Friday, 29 January 2021

लघुकथा श्रृंखला 27 --सास की अदालत ,हौसला लीगल सेपरेशन,वसन्ती बहार

शीर्षक   ----  "सास की अदालत"

वन्या ने शादी के पांच साल बाद पहली बार अपनी सास के सामने अपने पति की शिकायत करते हुए कहा -- माँ जी आप तो जानती हैं
एक सादे समारोह में  मेरी   की शादी  अनूप से हो गई।  हमारी शादी के तीन महीने पहले ही सड़क हादसे में अनूप की पहली पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया।
 तब अनूप का बेटा रौनक मात्र डेढ साल का ही था ।   मैंने अपने  कोख जन्मे बच्चे   की तरह प्यार और ममता लुटाया है ।
 अब  वह स्कूल जाने लगा है। मैं दूसरा बच्चा चाहती हूं। दूसरे बच्चे की मेरी चाहत पर अनूप मेरी ममता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं । उनका कहना है कि दूसरा बच्चा आने पर मेरा ध्यान बंट जाएगा ,मैं रौनक की देखरेख उतनी शिद्दत से नहीं कर पाऊंगी जीतन अभी करती हूं ।
         अनूप ये तो मुझ पर सरासर तुम्हारा अन्याय  है ।मेरे स्त्रीत्व औऱ ममत्व का अपमान है । मैं चाहती हूँ अनूप को  साथ मिल जाये। अपने ही भाई या बहन जो भी हो उसके साथ चीजें शेयर करना ,एडजस्ट करना सीखें । समाज विज्ञान और मनोविज्ञान मानता है कि इकलौते बच्चे जिद्दी और स्वार्थी हो जाते हैं।
     मैं भी नौ महीने तक पल पल एक नए जीव को अपने  अंदर विकसित होते हुए अनुभव करना चाहती हूं उसके हर स्पंदन की साक्षी बनना चाहती हूं। नवसृजन की प्रक्रिया को अपने भीतर घटित होते देखना चाहती हूं। ये मेरा नैसर्गिक अधिकार है  इससे आप मुझे वंचित नहीं रख सकते।
                यह शिकायत अपनी सास की अदालत में  वन्या कर रही है । मैंने रौनक के पालन पोषण में कोई कमी न रह जाये यह सोच कर अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। अगर अनूप सोचते होंगे कि बच्चों की उच्चशिक्षा में आर्थिक परेशानी न हो तो मैं  मनोविज्ञान में एम .ए. हूँ । अगले बच्चे के थोड़ा बड़े हो जाने के बाद नौकरी  कर लूंगी काउंसलर  बन सकती हूं। माँ आप भी तो चार बच्चों की माँ हैं जिनमे से एक इनका चचेरा भाई है ।
  अंततःसास की अदालत में वन्या को जीत मिली ।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग

