1 नही क्षमा की गुंजाइश है,कर्म रेख पर चलना है
कर्म लेख से किस्मत बनता, हमको यही समझना है ।
2
बात समझ लें इतनी सी तो,जीवन सबका बनना है
भाव बिना भक्ति नहीं होती,कर्म साधना करना है।
3 खड़ा पेड़ जो बिन टहनी के,ठूंठ बना रह जाता है
क्रूर मनुज का दुर्व्यवहार,उसका दिल दहलाता है ।
4मानव की लालच का मारा, नहीं विवश बन पाता है
आशा का दामन थामे तरु , फिर से वह हरियाता है ।
5लाख मुसीबत आये फिर भी,जुड़ा जड़ों से जो रहता
रखे भरोसा खुद पर जो भी,हार नहीं वह पाता है ।
6 देव सहायक उसका बनकर,गगन पुष्प बरसाता है
कठिन लड़ाई लड़ कर जीते, जीवन पर्व मनाता है ।
7 जो ना हारे अंतर्मन से, साधक वह बन जाता है
उस पर सूरज छाया करता,बादल जल बरसाता है ।
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