शीर्षक ---"पहल रिश्ते सुधारने की "
सीमा को यह समझ में नहीं आ रहा है कि-- आज उससे ऐसी क्या गलती हो गई ? रूपेश उससे बात ही नहीं कर रहे है । अरे कुछ बोले तभी तो पता चलेगा ।आगे से वह ध्यान रखेगी कि गलती न दोहराए । माफी मांगेगी । उससे ये अबोला पन सहा नहीं जाता ।
रूपेश की हमेशा की यह आदत है कि वह नाराज होता है तो बोलना बन्द कर देता है । फिर मनाते रहो ,माफी मांगते रहो। बड़ी मुश्किल से बोल फूटते हैं ।
कुल मिलकर घर में पति और पत्नी दो लोग ही तो हैं । रूपेश को सुबह देर तक सोने की आदत है। नौ बजे सो कर उठते हैं ,हड़बड़ी में तैयार होते है। 10 बजे ऑफिस के लिए निकल जाते हैं, फिर शाम सात के पहले नहीं लौटते । दिन भर अकेले अबोली ही तो रहती है सीमा ।
कितना गाना सुने, कितना टी वी देखे ।,किससे बात करे , तब मोबाइल फोन नहीं थे । कालोनी के पास पड़ोस में किसी को जानती भी तो नहीं है ।
रूपेश ने तीन दिन तक न घर मे खाना खाया ,न आपस में कोई बात चीत---
रविवार को बहुत पूछने पर बार बार माफी माँगने पर रूपेश ने कहा -- माँ और भैया -भाभी आये थे, तब तुमने मुझे पलट कर जवाब क्यों दिया । ?
मेरे घर मे कोई अपने पति की बात का कोई जवाब नहीं देता । ये पति की तौहीनी मानी जाती हैं। चाहे वह गलत बात ही क्यों न हो ?? इसे पति का अपमान माना जाता है।
सीमा ने उस दिन की घटना के बारे में बहुत सोचा । उसकी सास जेठ जेठानी हप्ता भर पहले गांव से आये हुए थे खूब खातिरदारी की सीमा ने । सुबह 4 बजे से उठ कर रास्ते के लिए पूरी सब्जी, बनाया ढोकला- चटनी बना ही रही थी कि रूपेश ने अपना रुदबा झाड़ने ऊंची आवाज में कहा - सीमा जल्दी हाथ चलाओ । कितना धीरे काम करती हो तुम, ट्रेन छूट जाएगी। सीमा का नाश्ता ,चाय रास्ते का टिफिन सब तैयार था ।
उसने कहा - माँ जी , जेठ जी तो अभी सोकर भी नही उठे हैं । आप जाकर उन्हें उठाइये मुझे अपना काम करने --- इतना सुनते ही सास ने कहा-- यही माँ बाप ने सिखाया है क्या तुम्हें ???
सीमा पढ़ी लिखी ,सुसंस्कारों में पली व्यवहार कुशल हंसमुख लड़की है । बड़ों का सम्मान करती है ,सिर पल्लू लेती ,मीठे स्वर में बोलती है ।
किंतु यहां ससुराल में तो सब खोट निकालने में तुले हुए रहते हैं।
बात बेबात कोई टोकता रहे , यह उसे अच्छा नहीं लगता । आज तो उसने दो टूक बात करने की सोच ही लिया है । अब ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ? आठ दिन और अबोले रहेंगे ...
उसने रूपेश से कहा --- देखो जी मुझे ससुराल आये चार महीने ही हुए हैं। सबके घर के रिवाज, रहन सहन में भिन्नता होती है । बाहर से आई लड़की को उसे सीखने और समझने में थोड़ा वक्त लगता है।
जो बात तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को पसंद है। उसे सीखने अपनाने की मेरी पूरी कोशिश रहेगी ये मेरा वादा है । पर आपको और आपके घर वालों को भी एक वादा करना होगा .....
मैं मानती हूं कि मुझसे भी गल्ती हो जाती है लेकिन आज के बाद से मेरी की हुई गलती के लिए मेरे माता पिता को ताने न दिए जाएं । मेरी गलती के लिए सिर्फ और सिर्फ मैं ही दोषी हूं । मेरे माता पिता पर दोष ना मढ़ा जाए .... मैं अपने माता पिता का शाब्दिक अपमान भी नहीं सह सकती।
कहते हैं न कि शादी से दो व्यक्ति ही नहीं दो परिवारों का रिश्ता बनता है । एक दूसरे को नीचा दिखाने से रिश्ते बनते नहीं बिगड़ते हैं हमे तो रिश्ते सुधारना है न ????
