1 मुट्ठी में धरती रहे, आँखों में आकाश
अहंकार के फेर में ,होता महा विनाश ।
2 पण्डित जो होते सही , करते क्यों अभिमान
अल्पज्ञान वाले सभी , रखते झूठी शान ।
3 चार दिनों की जिंदगी , ना करना अभिमान
मौत कहाँ किसकी बदी , जाने ना इन्सान।
4 अहंकार तो व्याल सम ,खूब करे फुंफकार।
नित घमण्ड में चूर रहे , फूंके है घरबार ।
5 कुंदन को पीतल करे , अहंकार को छोड़
अहम भाव मति भरम करे ,इससे नाता तोड़।
6 बुद्धि नाशिनी है अहम, करता कुल का नाश
सोने की लंका जली , डूब गया विश्वास।
7 हाथों में धरती रहे , नैनों मेँ आकाश
अहंकार के फेर मेँ , होता महा विनाश ।
8 गर्व न कीजे रूप का , बैरी खड़े हजार
रोग शोक चिंता सभी , मिल कर करते वार ।
9 लक्ष्मी तो है चंचला , करना नहीं गुमान
आज यहाँ तो कल कहाँ , हुआ नही अनुमान ।
10 लोभ मोह मद क्रोध हैं , सबके दुश्मन चार
इनसे जो बचके रहे , उसका ही संसार ।
लक्ष्मण मस्तुरिया---
[12/11, 10:33] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: जन जन की पीड़ा कहे,धरती पुत्र महान
किया शब्द की साधना,जाने उसे जहान ।
-मिल जुल रहने की सदा ,देता था सन्देश
रोम रोम उसके बसा, गांवों का परिवेश ।
-छत्तीस गढ़ का लाडला,चला गया अब दूर
कलप रही है भूमि भी,खोया उसका नूर ।
-बिलख रहा है लोकसुर, मौन हुआ संगीत
अलख जगा कर वह चला,जन जन का जो मीत ।
-- माटी की धड़कन सुना,उसको दिया जुबान
प्रतिभा को उसकी मिली, एक नवीन उड़ान ।
--गीतों से इनके जगे,नव जीवन की आस
बढ़े मनोबल दीन के,करते रहे प्रयास ।
--मस्तूरी का जन्म है,लक्ष्मण उनका नाम
गायक- नायक ये वही,करते उसे प्रणाम ।
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