Monday 2 April 2018

रोला --- ( 1 ) *******


1      नव सम्वत की भोर, कहती कानों में सुनो
       करो नया संकल्प , करें नया अब हम गुनों |
        तभी मिलेगा ठौर , जगाना सबको होगा
        बनना है सिर मौर  , सुनो श्रम करना होगा |

2    तरह तरह का वेश , सभी को बहुत लुभाता
         होली का पर्व  ,     मन में उमंग जगाता |
        मची रंग की धूम ,   लाल गुलाबी रंग  हैँ
       बजते  ढोल मृदंग ,  सब मिल खेलें संग हैं|

3     रंग भरा यह  पर्व ,   सभी के मन को भाता 
       मिट जाते हैं भेद ,   यही खुशियाँ बरसाता |
        फागुन के ये रंग , हंसी ठिठोली संग  है
       करते सबको दंग ,    मचे रंग में जंग है  |
      
4    करे वही तो  दान ,तिल तिल  खुद को  जगाता
     मन में कर संकल्प , धर्म  पथ को अपनाता  |
      कितना मोहक जोत , हृदय में सदा जलाये
     दीपक है वह नाम ,     रौशनी जग में लाये  |
  
5     कितना  सुंदर बाग  , जहां मन खुश हो जाता
        रंग बिरंगे फूल  ,      सभी के मन को भाता |
      कण कण भरा सुगन्ध ,सभी को हर्षित करता
       गर्मी या बरसात  ,      सदा ही हंसता रहता |

6     सब धर्मों का सार ,    गुरुवर कुछ तो सिखा दो
        इतना हो उपकार  ,       रास्ता हमे दिखा दो  ।
        माया है संसार  ,      लोभ से बच के रहना 
         प्रीत नहीँ व्यापार   ,  सदा इसे याद रखना  ।   

7     आओ मिलकर मीत  ,   गीत वसुधा के गायें
         नया सबेरा आज   , तिमिर का राज  मिटायें |
        मन में है उल्लास ,   स्वप्न  तुम खूब  सजाना
        आया है दिन खास  ,  ख़ुशी के दीप जलाना ।

8            मैं तो हुई विभोर ,  प्रेम से रहते सारे
              जागें  आलस त्याग ,देश के पुत्र हमारे |
             बने सभी शालीन  ,  देश का मान बढायें
             ऐसा हो भगवान , जीवन  सफल बनायें |

  9      कल कल करती धार, हृदय में सुख उपजाती
          नदिया हो या झील ,जगत की प्यास बुझाती ।
            प्रीत गंग की धार  ,  सदा निर्मल ही रहती
        बाधा है  अभिमान , भ्रमित वह मन को करती।

10      दुष्टों की पहचान , सिखा दे माँ तू मुझको
          कहती नन्ही जान, मिटा दूँ जग से उनको ।
          देकर के बलिदान , जग से दुर्मति मिटाऊं
          मन में है संकल्प ,  नया पद चिन्ह बनाऊँ ।

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