1 चलो समेटें आस कणों को ,मन विश्वास भरें
हम आशा के दीप जला कर ,पथ के तिमिर हरें।
2 : प्रीत सुधा की चाहत में हम,सब कुछ भूल गये
जब जब टूटी आस जुड़ी तब ,मन के शूल गये
3 टूटे सपने हाथों में रख ,सच उनको करना
दूर निराशा कर लोअब तो,नहीं हमे डरना ।
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4 बाधाओं को हंस कर झेला, तुम ही साथ रहे
लिये आस का सम्बल हम जब,तुम ही हाथ गहे।
5 अच्छों को सब लगते अच्छे,मन ही भाव लिखे
सोच समझ से अपनी परखें,मन अनुरूप दिखे
6 अमृत कलश है हृदय हमारा,जहां अमिय झरता
सपना है या सच्चाई मन, यह संशय भरता ।
7 प्रेम सुधा रस सेवन करके,मन आनंद भरे
संजीवन सम असर करे यह ,तन मन कष्ट हरे ।
8: बरस महीने ढले दिवस में ,हम तो वहीं अभी
परिवर्तन की चाह लिए खुद,बदले नही कभी ।
9 सजी जहाँ फुलवारी रहती ,बुनते हैं सपने
उग ना पाएं शूल वहाँ फिर,ध्यान रखें अपने ।
10 भग्न पड़े इनअवशेषों की ,चिंता कौन हरें
वैभव लुप्त हुआ पुरखों का,जीवित हमीं करें।
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