Sunday 9 September 2018

हरिगीतिका -क्रमांक --8

1              दहलीज से दूरी बढ़ी पग नापती बढ़ती रही
        मन मे लिये सपने चली ,नभ में उड़ी वह भी सही।
   मैं "से निकल वह "हम" बनी, तो आसमा सी हो गई
        ममता भरी गंगा बही, जग तारिणी वह बन गई ।

2      भगवान हो जायें सभी, मन में अगर सबके लिये
           सद्भावना मन मे रखें,दीपक बने सबके लिये।
       मन से बने मानव सभी हैं,मन से बली यह भूलते
         सब प्राणियों में बेहतर ,देह बल पर जो झूमते।

3          दहलीज से दूरी बढ़ी पग नापती बढ़ती रही
    मन के लिये सपने बुनी ,नभ में उड़ी वह तो सही।
"मैं "से निकल वह "हम" बनी, तो आसमा सी हो गई
      ममता भरी गंगा बही, जग तारिणी वह बन गई ।

4      : खुशबू लुटाती है वही,बांटे खुशी सबके लिये
    घर तो बने जन्नत उसी ,के जतन से जग के लिये।
   टुकड़ा वही मां के हृदय ,का  बन कली पलती रही
  ससुराल के सब दुख हरी, कुलतारिणी बन कर वही।

5  हैं शब्द के कुछ फूल मन, के बाग मेंअब तो खिले
     उत्साह में आकर वही, फिर छंद से जाकर मिले।
   मन तो गुनगुनाता तभी,दिल ये कली सी किलकती
     कल कल करे जब धार इस,की मुदित मन यह      
      छलकती।

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