Friday, 4 January 2019

छन्द- विष्णुपद-,क्रमांक- 7

  1        चलो समेटें आस कणों को ,मन विश्वास भरें
         हम आशा के दीप जला कर ,पथ के तिमिर हरें।

2  : प्रीत सुधा की चाहत में हम,सब कुछ भूल गये
      जब जब टूटी आस जुड़ी तब ,मन के शूल गये 
       
  
 3      टूटे सपने हाथों में रख ,सच उनको करना
      दूर निराशा कर लोअब तो,नहीं हमे डरना ।

4    बाधाओं को हंस कर झेला,  तुम ही साथ रहे
   लिये आस का सम्बल हम जब,तुम ही हाथ गहे।

5    अच्छों को सब लगते अच्छे,मन ही भाव लिखे
    सोच समझ से अपनी परखें,मन अनुरूप दिखे

6   अमृत कलश है हृदय हमारा,जहां अमिय झरता
        सपना है या सच्चाई मन,  यह संशय भरता ।

7        प्रेम सुधा रस सेवन करके,मन आनंद भरे
     संजीवन सम असर करे यह ,तन मन कष्ट हरे ।

8: बरस महीने ढले दिवस में ,हम तो  वहीं अभी
    परिवर्तन की चाह लिए खुद,बदले नही कभी ।

9    सजी जहाँ  फुलवारी रहती ,बुनते हैं सपने       
     उग ना पाएं शूल वहाँ फिर,ध्यान रखें अपने ।

10     भग्न पड़े इनअवशेषों की ,चिंता कौन हरें
     वैभव लुप्त हुआ पुरखों का,जीवित हमीं करें।
       

No comments:

Post a Comment