Sunday 7 February 2021

लघुकथा श्रृंखला --- 28 पुत्रदान बनाम कन्यादान सगाई टूट गई , एक वेलेंटाइन ऐसा भी, कोख किराए पर

बी. एस सी .कम्प्यूटर की परीक्षा के बाद वैभवी  को बंगलोर की अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गई । माँ पापा भी  बहुत खुश हुए ।  बड़ी लड़की बाकी बहनों के लिए आदर्श होती है।  अब बाकी दो भी पढ़ लिख कर नौकरी करें ,तो उनकी शादी की आधी चिंता दूर हो जाएगी।  खिलौने की फैक्ट्री में पिता की नौकरी है, बस किसी तरह गुजारा चल जाता है।   
       बेटी नए जमाने की सोच वाली बड़ी महत्वाकांक्षी और चतुर चालाक है ।  अपना काम निकलने की कला में माहिर है । उसे पता चला कि आफिस में उसका बॉस  अपनी माँ का लाडला इकलौता बेटा है ।उसकी   बहन की शादी हो चुकी है।पिता के आकस्मिक निधन के बाद माँ को बैंक में  अनुकम्पा नियुक्ति मिल गई है।  
      उसने बॉस पर डोरे डालना शुरू किया । दिखने में सुंदर और वाक चातुर्य में पारंगत है । शादी के पहले ही  अपनी एक सहेली के साथ   लड़के का घर  मकान सामाजिक स्टेटस देख आई।  उसने समझ लिया कि सास  तो सीधी सादी  है । लड़के पर परिवार की कोई जिम्मेदारी नहीं , पिता की प्रॉपर्टी का इकलौता वारिस  ,माँ भी कमा रही है ।
             उसने  लिव इन रिलेशनशिप में उसके साथ रहना शुरू कर दिया । पद्मा जी के पास लड़की वालों के ऑफर आने लगे  ।वह जब भी शादी के बारे में पूछती बेटा टाल जाता।  इस बार उसके भांजे की साली का रिश्ता आया।वह भी बंगलोर के किसी कम्पनी मेंआई टी इंजीनियर है।  उन्होंने बेटे को सरप्राइज देने की सोची । उसे बिना बताए बंगलोर पहुंच गई।  तब जाकर बेटे के रोमांस के बारे में पता चला । एक सप्ताह के भीतर वहीं उनके दोस्तों की उपस्थिति में आर्य समाज मंदिर में विधि विधान से शादी करवा दी। और बेटे बहू को साथ लाकर अपने शहर शहडोल के एक बड़े होटल में पार्टी करवा दी ।
 उसके बाद से लड़की के माँ बाप बेटी दामाद के साथ ही रहते हैं। बहू ने अपनी दोनो बहनों को ग्रेजुएशन करवाया । उनकी शादी भी करवा दी ।
           पद्मा जी अब रिटायरमेंट के बाद से वृद्धाश्रम में रहती हैं।अपनी सारी संपत्ति  गायत्री सेवा सदन को दान कर दिया है।मरणोपरांत देहदान     
 का फॉर्म भर दिया है।बेटा बहू न कभी फोन करते हैं न माँ की कोई खोज खबर लेते । जब भी बेटे बहू की याद आती  पद्मा जी ही फोन लगा लेती।  उनके पास इस बूढ़ी माँ के लिए कोई वक्त नहीं है।
           पद्मा जी  जब पोता हुआ तो बंगलोर गईं  ।पोते को चैन दी बहू को झुमके साड़ी सलवार सूट दिया ।  सप्ताह भर रहकर आई । बहू न खाने के लिए पूछती । न सीधे मुंह बात करती है ।लेकिंन जब बेटा घर पर होता है , दिखावा करने से नहीं चूकती ।
पद्मा जी की बेटी  ने उन्हें  रिटायरमेंट के बाद कई बार कहा - माँ आप भी हमारे पास आ जाइये  हमारी सासु भी रहेगी आप दोनो रहना  ।हम  दोनों नौकरी पर चले जाते हैं दोनो को एक दूसरे का साथ मिलेगा ।  
पद्मा --नहीं    बेटा सबका स्वभाव ,पसन्द ,रुचियाँ अलग होती है  ।मैं नही चाहती आपलोगों के मन में  कोई कड़वाहट आ जाए । 
मुझे लगता है कि मैं कन्यादान  बनाम पुत्रदान कर आईं हूं।
क्योंकि शादी में वैभवी के माता पिता बहने कोई भी तो नहीं आये  मैंने बुलाने और उनसे बात करना चाहा था पर वैभवी ने मना कर दिया था। उसकी शादी तो बेटे के साथ  उसीकी मर्जी से करवाई है । तो कन्यादान बनाम पुत्रदान हुआ न...
