: सार छंद :- 16 - 12
सहज प्रेम ही सुखकर होता, जीवन यही सँवारे
करें इष्ट से प्रीत सदा ही, नैया पार उतारे।
उनसे मन को जोड़े रखना ,सबसे हितू हमारे
घोर कष्ट में भक्त पड़े जब,प्रभु ही तो रखवारे ।
सरसी :--- 16 -11
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मुस्कान हमारे अधरों पर, आती बिना प्रयास
सहज स्वतः भर देती मुख पर ,इक अनमोल उजास ।
सायास अगर लाई जाये,नहीं प्रभावी हास।
जोड़ सके ना रिश्तों को वह, करती हमे उदास ।
: रखें लक्ष्य मन में सभी,प्यार खुशी सहयोग
खुशबू सबको चाहिए ,पेड़ न रोपें लोग
प्यार ज्ञान सम्मान की,होती सबको चाह
खास व्यक्ति ही पा सकें, मुश्किल है यह राह।
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
दोहा ---13 - 11
सुंदर तेरी दृष्टि है,प्यारा लगे जहांन
प्रीत दिवस अब पास है,मुझको प्रेमी जान।
बिना शर्त यदि प्रीत हो,जब तक तन में प्रान
सारा जग प्यारा लगे,प्रेम बने वरदान:
आल्हा छंद :----16 --15
आन पड़ा था विकट समय तब, पांच माह की बच्ची छोड़
पिता अकेला निकला घर से,ढूढें दूध नियम को तोड़।
हुई संक्रमित ड्यूटी पर माँ, अब है फर्ज नेह कीहोड़
नम आंखों से मन में कहती , बेटी जाऊँ अब मुख मोड़।
नत मस्तक थे लोग सभी तो,उस जननी को करें सलाम
कोरोना का युद्ध लड़े वह, जीवन है सेवा के नाम ।
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2 122 2 12 2 212
प्रीत तेरी ये दिखाता फूल है
भाव में के ये बताता फूल है।
रोज खिल कर ताजगी ये बांटता
हर सुबह मुझको जगाता फूल है।
जिंदगी का सार तो है समर्पण
गुनगुनाता कान में यह फूल है।
बांटता खुशियां जगत को प्यार से
धूल में मिलकर बताता फूल है ।
खुश रहे प्रिय यत्न करता है सदा
प्यार का मतलब सिखाता फूल है।
जिंदगी थोड़ी सही शुभ कर्म कर
नैन में सपने जगाता फूल है ।
च नागेश्वर
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मैं तो उड़ चली रे परदेश
मेरे दिल में बसा है देश
मेरी धरती मेरा अम्बर
मन में बसा सारा परिवेश
आसमान में उड़ती जाती
नजरों से ओझल होता देश
सांसों में है इसकी खुशबू
जाने कब लौटूं मैं देश
इसकी मिट्टी-इसकी वायु
इससे बढ़कर नहीं विदेश
इसका कण कण मुझे बुलाता
रवि किरणें- देती सन्देश
दिल के टुकड़े जा बैठे हैं
उनसे मिलने चली विदेश
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
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1222. 1222 1222
कसम मेरी तुम्हें ,कुछ तो कहो,चुप ना रहो
अबोला पन तुम्हारा है ,सजा चुप ना रहो।
सही जाती नहीं चुप्पी ,जरा कुछ तो कहो
क्षमा कर दो हुई जो ,भूल अब चुप ना रहो।
सुहाना प्रीत का मौसम , गुजरता जा रहा
गले लग कर मिलाएं चोंच ,अब चुप ना रहो।
खिले हैं फूल भौंरे, गीत गाते हैं सुनो
दुहाई दे रहा मौसम, प्रिये चुप ना रहो।
नहीं परिहास ये मेरा , सुनो अब मैं चली
महकती ये हवा कहती, सनम चुप ना रहो।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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2122. 2122 2122
गीतिका -------
नृत्य करती सी लगे,मधुमास की जादूगरी
संग तू है तो जगे मन प्यार की जादूगरी।
मोहता है मन तुम्हारा रूप आ लग जा गले
केश तेरे मैं सजा दूं जागती रति राज की जादूगरी।
चाँद सा मुखड़ा प्रिये मुड़ तो जरा मैँ देख लूं
है नशीली ये हवा मन परिहास की जादूगरी।
घायल करे तीर नयनों के चलाकर आज तू
धड़कनें वश में नहीं प्रिय मनुहार की जादूगरी।
गुनगुनाते भ्रमर के मधु गीत की यह चातुरी
छंद रचती चूड़ियां -गलहार की यह जादूगरी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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मुक्तक-लोक
समारोह- 362 चित्र-मंथन समारोह
बुधवार 19,05,21
रथ प्रलय का दौड़ता है रोक लो
हो सके तो राह इसकी रोक लो।
पवन नीर धरा कुपित हम पर सभी
सिंधु में हलचल मचा है रोक लो।
रोग बनकर प्राण घाती रूप में
यह डराता है सभी को रोक लो।
बाढ़ बन कर ये डुबाता है कभी
