Monday, 17 December 2018

छन्द- सरसी क्रमांक- 5

1        आए जब जाड़े का मौसम ,खूब रजाई भाय
            खींच रजाई रोज सबेरे , मम्मी हमे जगाय।

2         हवा ने बदला अपना रूप,खूब करे है मार
     ठंड से मिल करती षड्यंत्र ,बनती तेज कटार ।

3       हर सुबह गुनगुनाती है ये,मन्द शीतल समीर
    कर्म पथ पर हँस कर बुलाती,जगाती ये जमीर।

4 दुश्मन से जो मिल कर रहता, निश्चित उसका नाश
      देश हित का काम जो करते, रोकें वही विनाश ।

5  आज खुशी का दिन है भाई, दुआ बनी है ढाल
   नक्सलियों के हमले में तो, बहुत बुरा था हाल ।

6      मिलती रहे सदा पेड़ों से ,ठंडी ठंडी छाँव
       तपन भरी  गरमी में राही पा जाता है ठाँव।

7  जीवन भर हो ठाट बाट,सुख सुविधा का भोग
      बिन मेहनत के मिले उन्हें भी,चाह रहे हैं लोग।

8     बाधाओं के चाप खींच कर,छोड़ो ऐसे तीर
    राहों के अड़चन अनबन की बदलो जी तस्वीर।

9   नये साल की नई, सुबह तो ,करती है फरियाद
     छोटे से इस जीवन को तुम,करो नहीं बरबाद ।

   
10  सपनों की ढेरी से खुद को,कर लो तुम आजाद
    अभिलाषाओं की राह मोड़, करो उन्हें आबाद ।

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