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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लघुकथा समारोह -56 /प्रथम
 शीर्षक   -- " सगाई क्यों टूटी "
आज से चार महीने पहले मेरी सबसे प्यारी सहेली मंजू सगाई हुई ।  मंजू गोरी लंबी सुंदर ग्रेजुएट है।उसके होने वाले पति समीर बैंक में जॉब करते हैं । घर में सब बहुत खुश हैं शाम को हवन पूजन के बाद अंगूठी की रस्म हुई। पार्टी हुई। 
चार महीने के बाद वसन्त पंचमी के शुभ मुहूर्त में शादी की तारीख तय हुई।तब मोबाईल तो दूर लैंडलाइन भी नही  था।पर्व त्यौहार में उसके ससुराल वाले आते तो मंजू को सामने जाने की मनाही थी। छोटी बहन बीनू  ही  उनका आवभगत करती ।  समीर का घर भी उसी शहर में है ।बीनू के कॉलेज का तरफ ही है ।उनके घर कुछ पकवान , मिठाई  ,गिफ्ट भेजना होता तो बीनू ही जाती ।मार्केट  जाना है तो बीनू  , दीदी के लिए जीजाजी को साड़ी खरीदना हो ,उनके घर वालों को अपनी होने वाली बहू के लिए गहने खरीदने हो तो बीनू ही उनके साथ हाजिर हो जाती ।
 बीनू अभी b,sc प्रथम वर्ष में पढ़ती है। दिखने में अच्छी है पर मंजू के सामने कहीं  नहीं टिकती। शादी की  तैयारियां दोनो पक्ष में जोर शोर से चल रही हैं । जब एक महीने पहले कार्ड छपवाने के लिए डिजाइन चयन का समय आया तब से  हमेशा हर काम मे आगे रहने वाली बीनू गुमसुम रहने लगी । उसने अपनी माँ को बताया कि वह और समीर एक दूसरे से प्यार करते हैं।और ये शादी मंजरी याने मंजू से नहीं  विनिता याने बीनू के साथ होगी।  
       बीनू के यह कहते ही घर मे भूचाल आ गया ।  बाबा ,चाचू ,दादी  पापा तो एकबारगी  सक्ते में आ गये । 
   पिता  ने खींच के  चार तमाचे बीनू के गाल में जड़ दिए ।बाबा ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है ? सगाई बड़ी के साथ और शादी छोटी के साथ ??
  चाचू ने सबको समझा कर शांति से समस्या सुलझाने की बात कही ।
होने वाले दामाद को मंदिर में बुलाया गया ।  उससे पूछा गया कि बीनू जो कह रही है क्या सच है ??
      उत्तर में सिर झुका कर समीर ने अपनी स्वीकृति बताई ।चाचू ने कहा आप इस बात को अपने घर वालों को बताइए । हमे क्या करना है वो हम देखते हैं ।  समाज वालों को जवाब देना है, मंजु को समझाना होगा । बड़ी के रहते छोटी की शादी  कैसे कर दें  ?? आगे चल कर उसकी शादी में समस्या तो आएगी । सगाई क्यों टूटी 
 ये बात किस किस को समझाएंगे ??
      मंजु ने कहा --आप लोग मेरे तरफ से निश्चिंत रहिये । सगाई के पहले या बाद में मैं समीर से मेरी प्यार मोहब्बत वाली कभी कोई बातचीत ही नहीं हुई  ।
 तो मेरा दिल उससे जुडा ही नहीं तो टूटने का सवाल ही नहीं उठता ।
    बाबा ने कहा ये शादी पोसपोंड किया जाय ।जितनी जल्दी हो सके, मंजु के लिए अच्छा लड़का ढूंढा जाय  
मंजु तो बीनू से ज्यादा सुंदर सुशील, पढ़ी लिखी है। तो हमे   मुश्किल नही होगी । फिर दोनों बहनों की शादी एक साथ कि जाये  । 
       ऐसा ही हुआ मंजु के लिए प्रोफेसर वर मिल गया दो महीने बाद दोनों बहनों की शादी हुई ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ 
लघुकथा समारोह 56 /प्रथम
 आदरणीया संचालक महोदय एवम पटल के लघुकथा प्रेमियों को सादर ....

