1 भाव से दूरी रखे जो, शिल्प का हो भार
गीतिका भी झूमती हो,मुग्ध हो श्रृंगार
संकलित करना नहीं तुम ,शब्द का भंडार
सर्व हित की भावना भर,जो करे उपकार ।
2 है धरा माता हमारी ,जो उठाती भार
कर्ज उसका हम पर बहुत,अनगिनत उपकार ।
फर्ज तुम पूरा करो अब,टालते हर बार
रोप दो पौधे बहुत ये,प्रीत का इजहार
3 : उड़ गए हैं डाल से खग,जा बसे परदेश
लौट कर आए कहीं फिर,कौन दे सन्देश ।
रोज ही बन के विहग ये, हो रहे आजाद
नीड़ के तिनके बसाये,हैं कणों में याद ।
4 भूल अपनी झूठ से सब,ढाँपते हैं लोग
हैं कमी अपनी छुपाते,ये सभी का रोग ।
मान लें जो भूल अपनी,मगन अपने काम
रहते सदा खुश यही ,देख सुबहो शाम ।
5 रास्ता सुख चैन का यह, है बड़ा आसान
काम से अपने रख काम,तू बचा सम्मान।
प्यार या उपकार मां का,है चुकाया कौन
सामने मां-बाप-गुरु के,रख सदा तू मौन ।
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