मुक्तक लोक तरंगिनी छंद समीक्षा समा 250,सोमवार,25-3-19 अध्यक्ष आद कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव प्रज्ञाञ्जलि संचा आद मंजु वशिष्ठ राज और आद राकेश मिश्र जी संरक्षक आद विश्वंभर जी शुक्ल तथा मंच को सादर ----
आधार छंद सार 16-- 12 समान्त में गुरु
उंगली थाम के चलते थे ,साथ तुम्हारा भाया
हाथ तुम्हारा जब से छूटा ,कुछ भी समझ न आया।
मन मौजी बन ठोकर खाया,रहा भटकता दिन भर
संगी साथी और वक्त ने , ऊंच - नीच समझाया ।
अब तो चलना सीख गया हूँ ,नहीं रहा अब छोटा
कहीं सरल कहीं कठिन राहें, बाँह पसारे पाया ।
कदम नहीं अब डगमग होते ,भय मन का है छूटा
जीवन ने तो दिया बहुत कुछ ,तेरे बिना न भाया ।
बीत रहा जीवन अब तो यह, गई बहुत-है थोड़ी
इतना ही बस जान गया हूँ, सुख दुख ने भरमाया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
[06/02, 2:15 PM] Chandrawati:
मंच को सादर समर्पित रचना।
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* गीतिका *
कोरे पन्ने संग लेखनी, मन में भाव जगाते
मौन निमंत्रण हमको देते, चुप चुप हमे बुलाते।
निराकार है रूप हमारा, आकार हमे देना
लेखन ही पूजन अर्चन है,यह हमको बतलाते।
इन पन्नों के प्राण हैं अक्षर ,अमित ज्ञान बरसाते
अपने भीतर रखते इनको , नव इतिहास बनाते ।
जहाँ विराजे मातु शारदे ,धवल वसन पहने है
शुभ्र श्वेत ये कागज कहते ,हम जीवन हर्षाते ।
अक्षर ब्रह्म को करें नमन , लायक हमें बनाते
गीत गजल कविता कवि रचते ,यूं ही मन बहलाते।
कलम सिपाही तुम हो सारे , वतनपरस्त बना दो
कलम कहे हथियार तुम्हारी , हर शत्रु को निपटाते ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छत्तीसगढ़
[06/02, 3:44 PM] Chandrawati:
शुभ मंगल मंगल मंगल हो
रवि मंगल हो शशि मंगल हो।
नभ मंगल हो क्षिति मंगल हो
दिन मंगल हो निशी मंगल हो।
धरती का कण कण मंगल हो
जीवन का पल पल मंगल हो।
जगती में चहुँ दिश मंगल हो
जन जन के भाव सुमङ्गल हो।।
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