" एक वेलेंटाइन  ऐसा भी"
  एक दिन मेरी किशोरी  पोती   नव्या ने पूछा --   दादी क्या आप के जमाने मे भी वेलेंटाइन डे होता था ??
   नहीं नव्या  आज कल की तरह सिर्फ ब्वॉयफ्रेंड या गर्लफैंड के बीच   प्यार के इजहार  के लिए लाल गुलाब ,टेडी बीयर या दिल  के उपहारों  का आदान प्रदान  हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं ।
 नव्या --हाउ बोरिंग न---?फिर क्या मजा आता होगा ।
 दादी -  प्यार का मतलब तो परवाह होता है ।कौन किसकी खुशी की कितनी परवाह करता है, मन का मन से जुड़ाव देखा जाता है ।
                  बिना शर्तों के आपसी विश्वास,बिना उम्मीद के मदद करना, एकदूसरे की सुविधा और खुशी का ध्यान रखना । जो किसी हर  रिश्तों  में रस भरता है।
  नव्या -- अच्छा दादी  सच बताइए न  आपका कोई वेलेंटाइन नहीं था ?? 
  दादी --  आज भी मेरा वेलेंटाइन है  ।
नव्या--- आपने पहली  बार कैसे सेलिब्रेट किया था ??
 तुम्हारे  पापा तब ग्रेजुएशन के लिये इंदौर चले गए थे , और बुआ नागपुर में जॉब करती थी ।  मेरे पड़ोस में  एक गुजराती परिवार था ।  उनके आंगन में  बड़ा सा झूला लगा था जिसमे बैठकर शाम को प्रायः  मधु और मैं  चाय पिया 
करते थे । उस दिन वेलेंटाइन डे था। सुनील जी  उनकी पत्नी मधु और मेरे लिए चाय बनाकर लाये और चाय का कप पकड़ाते हुए  अदा से मुस्कुराते हुए बोले -- सुधा हैप्पी वेलेंटाइन डे ---
 मेरी वेलेंटाइन बनोगी  न? 
 मैंने कहा --- क्यों नही ??अपनी बीबी से पूछ तो लो ??उसे कोई एतराज तो नहीं ......
 मधु---अरे नहीं--बिल्कुल नहीं -- 
 और उस दिन से हम बन गए एक दूसरे के वेलेंटाइन  
     ये वो दौर था जब रिश्ते दिल से जुड़ते थे और साफ सुथरे होते थे । कोई दिखावट -बनावट नहीं होता।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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जितना भी ग़म गहरा हो ,
      अपनों का ही एहसास दिलाते हैं !
              घनी- काली रात में ही अक्सर
                        तारे ज़्यादा झिलमिलाते हैं !
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                सुप्रभात मुक्तक लोक में
               सभी स्नेही सुधी जनों का 
       मुस्कुराते हुए, गीत गाते हुए, गुनगुनाते हुए
                   सहर्ष स्वागत 
     आत्मीय अभिनन्दन !

  
सुख-दुख का संगम है जीवन, नित्य कहे प्रभात ,
दुख से सीखें संयम साथी, सुख का दें सौगात !!

              ✍<>©<> श्यामल सिन्हा !👮!
