1 मैं उठती हूँ रोज सबेरे ,
मनो भाव हैं निर्मल मेरे ।
ध्यान करूँ प्रतिदिन कर जोरे ,
चाहूं चरण शरण मैं तेरे ।
3 प्रभु ने जीवन सुखद बनाया ,
कर्म वृक्ष का बीज उगाया ।
सुन्दर फल से भाग्य बनाया ,
कर्म चक्र फिर उसे थमाया ।
4 वृक्ष लता फल फूल उगाये ,
नदिया पर्वत खूब सजाये ।
सोच समझ कर मनुज पठाये
सबसे ज्यादा अक्ल सिखाये ।
5 कर्ता धर्ता मनुज बताया ,
चित्र गुप्त को बही थमाया ।
काया माया का जो साया ,
मानव को उसने भरमाया ।
6 : काया माया बहुत सताया,
गलती करके वह पछताया ।
परिवर्तन खुद में वह लाया,
फिर परमारथ पथ अपनाया ।
7 करके नादानी भुगत लिया ,
अपनी गलती अब समझ गया ।
परिवर्तन खुद में बहुत किया ,
स्वार्थ त्याग का मंत्र लिया ।
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