Sunday, 30 September 2018

गीतिका क्रमांक --6

1        हे प्रभो मुख पर हंसी हो,सुख भरा संसार हो
        दर्द  पी कर जी रहे जो, सुख स्वप्न साकार हो।
      नैन दिख जायें अगर नम , बारिश कर बहार की
         प्रेम नित बढ़ता रहे अब , चाह मस्त बयार की।

2          फासले घटा सकते हैं  ,कोशिशें हम भी करें
     कौन कितना बढ़ रहा है, फ़िक्र हम न उसकी करें।
          भूल के शिकवे शिकायत , फिर नये रिश्तें गढ़ें
         भाव मन के निर्मल रखें ,  सतत हम आगे बढे।

3       प्यार भरे कई शब्द तो ,अमृत सम जो बोल है
            हृदय कोष में रहते जो, वे सदा अनमोल हैँ ।
          बोझ ढोकर झुक गए है , कौन रखें ख़याल हैँ
            आँख में आंसू छुपाये , मौन करें सवाल हैं ।
      

4             हे महादेव शिवशंकर,सुध हमारी लीजिये
              आशुतोष अवढरदानी,पार नैया कीजिये ।
              हे महेश्वर राजशेखर ,मुक्ति हमको दीजिये
            हे महाकाल हितकारी ,हित हमारा कीजिये।

5.        झांकती मन के झरोखे से सदा हँसती हुई
            रूप माता से है मिलता, नेह में डूबी हुई ।
         दे रही तुलसी में जल वो,शाम रखती दीप है
    सौम्य छवि  कहे दिल से ये,तू दिल के समीप है।

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