं कि उनकी संतान आगे चलकर उनके कुल परिवार का नाम रोशन करने वाला बने , उन्हें अपनी सन्तान पर गर्व हो ।उनका बच्चा विशिष्ट व्यक्तित्व का स्वामी बने । तो बहुत सोच समझ कर उसका नाम रखें ।उसे उसके नाम का अर्थ बताइये।
नाम से व्यक्ति को भीड़ से अलग पहिचान मिलती है । और व्यक्ति से नाम की आन और शान बढ़ती है।
नाम अगर अपनी मातृ भाषा, अपनी संस्कृति,अपने परिवेश के अनुकूल हो तो बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता हैं । नाम का अर्थ उसके अन्तः करण को उद्वेलित करता है।उसे अच्छे कर्म करने को प्रेरित करता है।
नामकरण की हर जाति ,धर्म में हर क्षेत्र ,और देश में अलग अलग परम्परा है ।कहीं घर के बड़े बुजुर्ग ,कहीं पुजारी
कहीं माता पिता बच्चे का नामकरण करते हैं। पहले के जमाने में देवी -देवता के नाम पर बच्चों के नाम होते थे ताकि बच्चे को पुकारते तो भगवान को याद कर लेते ,कुछ लोग सिनेमा /टी वी सीरीयल के पसंदीदा किरदारों के नाम रखते हैं,कुछ राजा महाराजा के जैसे बने यह सोच कर नाम रखते हैं, आजकल गूगल से सर्च करके लेटेस्ट,यूनीक,मार्डन नाम रखने का प्रचलन बढ़ा है।
[30/07, 22:25] Chandrawati: किसी पौधे की डाल काट कर दूसरी मिट्टी में रोप देने से वहाँ उसके जड़ पकड़ने की संभावना कम होती है ।यदि जड़ निकल भी गई तो वह दीर्घजीवी नहीं होता, अच्छी तरह से फलता फूलता नहीं ।
आज भी लोग रावण,कैकयी, मन्थरा,कंस सूर्पनखा नाम क्यों नहीं रखते ? नाम का मनोवैज्ञानिक प्रभाव मन मे गुंजित होता रहता है ।
हवन पूजन के बाद फ़ूलोंसे सजी एक थाली में अक्षत चिपका कर " वन्दिता" लिखकर उसपर लाल चुन्नी ढंककर रखा गया था । बच्चे को माता की गोद मे देकर अक्षत कुमकुम से पूजित करके दादी के द्वारा चुन्नी हटा कर नाम की घोषणा हुई । सबने ताली बजाकर हर्ष प्रगट किया । बच्ची को शुभकामना,आशीष दिया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि . 31 ,07 ,2021
मायके से विदा होकर बैंड बाजा बारातियों के साथ दुल्हन बनी वसुधा पिया के घर पहुंची । घर के दरवाजे पर सास आरती की थाल लिए खड़ी हैं । मंगल गीत की ध्वनि से वातावरण खुशनुमा है । वर वधू की आरती उतारी गई मंगल तिलक लगाया गया। बलइयां ली गई न्योछावर डाले गए ।
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