।1 : दुनियां में कुछ दिन ही रहना ,
मधुर वचन जीवन का गहना ।
सोच समझ कर तुम कुछ कहना ,
सुख दुख दोनो को है सहना ।
2 सुख दुख पहुना जैसे रहते,
वे भी आना जाना करते ।
दोनो मौसम जैसे लगते ,
. किस्से नये नये हैं बनते ।
3 सपने में थी मिली जवानी ,
शुरू हुई फिर वही कहानी ।
लोग नये थे प्रीत पुरानी,
रूप नया था जगह सुहानी ।
4. मीत वही जो साथ निभाता ,
गीत वही जो भाव जगाता ।
रीत वही जो राह दिखाता ,
प्रीत वही जो सब को भाता ।
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[07/02, 4:40 PM] Chandrawati:
जीवन में आई तरुणाई
हर्षित स्वप्न कली मुस्काई ।
मेरी दृष्टि जंहा भी पड़ती
मन अनुभूति बने सुखदाई।
पेड़ कोंपलें शाखें कलियां
मिल सब देने लगे बधाई।
उड़े गगन में मन पतंग सा
मस्त हवा चलती पुरवाई ।
जब जब मैंने दर्पण देखा
खुद से ही तब मैं शरमाई।
संग सखी के घूम रही थी
चली हवा चूनर सरकाई ।
दूर खड़ा था एक सुदर्शी
घूर रहा था समझ न पाई।
याद मुझे मुश्किल से आया
देख उसे मन में हरषाई ।
एक नजर में वह पहचाना
बोला करलें कहो सगाई ।
च नागेश्वर
[ Chandrawati:7 ,2 2018
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सदा साथ रहता है मेरे , बनकर मेरा साया
भ्रमित करे जो मुड़ कर देखूं , नहीं सामने पाया।
कौन वही जो पीछे चलता , मन में संशय भरता
भूत प्रेत बन मुझे डराता , तू है किसका जाया।
एक अकेली नारी हूँ पर , डरती नहीं किसी से
सोच रही हूं मजा चखाऊँ , हाथ अगर जो आया।
मैं काली कंकाली बनकर , ऐसा मंतर मारूं
मैं श्मसान वासिनी डाकिनी , मुर्दा बहुत जगाया।
सच कहती हूँ छोड़ो पीछा , मारक मन्त्र लगा दूं
मुश्किल चंगुल से है बचना , अब तक बहुत सताया।
टोना जादू मैं भी जानूं , छतीसगढ़ से आई
सुन अगर प्यार करते हो तो , कहो रूप ये भाया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
मैं तो उड़ चली रे परदेश
मेरे दिल में बसा है देश
मेरी धरती मेरा अम्बर
मन में बसा सारा परिवेश
आसमान में उड़ती जाती
नजरों से ओझल होता देश
सांसों में है इसकी खुशबू
जाने कब लौटूं मैं देश L
इसकी मिट्टी-इसकी वायु
इससे बढ़कर नहीं विदेश
इसका कण कण मुझे बुलाता
रवि किरणें- देती सन्देश
दिल के टुकड़े जा बैठे हैं
उनसे मिलने चली विदेश
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
चित्र मंथन-३५८, बुधवार, २१-०४-२१
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मायावी ये कोरोना तो , छिप छिप करता वार
रूप नया नित नित धरता है, कैसे पाएं पार ।
बचें नहीं इसके चंगुल से ,सबका करे शिकार
वीर पधारो इस धरती पर ,कर दो जग उद्धार।
मनो भूमि पर घोर अंधेरा ,भर दो नया प्रकाश
गली गली में मोक्ष वाहिनी , है शवगृह गुलजार।
मन के हारे हार मनुज की , करो स्वयं कल्याण
आयातित तो यह संकट है ,तू मत हिम्मत हार।
व्रत बल- मन बल संचित करके, करो शक्ति का ध्यान
धीर साहसी वीर तुम्ही हो, कर लो असुर सँहार ।
शक्ति रूपिणी हर कन्या हो, हर बालक हो राम
मातु भवानी अब हो जग में,सूर्य वंश अवतार ।
जीजा कौशल्या सी माता, दशरथ पिता समान
लक्ष्मी दुर्गा जन्मे घर घर, मन में जन उपकार।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 20 ,4 ,2021
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