Monday, 1 February 2021

लावणी छन्द 3

लावणी  ---3

1: दुश्मन कभी नहीं हम नर  की,हमतो पूरक उनकी हैं।
    जीवन को सुख देने वाली ,माँ बेटी हम भगिनी हैं ।

2     नहीं चाहती हम देवी बन ,मन्दिर में पूजी जाएं
    नहीं चाहती बनकर दासी ,चरण धूलि सी रह जाएं ।

3 हमें मानवी दिल से मानें, घर घर में, सुख छा जाए
     मानव गढ़ने का हम साँचा ,हमें मनुजता ही भाए ।

4 दुश्मन कभी नहीं हम नर की,हमतो पूरक उनकी हैं।
      जीवन को सुख देने वाली ,माँ बेटी हम भगिनी है।

5     ममता भरी प्रेम दीवानी,पशुता  से यह हारी है
   माँ बहन सुता प्रिय प्यारी है,मानवता आभारी है ।

6 वन पर्वत में कल कल करती,उछल कूद जो जरती है
मैदानों में शांत चित्त हो,मन्थर मन्थर गति से बहती है।

7किलक किलक कर पुरवाई ने,लट उसकी सुलझाया है
सूरज की स्वर्णम किरणों ने, मोहक उसे बनाया है ।

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पहने साड़ी बिटिया आई, मंजुल टीका माथे पर

रूप सुहावन लागे उसका, आँचल सिमटा कांधे पर।

बचपन से ही तेजस्वी वह ,सम्वाद बड़े रट लेती

आज बनी है लक्ष्मी बाई,किया सवारी घोड़े पर।

 राज्य नहीं देना चाहे वह, डरी नहीं अंग्रेजों से

मर मिटने को ततपर सैनिक,  लिया नहीं  है भाड़े पर ।

नारी सेना गठित किया है, आन देश का रखने को

सुंदर कोमल हिम्मत धारी ,सही  निशाना साधे पर।

 आज जगाये सुता शक्ति को,  लक्ष्य  यही  है जीवन का

 खेल रही है नाटक वह तो बैठ सिंहासन ऊंचे पर ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वररायपुर   छ ग

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8

   झूम उठे हैं तरुवर सारे,नव पल्लव मुस्काए हैं
   जाग उठी हैं कलियां सारी, पंछी गीत सुनाए हैं ।

9 जीजा बाई  बनें अगर माँ, हर पुत्र शिवाजी होगा
   हर बेटी मनु सी बन जाये,संकट मुक्त देश होगा ।

10 है चार दिन की जिंदगी यह, मत किसी का दिल दुखाओ
दर्द बांटो जग में सभी के,दीप खुशियों के जलाओ।
   

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