Monday 10 December 2018

आल्हा -- क्रमांक-- 8

1 भारत मां का रूप दिव्य है,मणियों का ले अनुपम उपहार
    तीनो सागर पांव पखारें,दिल में श्रद्धा भाव अपार ।

2  सागर मंथन करके देख,रत्न मिलेंगे तब अनमोल
  व्यर्थ नहीं जाता है श्रम तो,बदले धरती का भूगोल ।

3 सूरज को भी आलस आता, देख देर तक वह भी सोय
  नाम नहीं लेवे तपने का  , ठंड बड़ा अभिमानी होय।

4  अतुलित शक्ति पुंज ये मानव, पतझर को कर दे मधुमास
लेकर के संकल्प उसी ने, बदला है जग का इतिहास ।

5    भेद भाव से आती दूरी, मन दर्पण को रखना साफ 
   टूट रही रिश्तों की कड़ियाँ ,सबको मिले सही इंसाफ। ✅

6     भूले भटके कोई पहुंचे ,अगर हमारे मन के द्वार  हाल चाल पूछें मुस्काकर,दिल से करें बहुत सत्कार ।

7   कभी कभी ही खुले हृदय पट,शायद अतिथि रूप भगवान
जो भी हो अर्पण करना है,दिल का प्रेम और सम्मान।

8  व्यथा सुनो एकाकी मन की,हे प्रभु जग के तारन हार
आंख खुले तो तुमको देखूँ,विनय करूँ तुमसे सौ बार।

9       आती है हर सुबह हमेशा ,देने एक नई सौगात
अच्छे कामो से करना है , हमको हर दिन की शुरुआत ।

10  सिर पर मुकुट हिमालय का,सागर चरणों मे बलिहार
भारत माँ के प्यारे बेटे, शीश झुका करते आभार ।✅

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