Tuesday, 18 December 2018

सरसी- छन्द -क्रमांक 7

  1    माला की सुंदरता का ही, करते सब गुणगान
     जोड़े रखता फूलों को जो, उसका भी हो मान ।

2       नक्शे और प्राचीर से ही,बनें नहीं हैं  देश 
सभी देश वासी मिल जुल कर,गढ़ते हैं परिवेश ।

3   देख लो ऐ जिंदगी तुम भी,माने क्यों हम हार
        हर हाल में लेना है हमें, जीत का उपहार।

4       गंगा जैसा पावन मन हो,उत्तम रहे विचार
  जो सोचे है सबके हित की,रखे सहज व्यवहार ।

5      धूल हवा के साथ चली फिर ,करे गगन से बात
       हवा थमी तो गिरी धरा  पर, जान गई औकात ।

6     अफवाहों के पांव कहाँ है,मत करना विश्वास
     कर देता है जीना मुश्किल,तोड़े सबकी आस ।

7 कल क्या होगा पता न चलता,टाल न कल पर काम
समय रेत सा फिसल रहा यह,देख आज को थाम ।

8     दिखा देंगे आज से सबको, अब ना माने हार
    मिलेगा निश्चित ही हमें तो , जीत का उपहार ।

9         भोर हुई तो नन्हें पंछी ,गाते जीवन राग
      हवा चूमती फूल फूल को,महकाती है बाग ।

10  फूल हवा सूरज धरती सब,करते जग उपकार
     अब पौधों के बाग लगा कर, करना है आभार।

11 नित्य गगन से उगता सूरज,देता खूब प्रकांश
देखे इनकी कर्म निष्ठता ,नत मस्तक आकाश ।

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