Monday, 7 January 2019

छन्द -विष्णुपद - क्रमांक--10


1          मिले साधना से ही साध्य,खुद अवरोध हरें
   मन की पावनता से साधक,जप तप सफल करें ।

2     तन की सुंदरता नित घटती ,मन सुविचार भरो
          कर्म करे से सुंदरता है , सदा सुकर्म करो ।

3       यह जीवन है कठिन पहेली, पल पल उलझाए
    ज्ञान और अनुभव मिल कर ही,इसको सुलझाए ।

4 घोर तिमिर हो पथ अनजाना, जुगनू  सा जलना
   जीवन में यदि खुश रहना हो,राह सही चलना ।

5      सम्पन्न रहे जो  मन से यदि,जग कल्याण करे
      धन  वैभव मति हीन करे है,मन अभिमान भरे।

6   भाव जगे यदि उर में सबके,मन से मन मिलते
     प्रीत साधना बनती है तब,भाव सुमन खिलते ।
   
7    उड़ती फिरती मधु परियां हैं,घट मधु रस भरती
     पुष्प सुरभि संचित करती हैं,अथक कर्म करती। 

8       साठ पार हो उमर अगर तो, घबराते हो क्यों
        सदा बिखेरो मधुर गंध तुम,पके हुये फल ज्यों ।

9  चांदी सी लट छिटक रही हो,मन उत्साह भरा
        जीवन का आदर्श तुम्हारा, कुंदन लगे खरा।

10   आदर्शों की चलें राह तब,  स्वाभिमान जागे
   भारत को ले जाना हमको, अब सबसे आगे।

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