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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लघुकथा समारोह 58 /द्वितीय
शीर्षक -->",बेटी से जुडा सौभाग्य "
शादी के बारह साल बाद अर्चना ने अनाथ आश्रम से एक बेटी को गोद ले लिया ।अर्चना और उसके पति दोनो ही नौकरी करते हैं। बेटी का नाम है अपूर्वा जो पांच साल की हो गई पर न बोल पाती है न सुन पाती है । अपूर्वा के पिता उसे जान से बढ़ कर चाहते हैं।ज्यो ज्यों उम्र बढ़ने लगी , उन्हें बेटी की चिंता होने लगी । उसकी पढ़ाई कैसे होगी ? उससे शादी कौन करेगा ?? उनके बाद बेटी का जीवन कैसे चलेगा ?
अर्चना के ऑफिस के बड़े साहब ने उसे दिल्ली के मूक बघिर विद्यालय के बारे में बताया। अपूर्वा को पढ़ने के लिए मूक बघिर विद्यालय में भेज दिया गया । । जहां ग्रेजुएशन के बाद दूरदर्शन में उसे मूक बघिरों के लिए समाचार वाचक की नौकरी मिल गई। उसकी खूबसूरती और प्रतिभा को देख कर कई रिश्ते आने लगे ।
दूरसंचार विभाग के सिस्टम एनालिस्ट की नौकरी करने वाले एक अनाथ युवक प्रभात ने उसके माता पिता को शादी का प्रस्ताव भेजा औऱ कहा कि अपूर्वा से शादी करके मेरा जीवन धन्य हो जाएगा । जीवनसाथी के रूप में अपूर्वा के साथ मुझे माँ की ममता और पिता का प्यार भी मिल जाएगा ।जिसके लिए मैं बचपन से तरसा हूँ।मैं अनाथ आश्रम में पला हूँ।
जहां भोजन तो मिलता था पर प्यार नहीं। किसी तरह पढ़ लिख गया ।
अपूर्वा के पिता ने कहा --लोग कहते हैं कि बेटा की शादी होती है, तो बेटा के पीछे बहू के रूप में बेटी मिल जाती है । हमे तो बेटी के पीछे बेटा मिल रहा है । दोनो हमारी नजरों के सामने रहेंगे। हमारा बुढापा अच्छे से कट जाएगा।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
दि 4, 3 ,2021
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लघुकथा समारोह 59
शीर्षक - " हनीमून भेड़ाघाट में "
शीर्षक -" भेड़ाघाट में हनीमून "
शादी के बाद सविता बड़े अरमानों के साथ डोली में बैठ कर शोभित के घर आ गई । उसे घूमने फिरने , सुंदर प्राकृतिक दृश्य देखने का बड़ा शौक है । उसने शोभित से पूछा- हम हनीमून के लिए कहाँ चलेंगे ?
शोभित -- तुम बताओ, तुम्हें कौन सी जगह पसन्द है ??
पर याद रखना तुम्हारा पति साधारण नौकरी करता है। इस घर का अकेला कमाऊ इंसान है । ज़्यादा बड़ा बजट नहीं है । हम टी वी सीरियल या मूवी के हीरो हीरोइन नही है । खूब अमीर भी नहीं है।
सविता ने कहा -- अच्छा तो भेड़ाघाट चलते हैं ।
रिजर्वेशन कराने और इंतजाम करने के लिए थोड़ा समय तो लगेगा ।
सविता इंतजार करने लगी ।पगफेरे हो गए।सारे रस्म रिवाज हो गए ।महीना बीत गया। पैसों के अभाव में उनका प्लान अधूरा रह गया ।
एक दिन शोभित ने सवि को समझाया -- मैं जानता हूँ अपनी शादी को लेकर सबके मन मे कुछ हसरतें होती है ।ये स्वाभाविक भी है। ये टीवी सीरियल, मूवीज। उन हसरतों की आग को हवा देते रहते हैं। हकीकत की दुनियां उनसे एकदम अलग होती है । तुम तो बहुत समझदार हो ।वास्तविकता को जानो समझो और जो सच है उसे स्वीकार करके खुश रहो । मैं वादा करता हूँ कि जैसे ही साधन जुटेंगे हम भेड़ा घाट जरूर चलेंगे ।
सविता भी धीरे धीरे परिस्थितियों से समझौता करना सीख गई ।
पति का आर्थिक बोझ कम करने उसने भी एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली। देवर रोहित बी ई कर रहा है ।
ग्रेजुएशन के बाद ननद की शादी तय हो गई। सविता ने अपनी चेन ,कान के बुंदे अंगूठी ननद को दे दिए ,बाकी खर्च के लिए गांव का घर बेच दिया गया । उसके बाद उनके जीवन में शिवांश आया । शिवांश को पाकर उसके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ ।
उनकी सारी हसरत ,सारे सपनों का केंद्र अब शिवांश बन गया है।
अब तो रोहित को नौकरी लग गई है। जिम्मेदारी का एक अध्याय खत्म हुआ ।
अभी जिंदगी की पटरी बैठी ही थी कि ,छोटी बहन की सगाई का बुलावा आया ।सविता उल्लसित मन तैयारी करने लगी । आलमारी में गहनों का डिब्बा खोज डाला कहीं नही मिला ।
शाम को शोभित आफिस से आये तो उनसे पूछा।तो जवाब मिला-- रोहित को पैसों की जरूरत थी, तो गिरवी रख दिया है।
इस महीने छुड़ा कर ले आएंगे ।
अब तो सविता बिफर गई बोली --- आपकी हिम्मत कैसे हुई ? मुझसे बिना बताए मेरे गहनों को गिरवी रखने की ।
--- मैंने कहा न आ जायेंगे -----
सविता ,-- यहां बात मेरी अस्मिता की है---- मेरे स्त्री धन की है -----
प्रश्न आपकी नजरों में मेरी अहमियत की है ----- आपकी पत्नी हूं , वो क्या कहते हैं ..... आपकी बेटर हाफ हूँ ...
