Wednesday, 30 December 2020

लघु कथा श्रंखला 26-- लम्बी छुट्टी,दो गलतियाँ नूर शबनम की

लघुकथा समारोह 49 /द्वितीय
 आदरणीय संचालक महोदय एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर .....
शीर्षक - *माँ की लंबी छुट्टी*
जब से दीप्ति की शादी  हुई है आज तक इस घर  की जिम्मेदारि यों से उसे  कभी छुट्टी नहीं मिल पाई है।
          एक ही शहर में में मायके और ससुराल  होने के कारण तीज -त्यौहार  ,बीमारी -हारी पर वह मायके
तो जरूर जाती है ।
      पर रात होने तक सोमेश उसे लेने आ जाते।दीप्ति की बहनें दूसरे शहरों से मायके आती हैं तो चार छै दिन रुक जाती हैं मायके में।दीप्ति के नसीब में
तो वह भी नहीं है।
 सोमेश बैंक में नौकरी करते हैं ।उसी शहर के आसपास के शहर में प्रमोशन  और ट्रांसफरपर चले जाते ।सास ससुर की सेवा, निमेष -नीलू का जन्म उनकी पढ़ाई लिखाई में कब वह बहू से मम्मी औऱ
सास बन गई पता ही नहीं  चला।
       इस बार सोमेश का ट्रांसफर दूसरे डिवीजन के  दूर शहर में हो गया। अप-डाउन करते अब बाल सफेद होने लगे। अब सेहत भी ठीक नहीं रहती ।
 पहली बार  सोमेश जी पत्नी को साथ चलने के लिए समान पैक  करने को  कहा तो उनकी सासु माँ चिंता जताते हुए बेटे से कहा--दीप्ति तुम्हारे साथ चली जायेगी ।तो इस बुढ़ापे में हमारा ध्यान कौन रखेगा ???
     निमेष की बहू तो नौकरी करती है, उससे उसके अपने बच्चे नहीं सम्हलते तो  हमारी दवाई,समय पर पर भोजन की व्यवस्था कैसे होगी ?
निमेष की पत्नी वनिता  ने कहा -- माँ जी चली जायेगी तो आसिता औऱ रंजन को स्कूल पहुंचाने और लेने कौन जाएगा ?   सुबह से उनका टिफिन कौन बनाएगा ??
       निमेष  ने अपना सुझाव देते हुए प्रश्न पूछ ही लिया -- पापा आपकी तबियत भी ठीक नहीं रहती  क्या आप वालेंटरी रिटायरमेंट लेकर साथ  ..... ??? इस बीच प्रश्नों के व्यूह में छटपटाती दीप्ति ने अपना निर्णय  सुना दिया-----
 मैं  पहली बार अपने पति के साथ लम्बी  छुट्टी पर जा रही हूं । नौकर ढूंढ कर  तुम  यहाँ का सब काम मैनेज कर लेना ।
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  डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर -छ ग डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर -छ ग

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लघुकथा समारोह 50 (द्वितीय ) 
 कथा प्रेमी मित्रों को सादर .....

 शीर्षक--" नूर है शबनम  की "

आज  उसकी बेटी  अनवर का रूप लेकर उसकी गोद  मे आई है। उसने  अपने प्यार की निशानी  शमा को जन्म दिया है । दो महीने पहले ही  कोरोना की बीमारी से  अनवर की अकाल मौत  हो गई ।तब से वह सदमे में आ गई है  और से इसी अस्पताल में भर्ती है । शबनम की माँ उसके  बारे में बताया  --- शबनम और अनवर  ने साथ - साथ ही  ग्रेजुएशन किया । एक दूसरे को चाहत ने उन्हें   विवाह बंधन में बांध दिया । अनवर  बड़े बाप का बेटा था । उसके माता पिता अपने बराबर  की हैसियत वाले  अपने भाई की बेटी से उसकी शादी करना चाहते थे । पर वो जादा पढ़ी नहीं थी ।    उनके ससुराल वालों ने उसे बहू के  रूप में कभी स्वीकार ही नहीं किया।
         पिता ने अनवर को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया । उसे अपना घर छोड़ना पड़ा ।
 शबनम के मामू इस आगे बढ़ कर उन्हें आश्रय दिया , जो डॉक्टर हैं  उनका अपना क्लिनिक है । अनवर वहाँ पर काउंटर में पर्ची बनाता , और अकाउंट का काम भी सम्हालता था।
             उन दोनो का सपना था कि   बेटा हो या बेटी  बस  एक ही  सन्तान पैदा करेंगे । उसे खूब पढा कर  मामू की तरह डॉक्टर बनाएंगे । उसे एक नेक दिल इंसान बनाएंगे ।सन्तानों की फौज  खड़ी नहीं करेंगे।  एक ही बच्चे को इक्कीस के बराबर विचारवान, गुणवान  बनाएंगे ,जो दुनियाँ में उनका नाम रोशन करे  जैसे कि एक चाँद पूरे संसार को रौशन करता है ।
             शबनम ने उस बच्ची का नाम रखा नूरबानो । यह बच्ची अनवर की शक्ल सूरत लेकर आई है । नानी ने नाम दिया शमा । अनवर का  प्रति रूप पाकर  उसमें जीने क का हौसला
आया । उसे लगा कि अनवर फिर से लौट आया है ।  उसके अधूरे सपने  को  अब शबनम को पूरा करना है ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
 रायपुर ,छ ग
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लघुकथा समारोह -51 (प्रथम )

