Friday 11 January 2019

सार छन्द - क्रमांक- 2


1  कुछ भी नहीं असम्भव जग में,करो प्रयास मिलेगा   तनिक न होना विचलित प्यारे,जीवन सुमन खिलेगा।

 2 लक्ष्य बना कर राह चलें हम ,आगे बढ़ते जाएं
           बाधाएं जो राह रोक लें,हमसे जीत न पाएं ।

  

3  उर्वर करती धरती को यह,सरिता की जलधारा
     देख लगन इसकी गहरी वह,सागर भी तो हारा।

4  गति ही जीवन की परिभाषा,कुछ तो करते रहना
         पावन धर्म सुकर्म सभी का,यही हमें है करना ।

5       मुट्ठी बांधे आये जग में ,ऐसे ही तो जाना
    रंग मंच सी दुनिया सारी,एक मुसाफिर खाना।

6     चलो जिंदगी को उपवन से, फूलों से महकाएं
       हवा मचलती आये हम भी ,झूम झूम के गाएं ।

                               ..
7   बिखरे हैं  मोती शबनम के, किरणे चुनकर लायी
     झूम झूम कर बहे हवा जो,सबके मन को भायी ।

8डूब रही थी भाव सिन्धु में,दिल मे तुम्हीं समाये,
      अधरों पर मचले हो तुम ही,गीत प्रीत के गाये।

9   बचपन होता बड़ा सुहाना,हम तो भूल न पाए
भीतर से मन रहता बच्चा, लुक छिप कर आ जाए ।

10   यह प्रेम हमारा है निश्छल ,याद हमेशा आती
     धड़कनों में आवास इसका,दिल से ना ये जाती।

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