******धुंध** दोहावली ********
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9 बाल रवि तो झांक रहे , सोन नदी के पार
फ़ौज धुंध की छिप गई , देख किरण तलवार ।
10 यान गगन में उड़ चला , मेघों के उस पार
सूरज छूना चाहता , कोशिश है बेकार ।
11 देख भोर यह शरद की , मन हो गया विभोर
दिनकर तो मन मोहते , बाल रूप चित चोर ।
12 बढ़ा कोप है शीत का,लगे सांझ सी भोर
लगता सूरज चाँद सा,किरणें बनी चकोर।
13 देख भोर का दृश्य वह , मन को बहुत लुभाय
गगरी छलके नूर की ,बून्द बून्द छलकाय ।
14 कितनी सुंदर सुबह यह , पल पल बदले रूप
दिनकर की दीप्ति लिये , प्राची लगे अनूप ।
********** ॥ प्रेम ॥ ******
1 प्रेम एक वरदान है , मन का कोमल भाव
भारत यह विश्वास है , रखता अमिट प्रभाव ।
2 दिल में प्रेम बसे सदा , शुभता से भरपूर
सहज भाव ही प्रिय लगे ,आडम्बर से दूर ।
3 जीवन की मरु भूमि में , प्रेम है अमृत धार
तपन भरी जब धूप हो , रिमझिम करे फुहार।
4 प्रेम न देखे जाति को , प्रेम न देखे रूप
दिल का ही ये प्रेम दिवस मेल है , रंक रहे या भूप ।
5 प्रेम त्याग का रूप है , सब कुछ लगता दांव
द्वैत भाव होता नही , यह बरगद की छाँव ।
6 प्रेम स्वार्थ में शत्रुता , होता नहीं निभाव
दोनों भिन्न स्वभाव के , होता नही लगाव ।
7 प्रीत अगर हो जाय तो , भूख लगे न प्यास
छीने मन का चैन यह , रहे मिलन की आस।
8 धुंआ धुंआ वह प्रेम है , ऊपर ऊपर जाय
मन में पैठ सके कहाँ , तन को भेद न पाय।
9 फागुन सा रंगीन यह , करता प्रेम धमाल
सागर सा गहरा यही , यह है गगन विशाल।
10 सीमा का बन्धन नहीं , प्रेम रहे आजाद
रहता सुख की छाँव में , प्रभु की कृपा प्रसाद।
11 प्रेम दिवस पश्चिम पला ,फागुन मस्त बहार
रहता सांसों में बसा , महके मस्त बयार ।
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