Saturday 12 January 2019

सार छन्द - क्रमांक- 3


1.       निर्धन शोषित दीन हीन को, आतंकी बहकाते
          सावधान रहना इनसे तुम,जीवन नरक बनाते।

2         कभी डराते-बहलाते हैं, फिर अपराध कराते
          भय दोहन कर गलत कंही ,  उनसे  करवाते ।

3.      एक एक मिल दो होवें हैं ,यही हमेशा समझाया
     एक एक मिल ग्यारह होते, यही अधिक मन भाया।

     
4        सारे गिले भुला देना तुम,मुझे भूल ना जाना
    लड़ते लड़ते गुजरा जीवन, अब न फिर दोहराना।
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5    ज्ञानी संत सभी ने खोजा ,प्रभु का पता न पाया
      देख प्रेम में उसके खोकर,जग में वही समाया ।  
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6    मन के उपवन में वसन्त सी, तुम ही तो मुस्काती
        भोर किरण सी मुझे जगाती ,गीत प्रीत के गाती।

7       तुम भुला देना गिले सारे, मुझे भूल ना जाना
         लड़ते लड़ते जीवन गुजरा, अब न दोहराना ।

7  ममता का दरिया बनकर मां, जग हित नेह लुटाती
     मोह नहीं मन अपने हित का,सबका आदर पाती।

  8         देवालय में ढूंढ रहा है। ,ये मानव भरमाया
    कण कण में बसता है वह तो,सबमे वही समाया।

9  जब नीरस सा लगता जीवन,मन बोझिल हो जाता
       होता रहता परिवर्तन तब,एक नया पन आता ।

:10    बेमन से  यदि जुड़ जाएं तो,गिनती सिर्फ बढ़ाते
   मन से भी यदि जुड़ पाएं तो ,हम विशेष बन जाते।

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