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लघुकथा समारोह 57 /प्रथम 

" कोख किराये पर "
  20 साल की झूलनी के घर का  बहुत ही बुरा हाल है ।अकाल ,बाढ़, बेरोजगारी  और भुखमरी  झेलते हुए  उसके पति ने खाट पकड़ ली ।  इलाज के अभाव में ससुर  गुजर गए ।  शहर से  उसकी बहन रधिया गमी में आई है। उसे बहन के घर की हालत देखी नहीं गई।
 उसकी सास जंगल से कभी लकड़ी, कभी महुआ,सरई ,कंद मूल ,गोंद आदि  लाकर   बेचकर किसी तरह भोजन का जुगाड़ करती । 
तब रधिया झुलनी को अपने साथ चलने को कहने लगी। मैं काम पर लगा दूंगी। । रधिया तीन चार घरों में झाड़ू ,पोंछा,बर्तन साफ करती है । बचा हुआ खाना,पुराने कपड़े भी मिल जाते हैं। उसका जीजा ईंट भट्ठे में काम करता है।  काम मिलते ही पति और सास को जल्दी ही साथ ले जाने का वादा किया ।  सास ने उसके दो साल  के  बिट्टू को अपने पास रख लिया ।कहा - बहू मैं अपने बेटे के साथ बिट्टू को भी जान से ज्यादा सम्हाल कर रखूंगी । तुम मन लगा के काम करना। जितनी जल्दी हो सके  टिकिट का पैसा जमा करके हमे भी वहीं बुला लेना ।  मैं भी रोजी  मंजूरी कर लूँगी। 
             झूलनी रधिया के साथ दिल्ली आ गई।  बहन के साथ   ही रहती ।  उसे 4 -5 घर मे काम दिला दिया ।  जहांअच्छे पैसे खाना, पुराने कपड़े मिल जाते।उसका रंग  रूप निखर आया  बदन भर आया। गांव के स्कूल में वह   छटवी तक पढ़ी है । दिखने में अच्छी काम करने में हुशियार है । वह प्रायः रात में सोचा करती।पैसे जमा करके छोटी सी झुग्गी बनाएगी, पति और सास को यहां ले आएगी  बिट्टू को इस्कूल में पढ़ने भेजेगी । अभी काम करते तीन महीने ही हुए हैं । एक दिन बत्रा साहब की माँ ने  कहा--   झूलनी  तुम साफ सफाई से रहती हो ।किसी बात को जल्दी समझ
 जाती हो । मेरी बेटी को सन्तान नही है ।वह माँ नही बन सकती है  उनके पडौलत की कमी नहीं है।
 उनके लिए तुम अगर अपना बच्चा ...
झूलनी बोली --नही  मैं अपने बिटटू को नही बेच सकती।
       हमे तुम्हारा बिट्टू नहीं चाहिए ।
उनके लिए  तुम अगर अपनी कोख किराये पर  दोगी , तो हम तुम्हारे लिए दो कमरे का अच्छा घर बनवा देंगे।  तुम भी यहाँ अपने परिवार के साथ मे रह सकोगी।
   मेरी बेटी की जगह तुम उसके बच्चे को जन्म दोगी ।तुम्हारा इलाज खर्च,खाने रहने की व्यवस्था हम करेंगे ।
  कोई  गलत काम नहीं करना पड़ेगा। 
   झुलनी  ने तो  कुछ हजार से ज्यादा रुपये  देखा भी नहीं था ,इस शहर में खुद के घर की वह सोच भी नहीं सकती थी। बच्चा पैदा करना तो औरत का काम है ।लेकिन बिना गैर मर्द से सम्बन्ध बनाये बिना कैसे हो सकता है ? ये बात  उसे समझ नहीं आई ।
 मालकिन की बेटी यही समझाने लेडी डॉक्टर के पास ले गई ।  आजकल डॉक्टरों ने ऐसे उपाय खोज लिए हैं । कि   बिना  आपरेशन के ,बिना बेहोश किये  ,बिना किसी पुरुष से सम्पर्क किये ।वह उनके बच्चे को अ जन्म दे सकती है।इसका वीडियो भी उसे दिखाया गया। तब वह राजी हो गई। 
    उसे स्टाम्प पेपर पर दस्तखत कराया गया कि बच्चा होने बाद  बच्चा  मालकिन की बेटी को देना होगा।  डॉक्टरी जांच के बाद  झुलनी   कृत्रिम   रूप से माँ बनने की प्रक्रिया से   गुजरी । । उसे तो पता ही नही चला कि वह कैसे गर्भवती बनी। इन दिनों उसकी विशेष  देखभाल हुई ।फल मेवे बढ़िया स्वदिष्ट  ताजा भोजन  दिया गया ।   निश्चित समय में सामान्य प्रसव से  बेटा हुआ । जिसे पैदा होते ही  अलग कमरे में मालकिन की बेटी   को दे दिया गया।  
   बत्रा साहब  गाड़ी किराया करके झूलनी के पति सास  और बिट्टू को  लेने रधिया को भेज कर  नए घर में बुलवा दिया । बैंक में झूलनी के नाम से खाता खुलवा कर.उसके पैसे जमा करवा दिए ।  अब  सबको देखकर झूलनी भी खुश है । उनकी मालकिन भी बहुत खुश है।
 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर  छ ग
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