Monday 24 September 2018

गीतिका क्रमांक 3


        
1           : उगता सूरज कहता है,जिंदगी उपहार है
              सुंदर धरती नदियाँ हैं,ईश का उपकार है।
                 जीव जंतु अनेक हैं,मानव से संसार है
           चूक बहुत ये करता है, बुद्धि का आगार है।

2     हे गज मुख हे दुख हर्ता,दुख हरण प्रभु कीजिये
       शिव सुवन हे गणनायका,शरण हमको लीजिये।
             लाभ शुभ दाता हमारे,बुद्धि हमको दीजिये
     कोटि रवि सम हे प्रभाकर,तम निवारण कीजिये ।

  3     वक्र तुण्ड तुम एकदन्ता,शक्ति हमको दीजिये
     धूम्रलोचन भय विमोचन,अरिदमन अब कीजिये।
         प्रथम पूज्य तुम भय हरो,प्रार्थना सुन लीजिये
             सूपकर्णा विघ्नहर्ता,रहम हम पर कीजिये ।

4        एक वह दिल में बसा है,प्रीत का जो गाँव है
           बादलों को पंख देता, नीम का वह छाँव है।
              जो रहे सबमे वही तो, नेह निर्मल भाव है
            पार जो सबको लगाये,सुगम वह ही नाव है।


5          मान तो हमने लिया है, बात पर बनती नही
              चैन भी आता नही है रुठ कर भागे वही ।
        बीत जो हम पर रही  है,जान कर क्या फायदा
          हो अगर कोई विवशता,कब सुहाता कायदा ।

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