"मकान  की रजिस्ट्री "
         अर्चना जी शासकीय विद्यालय से सेवा निवृत्ति के बाद समाज सेवा में लग गई । महिला कल्याण समिति की अध्यक्षा हैं । बेटी की शादी हो चुकी है
 बेटा अपने परिवार के साथ विदेश में सैटल हो गया।  बढ़ती उम्र होने के कारण  अब शरीर थकने लगा है,और अकेला पन कष्टकर लगने लगा हैं।   
              फिर कोरोना की डरावनी बीमारी और अनिश्चित कालीन लॉक डाउन ने जीवन की दशा और दिशा ही बदल डाली ।  जांजगीर से अपना मकान बेचकर अब उन्होंने बेटी के पास जाने का मन बना  लिया है ।
           मकान  बहुत अच्छे लोकेशन में है । बेचने की बात सुनते ही कई खरीददार आने लगे । पर उस मकान से उनका इतना लगाव है ,इतनी यादें जुड़ीं हैं, कि उसे किसी अच्छे व्यक्ति के हाथ मे बेचने  की चाहत मन मे है ।
                        उनकी बहुत पुरानी  सखी के साथ मकान खरीदने की बात तय हुई। जैसा कि आम तौर पर लोग स्टाम्प ड्यूटी बचाने के  लिए मकान का वास्तविक रेट से कम लिखवा कर     इकरारनामा बनवाते हैं । वकील की सलाह से क्रेता पक्ष ने भी 40 लाख में सौदे की बात लिखवाई  जबकि सौदा 60 लाख में तय हुआ था । 
           ललिता जी के इकरारनामें पर अर्चना जी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और कहा ---  बहन मैं सरकार से धोखा नहीं कर सकती। इसी सरकारी नौकरी की बदौलत  मैंने अपना और अपने बच्चों का पालन पोषण किया है।मैंने इज्जत कमाई है ।   
मेरा मन इस बात के लिए गवाही नहीं देता । आपको मकान खरीदना है मुझे बेचना है । तो आप दूसरा एग्रीमेंट बनवाइये।  40 लाख से ऊपर जो स्टाम्प ड्यूटी का खर्च आएगा उसे रजिस्ट्री के समय मैं चुका दूँगी । ये मेरा वादा है । लेकिन एग्रीमेंट 60 लाख की बिक्री का ही बनेगा ।
    उनके कहे अनुसार पहला एग्रीमेंट रदद् किया गया । पुनः 60लाख की बिक्री का एग्रीमेंट बना । 4 लाख रु के चेक अग्रिम राशि दी गई ।
रजिस्ट्री के समय 56,लाख का चेक ललिता जी ने उन्हें दिया ।तभी धन्यवाद सहित1.80000 रु का चेक अर्चना जी ने  ललिता जी के हाथ में दिया । दोनो  खुशी खुशी गले मिले  मकान की चाबी का लेनदेन  हुआ----
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 
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                :
लघुकथा समारोह 52 (द्वितीय)
लघुकथा प्रेमी स्नेही मित्रों  को सादर समर्पित  .........
     शीर्षक -- दो गलतियाँ
    
    मदनलाल महतो  स्कूल में गणित का व्याख्याता हैं ।लोग जब उनसे पूछते  आपके कितने  बच्चे हैं ? हमेशा कहते  दो बेटे और दो गलतियां। इसके पीछे उनका गणित हैं यह है कि,  बेटियों के पीछे किये गए खर्च  की वापसी की कोई उम्मीद नहीं होती । बेटों पा किया गया निवेश सूद सहित वापस मिलेगा ।
     यही  कारण है कि बेटियों को गांव  के सरकारी स्कूल में पढ़ाया। बेटों को  बड़े शहर मेंअंग्रेजी माध्यम केपब्लिक स्कूल में पढ़ाया ।
 बेटों को पढ़ाना पिता की महत्वाकांक्षा रही ,लेकिन बेटों के पढ़ने में मन नही लगा । कालेज की पढ़ाई। अधूरी छोड़ कर वापस आ गए।
 इधर दोनो बेटियों की गांव में शादी कर  दिया बड़ी बेटी  को आंगनबाड़ी में नौकरी मिल गई । छोटी ने घर पर ही  किराने की दुकान खोल ली।  दोनो सुखी जीवन बिता रही है ।  उनके कुलदीपक  घर का  सामान बेचकर  ऐश कर रहे हैं।
              महतो जी जिन्हें गलतियां बुलाते रहे हैं वे हीआज उनका पालनहार बनी हुई हैं ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ  ग

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