Friday, 28 September 2018

गीतिका क्रमांक- 4

       
1       दो तरह के लोग जग में,  रोज इनको जानिए  
            खून के रिश्ते सदा ही ,काम आवें मानिए।
              साथ संकट में निभाते ,मीत होते वे सही
          साथ  जो सुख में रहें बस,रिश्तेदार वे नही।
    

2        जिधर भी उठती नजर है,बाग सा गुलजार है
         हर कदम पर फूल कलियाँ,भ्रमर का गुंजार है ।
               अप्सरा सी नारियां हैँ, रूपसी मन भावनी
               स्वर्ग सी सुंदर धरा भी ,सुंदरी सी मोहिनी ।

3               फूल भी झरते ख़ुशी में, पेड़ सारे झूमते
             डोलते हैं शाख उनके ,हर कली को चूमते।
            बहती हवा सौरभ लिये, मोहते सब फूल से
            प्रेम है सबको धरा से , पेड़ से फल फूल से।

4        तरु लता सी नारियां ये  ,जी रहीं सबके लिए
          मूरत दया की हैं यही , भावना जग के लिए।
        छाँव में अगणित पले हैं , मान इनका कीजिये
         फूल सी खुशबू बिखेरें,ध्यान इन पर दीजिये ।

5       हे प्रभो मुख पर हंसी हो,सुख भरा संसार हो
        दर्द  पी कर जी रहे जो, सुख सदा साकार हो।
      नैन दिख जायें अगर नम , खुशियां तू अपार दे
       प्रेम नित बढ़ता रहेअब ,  प्यार का संसार दे ।

5   

No comments:

Post a Comment