Thursday 7 June 2018

कुंडलिया क्रमांक -3

1          जलता मन यह दीप सा,मुख पर हो मुस्कान
            अंधकार से भ्रमित मन , भूल गये सब ज्ञान ।
                 भूल गये सब ज्ञान, खफा हो संगी सारे
                   है बढ़ने की चाह, वफ़ा हो साथ हमारे ।
           कहती चन्द्रा आज , सभी को वक्त परखता
           ले अनुभव से सीख ,दीप सा यह मन जलता ।

2   : लिखते हैं कवि छंद जो,मलय पवन जस मन्द
        बसी है जग में खुशबू, झरता नित मकरन्द ।
     झरता नित मकरन्द, मुदित है जग का कन कन
            सुन्दर भरें विचार,रसिक झूमे हैं  जन मन।
                 लिपटे रसमें भाव,छंद के बंद मचलते
          रचना में भर प्राण , छंद वे सुन्दर लिखते ।

3     सभी सुनो अब ध्यान से,धरती की  चित्कार
         रोम रोम से उठ रही,मन की आर्त पुकार ।
      मन की आर्त पुकार ,, बड़ी पीड़ा वह सहती
     कुछ तो रख लो ध्यान,दुखी मन से वो रहती ।
          मिले भूमि को चैन , होती भूमि हरी तभी
           धरती को उपहार ,हरियाली का दो सभी।

4         बहती सरसर ये हवा,आँचल में भर गन्ध
          गली गली में चल रहा, फूलों  से अनुबंध ।
              फूलो से अनुबंध, भौंरे गुन गुन कर रहे
       लुकती छिपती धूप,कानों में कुछ कुछ कहे।
       कली कली को चूम, चंचला वह चुप रहती
          झूम रही  है डाल, हवा है सरसर बहती ।

5      बादल आये झूम कर,हर्षित हुये किसान
       खुशियां छाई है बहुत, खेती पर है ध्यान ।
       खेती पर है ध्यान, हल बक्खर ले चल पड़े
         भू में रोपे  बीज, फसल कीआस में  खड़े।
          मौसम है अनुकूल, खुशी से होकर पागल
         |हर्षित हुये किसान, झूम कर आये बादल |


6.     वंदन है इस प्रेम का,मन का पावन भाव
     बड़ा ही कोमल रिश्ता,मन का हुआ लगाव ।
       मन का हुआ लगाव,  इक दूजे की सोचते
         प्रभु का है वरदान, हर बाधा को लांघते ।
           चन्द्रा की सुन राय, प्रेम है शीतल चंदन
        मन का पावन भाव, इस प्रेम का है  वंदन।

1 comment:

  1. हे तरुणाई के दीपक तू चिर सजग उजियारा है|

    तू पाहन की छाती में से बहने वाली धारा है|

    अंधियारे अंबर में तू तो सूर्य किरण की भांति है |

    तू तो आशा के दीपक में जलने वाली बाती है|

    तू तो बंजर धरती का भी मेघों वाला सपना है|

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