Saturday, 29 September 2018

गीतिका क्रमांक -5

व1       राह में मिल जाय तो वह,हम सफर बनता नहीं
        चाह भी यदि  मन रहे तो ,काम शायद हो कहीं ।
       जिंदगी के हर कदम पर  , हम सभी का साथ दें
          बेरुखी तकदीर की सब, भूल  कर के हाथ दें।

2       सामने जो भी खड़ा अब , है परखता जान ले
      भाग्य का यह लेख पढ़ सकता नहीं यह मान ले ।
           काम कुछ ऐसा करें अब,जो कमी पूरा करें
           पूर्ण तो कोई नहीं  जग,में हमीं समता भरें ।

  3       रूप सुनहरा उसका  है,ओस भीगी सी लगे
     फूल सी नाजुक परी यह,देख कर कलियां जगे।
    है जगत सुखदायिनी यह,रवि प्रिया तम हारिनी
    है प्रभाकर की प्रिय किरण,सूर्य की अनुगामिनी ।

   
4         ये  दिल की जमीं पर बढ़े,प्रीत बन पौधा उगे
               सींचते जो भी इसे हैं,वो लगें सब तो सगे
          बेल हो विश्वास की तो,लिपट कर देती खुशी
       पेड़ जब हो विष भरा तो, बेल करती खुदकुशी ।

    

5         देव लोक से तुम आई,स्वर्ग का उपहार हो
     हाथ जोड़ हम नमन करें,देवि तुम साकार हो ।
         पाप हारिणी तुम गंगे, पावन अमृत धार दो
   कर कृपा जगतारिणी  माँ , मुक्ति तो इस बार दो ।

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