Thursday 18 October 2018

रूप माला -- क्रमांक 5

1         भाव से दूरी रखे जो, शिल्प का हो भार
             गीतिका भी झूमती हो,मुग्ध हो श्रृंगार
         संकलित करना नहीं तुम ,शब्द का भंडार
        सर्व हित की भावना भर,जो करे उपकार ।

2              है धरा माता हमारी ,जो उठाती भार
  कर्ज उसका हम पर बहुत,अनगिनत उपकार ।
            फर्ज तुम पूरा करो अब,टालते हर बार
           रोप  दो पौधे बहुत ये,प्रीत का इजहार

  3  :      उड़ गए हैं डाल से खग,जा बसे परदेश
          लौट कर आए कहीं फिर,कौन दे सन्देश ।
            रोज ही बन के विहग ये, हो रहे आजाद
              नीड़ के तिनके बसाये,हैं कणों में याद ।    

4            भूल अपनी झूठ से सब,ढाँपते हैं लोग 
            हैं कमी अपनी छुपाते,ये सभी का रोग ।
          मान लें जो भूल अपनी,मगन अपने काम
             रहते सदा खुश यही ,देख सुबहो शाम ।

5          रास्ता  सुख चैन का यह, है बड़ा आसान
            काम से अपने रख काम,तू बचा सम्मान।
            प्यार या उपकार मां का,है चुकाया कौन
           सामने मां-बाप-गुरु के,रख सदा तू मौन ।

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