--------^-----------^----------*----------------^-------^------
लघुकथा लोक समारोह
:;शीर्षक -लीगल सेपरेशन
              आज 7 साल बाद  नवरात्रि के  मेले में बम्लेश्वरी मंदिर  में ज्योति और मिनी दोनो सहेलियों  की मुलाकात हुई ।  दोनो के लिए यह सुखद अनुभूति है। दोनो एक दूसरे से अपने सुख दुख बांटने को उतावली हैं 
   कुशल क्षेम जानने के बाद  दूसरे दिन ज्योति के घर  पर मिले।        
मैट्रिक पास करते ही  मिनी की शादी हो गई । उसका पति शिक्षक है  घर में दो ननदें और सास है । मिनी बहुत सहज सरल और हंसमुख स्वभाव की है । पहले मोबाईल ,t v, का जमाना नहीं था।  शादी के बाद  तीज त्यौहार में जब मिनी मायके आती ।ज्योति से उसकी मुलाकात जरूर होती । ज्योति के बी ए करते तक मिनी दो बेटियों की माँ बन गई । इसके बाद ज्योति की भी शादी हो गई  दोनो अपनी अपनी गृहस्थी में रम गई।
                मिनी ने बताया -- विगत 5 सालों से मैं मायके में ही रहती  हूँ । मुझे ससुराल वाले अभागिनी ,करम जली कहते  हैं। उन्हें बेटा चाहिए  और भगवान ने मेरी किस्मत में चार बेटियां लिख दी हैं। दो बेटी होने के बाद मेरे पिता प्रसव के लिए मायके लिवा लाये
     हर डेढ़ साल में प्रसव और बेटी जन्म देने के अपराध के कारण ससुराल में कोई देख भाल नहीं हुई मैं बहुत बीमार हो गई । अनेक व्रत ,उपवास,पूजा पाठ,मन्नतों के बाद भी तीसरी बेटी ही हुई । मुझे और बच्ची को देखने उसके पिता नहीं आये।  6 माह के इलाज व देखभाल से मैं स्वस्थ हुई तो पिता ने मुझे ससुराल पहुंचा दिया । चौथी बार पुनः कोख में हलचल  हुई तो फिर मन में उम्मीद जागी कि शायद इस बार बेटा हो तो मेरा बेमोल की नौकरानी से प्रमोशन मिले ,बहू औऱ बेटे की माँ के रूप में सम्मान मिले । 
     पिता को चिट्ठी लिखी कि मुझे लिवा कर ले जाओ । भाई और माँ दोनो आये मुझे  ले जाने । इस बार तो पति ने कहा --  अगर फिर लड़की हुई तो गले मे पत्थर बांध कर अपनी बेटियों सहित किसी कुंए,तालाब मेंडूब
जाना  पर वापस मत आना। 
 अपनी छोटी बेटी को साथ ले आई थी। मेरी बदकिस्मती  तो देख इस बार  स्वस्थ सुंदर जुड़वां बेटियां आ गई । मेरी रही - सही आस भी खत्म हो गई ।दिमाग काम करना बंद कर दिया । माँ भाभी ने मुझे सम्हाला ।  माँ ,भाभी,और दीदी ने एक -एक बच्ची रख लिया और बहुत समझाया ।
   तीनो बच्चियां बड़े प्यार से पल रहीं हैं। मैंने आगे पढ़ाई की । अब यहीँ कन्या शाला में टीचर की नौकरी मिल गई है।  मेरी दोनो बड़ी बेटियों को भी यहीं  बुलवा लिया है। सबको पढा लिखा कर आत्म निर्भर बनाना है। 
          मैंने कसम खाया है किअपने पति के घर  उस नरक में वापस नहीं जाऊंगी।  जहां पत्नी और बेटियों की इज्जत न हो । वहां मुझे नहीं रहना ।
 मैंने वकील से लीगल सेपरेशन की  नोटिस भेज दी है  उसे आजाद कर दिया है।  
        शाबाश मेरी शेरनी । तुझे और तेरे जज्बे को सलाम करती हूं .....
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
------------------^----------------^--------------^-----------
लघुकथा समारोह  -55
शीर्षक  ---"वसन्ती बहार
सविता को अब  अपने बारे में जल्दी ही  निर्णय लेना था  इसी लिए मन के संकोच को परे हटा कर  उसने फैसला कर ही लिया । अब उसे बड़ा आत्म सन्तोष मिला है ।
बीमार पिता और घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने में सविता  की शादी की उमर कब निकल  गयी पता ही नही चला । लेकिन उम्र के इस पड़ाव में  जीवन साथी की हसरत  यदा कदा सिर उठा ही लेती है। छोटे भाई बहनों को अपनी गृहस्थी में  मगन देख  उसके मन मे कसक सी उठती है ।
  अब 35साल की उम्र में उसे कौन ब्याहने आएगा ?? 
   सविता बैंक में जॉब करती है ।वह बचपन से ही तेज है b. com करने के बाद  बैंक की प्रतियोगी परीक्षा पास कर लिपिक बन गई । अब विभागीय परीक्षा करते हुए  सहायक शाखा प्रबंधक पद में आ गई है । अच्छी तनख्वाह आत्म निर्भरता की दमक उसके चेहरे से झलकती है  अपने आप को मेंटेन कर रखा है 28 -30 से ज्यादा की नहीं लगती ।
