Saturday 17 March 2018

-----अभिमान-----

1     मुट्ठी में धरती रहे, आँखों में आकाश
       अहंकार के फेर में ,होता महा विनाश ।

2  पण्डित जो होते सही , करते क्यों अभिमान
      अल्पज्ञान वाले सभी ,     रखते झूठी शान ।

3   चार दिनों की  जिंदगी , ना  करना अभिमान
       मौत कहाँ किसकी बदी ,  जाने ना इन्सान।

4   अहंकार तो व्याल सम ,खूब करे  फुंफकार। 
      नित घमण्ड में चूर रहे ,   फूंके है  घरबार ।

5   कुंदन को पीतल करे ,     अहंकार को छोड़
     अहम भाव मति भरम करे ,इससे नाता तोड़।

6  बुद्धि नाशिनी है अहम, करता कुल का  नाश
     सोने की लंका जली ,    डूब   गया  विश्वास।

7     हाथों में धरती रहे , नैनों मेँ  आकाश
      अहंकार के फेर मेँ , होता महा विनाश ।

8     गर्व न कीजे रूप का ,    बैरी खड़े हजार
      रोग शोक चिंता सभी , मिल कर करते वार ।

9    लक्ष्मी  तो है चंचला ,    करना नहीं गुमान
     आज यहाँ तो कल कहाँ , हुआ नही अनुमान ।

10  लोभ मोह मद क्रोध हैं , सबके दुश्मन चार
       इनसे जो बचके रहे  , उसका  ही   संसार ।
लक्ष्मण मस्तुरिया---

[12/11, 10:33] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: जन जन की पीड़ा कहे,धरती पुत्र महान
किया शब्द की साधना,जाने उसे जहान ।
-मिल जुल रहने की सदा ,देता था सन्देश
रोम रोम उसके बसा, गांवों का परिवेश ।

-छत्तीस गढ़  का लाडला,चला गया अब दूर
कलप रही है भूमि भी,खोया उसका नूर ।

-बिलख रहा है लोकसुर, मौन हुआ संगीत
अलख जगा कर वह चला,जन जन का जो मीत ।

-- माटी की धड़कन सुना,उसको दिया जुबान
प्रतिभा को उसकी मिली, एक  नवीन उड़ान ।

--गीतों से इनके जगे,नव जीवन की आस
बढ़े मनोबल दीन के,करते रहे   प्रयास ।

--मस्तूरी का जन्म है,लक्ष्मण उनका नाम
गायक- नायक ये वही,करते उसे प्रणाम ।

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