Sunday 9 December 2018

आल्हा -क्रमांक,- 7

1   पलकों पर लहराते सपने, पांवों को रोके जंजीर
आशा मन की सदा जगाती,कर्मों से लिख लो तकदीर।

2 डाली डाली खिल उठती है,जीवन जब बनता है बाग
    चहकें हैं सुख के सब पंछी, फिर गूंजे हैं मीठे राग ।

3  ऐसी चले बयार देश में, चरित्रवान बनें संतान
  सारे कष्ट दूर हों सबके,तब होंवे सपने साकार ।

4  एकाकी जीवन है मुश्किल, जी लेते हैं फिर भी लोग
ढलती उम्र ही बनता बोझ, भले लोग देते सहयोग  ।

5 जैसी करनी वैसी भरनी,ईश्वर का है यही विधान
जितना देते उतना पाते ,रखना इसका हरदम ध्यान।

6   आते सुख दुख जीवन में, ये तो धूप छाँव सम हो
   आते जाते रहते क्रम से, इनको रोक सके न कोय ।

7 सबका भाग्य बनाता कर्म, शुभ कर्मों से मिलता मान 
  भाग्य भरोसे मत बैठो  ,सारा जग है कर्म प्रधान ।

8   भेद भाव से आती दूरी, मन दर्पण को रखना साफ     
    टूट रही रिश्तों की कड़ियाँ ,सबको मिले नहीं इंसाफ

9 अपनी ढपली आप बजावें,सुनते नहीं किसी की लोग
    वक्त पड़े तो साथ न देंवें,सबको लगा लोभ का रोग ।

10 खूब दिखावा करते रहते, भीतर में होता है पोल
खुले पोल तो होय फजीहत,रखो सादगी मीठे बोल ।

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