लावणी 2
1 गरल पान जब करें वही तो,ये जग खुशी मनाता है
महादेव का पूजन करके,सारा जग हर्षाता है।
2 शिव शंकर जब नृत्य करें तो,प्रलय काल आ जाता है
महा काल के रौद्र रूप से,सारा जग भय खाता है।
3 जप चिंतन में लगे रहे ये,आंखें मीचे तप करते
गृहस्थ ने पर रहे तटस्थ,बिना शक्ति शिव कब रहते।
4 ध्यान मग्न हो अंतर्मन से,जग संचालन करते हैं
अंतर्यामी भोले बाबा ,भक्तों के दुख हरते हैं ।
5 समझ न आये इनकी लीला,कोई पार न पाए
बाघम्बर तन सोहे इनके, नाग गले लटकाए ।
6 बन बसन्त मन के उपवन में,तुम ही तो मुस्काती हो
भोर किरण सी मुझे जगाती, कोयल बनकर गाती हो।
7 बांध सकी जब जब मन को मैं, मिटने लगे क्लेश सारे
दूर हुई बाधाएं मेरी , अब तो दुख हमसे हारे ।
8 घेर रही इच्छाएँ अगणित,इनसे हार न जाऊं मैं
इतना साहस देना प्रभु जी,वश इनको कर पाऊँ मैं।
9 जान हथेली पर रखकर के,देख देश का वीर चला
मातु चण्डिके दांये रहना, करते रहना सदा भला।
10 धन्य हुई वह जननी तुमसे,धन्य तुम्हारी पत्नी भी धन्य धन्य वह पिता तुम्हारा, धन्य देश की धरती भी।
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