Wednesday 24 January 2018

दोहवली----भोर वन्दन-- सुप्रभातम्

******धुंध** दोहावली ********
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9      बाल रवि तो झांक रहे , सोन नदी के पार 
         फ़ौज धुंध की छिप गई ,  देख किरण तलवार  ।

10       यान गगन में उड़ चला , मेघों के उस पार 
         सूरज छूना चाहता ,   कोशिश है बेकार  ।

11        देख भोर यह शरद की , मन हो गया विभोर 
          दिनकर तो मन मोहते , बाल रूप चित चोर  ।

12          बढ़ा कोप है शीत का,लगे सांझ सी भोर
             लगता सूरज चाँद सा,किरणें बनी चकोर।

13  देख भोर का दृश्य वह , मन को  बहुत लुभाय 
         गगरी छलके  नूर की ,बून्द बून्द छलकाय  ।

14   कितनी  सुंदर सुबह यह , पल पल बदले रूप
        दिनकर की दीप्ति लिये , प्राची लगे अनूप ।

          **********  ॥ प्रेम  ॥ ******

1     प्रेम एक वरदान है , मन का कोमल भाव
        भारत यह विश्वास है , रखता अमिट प्रभाव ।

2      दिल में  प्रेम बसे  सदा , शुभता से भरपूर
         सहज भाव ही प्रिय लगे ,आडम्बर से दूर ।

3     जीवन की मरु भूमि में ,   प्रेम है अमृत धार
       तपन भरी जब धूप हो , रिमझिम करे फुहार।

4     प्रेम न देखे जाति को , प्रेम न देखे  रूप
        दिल का ही ये प्रेम दिवस  मेल है , रंक रहे या भूप ।

5      प्रेम त्याग का रूप है , सब कुछ लगता दांव
         द्वैत भाव होता नही  , यह बरगद की छाँव ।

6      प्रेम  स्वार्थ में शत्रुता , होता नहीं निभाव
        दोनों भिन्न स्वभाव के , होता नही लगाव ।

7       प्रीत अगर हो जाय तो , भूख लगे न प्यास
         छीने मन का चैन यह , रहे मिलन की आस।

8      धुंआ धुंआ वह  प्रेम है , ऊपर ऊपर जाय
        मन में पैठ सके कहाँ  , तन को भेद न पाय।

9      फागुन सा रंगीन यह , करता प्रेम धमाल
         सागर सा गहरा यही , यह है गगन विशाल।

10     सीमा का बन्धन नहीं ,    प्रेम रहे आजाद
      रहता सुख की छाँव में ,  प्रभु की कृपा प्रसाद।

11    प्रेम दिवस पश्चिम पला ,फागुन मस्त बहार
        रहता सांसों में बसा  ,  महके मस्त बयार  ।

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