Sunday, 23 December 2018

सरसी छन्द -क्रमांक-10

   
   1   मानवता को भूल चली है,ये मानव कीजात     
     सत्कर्मों से भटक गई है,नित करती उत्पात ।

 2   जीवन है उपहार सखी सुन,गफलत में संसार
राह कठिन है फिर भी जाना , भाव सागर के पार ।

3   संस्कार को भूल रहे सब,हम भी जिम्मेदार
      मानव गढ़ने का सांचा  हैं,एक एक परिवार ।

4    आजादी के बाद देख लो, बिगड़ा है परिवेश
        हम सब मिल के इसे सुधारें,ये है अपना देश।   

5      बड़ी बड़ी बातों से कोई,बनता नहीं महान
कुछ कुछ काम करो जन हित के,लोग करें सम्मान ।

6        दुख में गले लगा लेना तुम,कर लेना मनुहार
      बन जाता है जीवन उत्सव,  खुशियां आती द्वार ।

8     जीवन मे सुख दुख आते है ,रहना जी तैयार
   दुख तो व्याकुल कर जाता है,सुख बनता गलहार ।

7      जीते जो अपने ही खातिर, वो होते कंगाल
         गैरों के खातिर जीते वो ,दिल से माला माल ।

8   सबसे पहले मानव हैं हम ,मानवता ही धर्म
       मन मे हो सद्भाव हमारे,करें सदा सत्कर्म ।

   
9   हाथ जोड़ कर मातु शारदे ,करती तुम्हें प्रणाम
     हृदय तमस को दूर करो मां, जपती तेरा नाम ।

10     प्रेम शान्ति से रहना प्यारों, गढ़ो नया परिवेश
        नई सोच के पंख लगा कर,चली आज परदेश।

11 बरछी जैसी चुभती पछुआ,ओस पड़े हर पात
  पूस माह में काँपे हैं सब, तरुवर के भी गात ।

12   पाला गिरता ठंड भयंकर,बढ़ी पूस की शान
  लता वृक्ष सब पीले होते, खूब करे परेशान ।
 
      

     

   

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