      यों तो अनेक लड़केवालों का रिश्ता आया पर  कोई भाई को पसन्द नहीं आया,कोई माँ को,और कोई उसको पसन्द नहीं आया । दरअसल उसका भाई बेरोजगार है, प्रोफेशनल क्रिकेटर  बनने के सपने देखता रहता है और क्रिकेट की प्रैक्टिस करता रहता है  ।अपनी पसंद की विजातीय लड़की से मंदिर में शादी कर घर ले आया । छोटी  बहन  सुंदर है पर पढ़ने में एवरेज थी। अच्छा रिश्ता मिला तो माँ ने उसके हाथ पीले कर दिए ।
          पिता जिंदल स्क्रेप कंपनी में काम करते थे ।स्क्रेप वाली ट्रक के एक्सिडेंट   से अपाहिज हो गए । जो मुआवजा मिला माँ ने छोटा सा घर खरीद लिया। 
   सविता 21 साल की उम्र से जॉब कर रही है
              सविता को लड़के वाले देखने के लिए आने वाले हैं भाई और माँ  के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच गई ।  लड़का उसी के बैंक में काम करता है ,माँ ने सुबीर से उसके बारे में पता लगाने कहा ।
सुबीर --- माँ अभी छः महीने पहले ही बाहर से ट्रांसफर हो कर आया है । देखने में तो बड़ा स्मार्ट है। 
माँ --अगर उसके घर वाले सविता  को पसंद कर लिए तो ये घर कैसे चलेगा ??
सुबीर --चिंता मत करो, वो एक पैर लँगड़ा है  । तभी तो अब तक उसकी शादी नहीं हो पाई ।
अरे तू अपने बीबी बच्चों की फिक्र कर।सविता कब तक  तेरा परिवार पालेगी ??   
  सुबीर --माँ जब तक तू जिंदा है, मुझे और मेरे बच्चों को भूखा थोड़ी रहने देगीऔर सविता तुझे भूखा नहीं रहने देगी।
माँ --अरे कम से कम अच्छी पढ़ी लिखी या नौकरी वाली से शादी करता तो  तेरे सपने भी पूरे हो जाते। परिवार भी पल जाता । 
    चलो घर तो ठीक ठाक करो ,सुबीर बाजार से फल ,मिठाइयां ले आओ। लंच का टाइम हो गया सविता आती होगी ।
   तभी सविता आकर बोली  --  माँ  कहाँ हो ? अभी तक  कोई तैयारी  नहीं हुई बैठक अव्यवस्थित पडा है।उन लोग चार बजे तक पहुंचने वाले हैं।
 माँ -- सब हो जाएगा जा तू तैयार हो जा । 
चार बजे लड़के वाले आये  देखने दिखाने के कार्य क्रम के बाद  शेखर के माता पिता ने कहा --हमे और हमारे बेटे को सविता  पसन्द है। अब आप लोग बताएं .....
 सुबीर ने कहा -हमारी बहन कोई लँगड़ी ,लूली नहीं है उसके लिए रिश्तों की कमी नहीं है।  हमे ये रिश्ता मंजूर नहीं है।
 माँ ने हाथ जोड़े और कहा -आप लोग कहीं और प्रयास करें 
 सविता ने कहा -  मेरे घर जो आपका अपमान हुआ उसके लिए हाथ जोड़ कर क्षमा चाहती हूँ।
 पर शादी तो मुझे करनी है  और किसी ने मेरी मर्जी पूछा ...
ही नहीं .....
 चलो मैं ही बता देती हूं ।मुझे जीवनसाथी के रूप में नीलेश पसन्द है । अगर मेरे घर वालों को ये रिश्ता मंजूर नहीं   और। यदि आप  लोग चाहें तो कोर्ट मैरिज के लिए अर्जी दी जा  सकती है । आप लोग सोच कर बता दीजिएगा ।
 उनके जाने के बाद   सुबीर बहन पर भड़क गया -तुम्हे बड़ों की इज्जत मान मर्यादा का जरा भी ख्याल नहीं हैं। नौकरी क्या मिल गई मनमानी करोगी।
पिता अपाहिज हैं तो क्या हुआ । अभी मैं बड़ा हूँ  । हम लोग  तुम्हारे लायकअच्छा घर वर ढूंढ रहे हैं न.....
माँ  जिसकी ममता का केंद्र सुबीर ही रह है बोली ---अरे 14 साल से कमा कर  बेटे की तरह पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रही हैं। तू भी तो कुछ कमा  ...दो बच्चों का बाप बन गया है 
सुबीर --नौकरी नहीं मिलती तो क्या करूँ ? 
 माँ ने कहा ....
        सविताने बैंक से लोन  लेकर मोबाइल शाप  मेन मार्केट में खुलवा दी उसे भी चौपट कर दिया । नौकरों के भरोसे दूकान छोड़ कर निठल्लों के साथ दिनभर क्रिकेट खेलेगा तो दुकान चलेगी क्या ???
सविता वहां से उठकर अपने कमरे में चली गई 
 तब माँ ने फिर कहा ----जब जब कोई लड़के वाले आये ।सबमे कुछ न कुछ कमी  बता कर भगा दिया । मेरी भी मति मारी गई थी ,कि तेरी बातों में आकर और अच्छा... और  अच्छा .. ..   .. के चक्कर में आज  सविता पैंतीस साल की हो गई । हमारे मरने के बाद उसका कौन सहारा बनेगा ???
       एक महीने बाद वसन्त पंचमी के शुभ मुहूर्त में  नीलेश और सविता ने अपने माता पिता  का आशीर्वाद लेकर शादी कर ली और वासन्ती बहार का खुशनुमा झोंका  अपने आँचल में समेट लिया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
--------------------- ---- *-----------------*------+--+---+

No comments:

Post a Comment