बुद्धि कौशल से इसे अब रोक लो।
आग बनकर यह जलाता है सभी
अग्नि रोधी बन इसे सब रोक लो।
भूल जो अब तक हुई है भोगते
एक जुट हो कर इसे तो रोक लो।
द्वेष मन से दूर हो कुछ ऐसा करें
यत्न कर अब यह तबाही रोक लो।
आपदा यह व्यूह रचकर घेरता
व्यूह भेदी वीर वर रथ रोक लो।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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मुक्तक लोक चित्र मंथन ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
* गीतिका *
बावली सी चल पड़ी हूँ, चाँद पूनम का दिखा है
बावरा मन कह रहा है , चाँद पूनम का दिखा है।
ज्वार मन में उठ रहा है, प्रिय मिलन की आस जागी
सागर मचल व्याकुल करे , चाँद पूनम का दिखा है।
रोक सकता है नहीं तूफ़ां , चल पड़े हैं ये कदम जो
धड़कनें वश में नहीं हैं ,चाँद पूनम का दिखा है ।
रेत पसरी बेसुधी में , चूमती मेरे कदम को
दूर से प्रियतम पुकारे , चाँद पूनम का दिखा है।
आज कागा द्वार बोला , मन्नतें पूरी करो प्रभु
रात उजली मन प्रफुल्लित , चाँद पूनम का दिखा है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दिनांक 29 , 4, 2021
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साप्ताहिक आयोजन - 202
बुधवार से शुक्रवार
स्वतंत्र दोहा
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अपनी मिट्टी की महक,ले आई परदेश ।
त्यौहारों की धूम वह,सुन्दर सा परिवेश ।
सदा ही दिल में रहता , मेरा हिंदुस्तान
पूरा विश्व कुटुम्ब है,कहता देश महान
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
बोस्टन ,U S A
जल रही शमा भी रोशनी के लिए
ढल रही है रात रोशनी के लिए।
इक जुनून मन में वो लिए चले
शीश ये कुर्बान माँ भारती के लिए
इसी की कोख से जन्म हमने लिया
जिएं -मरें हम सभी देश के लिए
खड़े जहां वहीं से बढ़ें कदम कदम
कुछ तो करें देश के विकास के लिए
कौंधती दामिनी कह रही है सदा
चमक रहा ये रवि रोशनी के लिए
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
दिनांक 29 , 4, 2021
आज की सुबह जब आई है,
ख़ुशियों की सौगात ले आई है |
कदम चूमे हरदम ख़ुशियाँ तो,
जन्म दिन की अशेष बधाई है ||*
हरदम संग बहारें हों, और ख़ुशहाल नज़ारे हों |वीरानी का कोई काम नहीं, सलमा चाँद सितारे हों ||*****---***--****-****--**-*-*****---
शब्द विवश हैं
नैन मुखर हैं
मूक हुए वाचाल अधर
भटक गए हैं
बागी अक्षर
टूट रहे हैंबंधन
कैसे दू आमंत्रण
क्या दूँ सम्बोधन
व्याकुल है मन
पाने तेरा दर्शन
यादें करती क्रन्दन
मीत मेरेतुम आकर
सार्थक कर दो जीवन
डा च नागेश्वर कोरबा
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आधार छंद- विधाता
मापनी – १२२२ १२२२ १२२२
समांत- ने तो, पदांत- हमीं
सहेजा प्रीत को अब तक हमीं ने तो
रखा दिल में हिफाजत से हमीं ने तो.
दुआ कर के गुजारी है उमर सारी
निभाया है शराफत भी हमीं ने तो.
हजारों रंजिशें मन में पले हो पर
रहे ना फासले चाहा हमीं ने तो.
सजाएं हम घरौंदा मिल यही सोचा
जलालत से उबारा तब हमीं ने तो.
कटे जब जिंदगी के पल सवालों में
सवालों का निकाला हल हमीं ने तो
डॉ चंद्रावती नागेश्वर
रायपुर, छत्तीसगढ़
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भोर वंदन
भोर वंदन कर रही चंद्रावती
कर रही मनभाव अर्पित चंद्रावती.
मंद मंद बहरे ही बसंती की बयार
सर्वहित कामना कर रही चंद्रावती.
उठो सभी हमें सुबह नई जगा रही
हो दिवस शुभ यही कह रही चंद्रावती
शुभ स्वागतम कह रहे हैं खग समूह
प्रातः वंदन करें कह रही चंद्रावती.
गर्मी में सावन सी हरियाली है.
जीत के जश्न की बात निराली है
भ्रष्टाचार के तांडव से भयभीत
काली रात अब जाने वाली है
अमराई में कूक रही है कोयल
मिठास आमों में भरने वाली है
ऋतु बसंत दूर है फिर भी
झूम रही पेड़ों की हर डाली है
हर्षित सारे दीप जले नैनों में
सबके चेहरों पर खुशहाली है
चंद्रावती नागेश्वर रायपुर
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