Tuesday, 25 December 2018

छन्द -विष्णुपद - क्रमांक--2

1          बेटी बेटा दोनो प्यारे ,भाव नहीं दूजा
      होती कन्या देवी स्वरूपा,उसकी हो पूजा।
    

2        गुणी जनों के साथ रहें तो,मन उत्साह बढे
    बनकर नम्र ही विद्या मिलता,नव सोपान चढ़े ।

3       दुखियों के हैं वही सहारे,सब दुख दूर करे
      दुख में जीवन अंधकारमय प्रभु सन्ताप हरे ।

4      घोर तिमिर में जीवन ठहरा, गतिमय प्रभु करता
      ज्योति आस की वही जलाता ,  वह प्रकांश भरता ।

5        उमर  ढले तो कुछ ना सूझे,काम नहीं बनते
         मन में रहे उमंग सदा ही,विनती हम करते ।

6      पाती लिखकर भेजी तुमको, उत्तर भी लिखना
        कर्म पुकारे व्याकुल मन से,सत पथ पर चलना।

7     जब पालन हो मर्यादा का,सब कुछ ठीक रहे
       रीति नीति के बंधन टूटे,मानव कुपथ गहे ।

8    भेजी पाती प्रियतम को तब,मन बेचैन सखे
      जाने कैसे बीत रहे दिन ,उनकी खबर रखे ।

9     कर्म पुकारे व्याकुल मन से, सतपथ पर चलना
        जीवन के इस धूप छाँव में,तुम धीरज रखना ।

10     बीत रहे जो दिन चुपके से ,बिन बोले कहते
       मौन हुए रिश्ते भी अब तो,गुमसुम से रहते ।
     

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