मैंने अब तक अपना तन ,मन ,धन सब कुछ इस घर की खुशी के लिए समर्पित कर दिया। हर स्थिति से समझौता किया ।
शोभित जी मैं अपने आत्म सम्मान पर चोट मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।
आज तक मैने अपने सभी कर्तव्यों को पूरी शिद्दत से निभाया है । मैंने आपका आर्थिक बोझ बांटा,ननद की शादी में बिना कहे अपने गहने दिए , देवर की पढ़ाई की फीस जुटाई और आगे भी माँजी की जिम्मेदारी निभाने में जीते जी पीछे नहीं रहूंगी ।
फिर भी मुझसे पूछे या सलाह लिए बिना इस घर का इतना बडा निर्णय आपने अकेले कैसे ले लिया ????
मुझे उपेक्षित करने की जो भूल आपने की है यह दोबारा नहीं होनी चाहिए ।
अब आपका भाई कमाने लगा है उसे अपना खर्च खुद मैनेज करना होग़ा। हमें भी तो अपने बच्चे के भविष्य के लिए बहुत कुछ करना है । और अपने छोटे छोटे अरमानों को भी पूरा करना है । छोटी छोटी खुशियां बटोरनी है ।
और हाँ यह भी याद दिलाना पड़ेगा क्या ,कि भेड़ाघाट की सैर कब तक टलती रहेगी ????
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
8 ,3,2021
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लघुकथा समारोह -59 (द्वितीय )
"अनिता की शादी "
हमारा परिवार बिलासपुर में रहता है । एक दिन एक सुंदर सी युवती अपनी माँ के साथ हमारे घर आई। उन्हें हममे से किसी ने नहीं पहिचाना ।
उसकी माँ ने प्रतीक और शलभ भैया जिन्हें घर पर टीनूऔर सल्लू बुलाते थे ,उनके बारे में,माँ -बाबू जी के बारे में पूछा । माँ जब सामने आई तो चरण स्पर्श करते हुए बताया मालकिन मैं जानकी हूँ और ये मेरी बेटी अनिता है। माँ ने चश्मे के भीतर से ध्यान से देखा। फिर बोली -- हां हां पहचाना ।
--बहुत साल के बादआई हो जानकी ।कैसी हो ?
--अच्छी हूँ मालकिन ।
ये अनिता आपके आसरे में इसी घर मे पली है । आप लोगों ने ही तो इसे अनिता नाम दिया है ।
ये तो बड़ी प्यारी लगती है।
इसकी शादी की बात इसी शहर में चल रही है। मैं हमेशा आप लोगों के बारे में इसे बताया करती थी।तो इसने आप लोगों से मिलने की जिद की ,मेरा भी मन था आप लोगों से मुलाकात करने का इसीलिए इसे लेकर आई हूं ।
बाबूजी भी उनसे मिलकर बहुत खुश हुए । उन्होंने बताया कि -- आज से करीबन 15 साल पहले जानकी अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर काम करने आया करती थी । अपनी पुरानी साड़ी बिछा कर - -कभी बरामदे में तो कभी आंगन में सुला दिया करती थी । बच्ची या तो खेलती रहती या सोती रहती । बाद में पता चला कि जानकी उसे बिल्कुल थोड़ा सा अफीम चटा दिया करती है ताकि बच्ची सोती रहे तो वह दो घर का और काम निपटा सके ।
जानकी बताती थी कि उसके पति ढंग से काम नहीं करता । जो कमाता उसे भी शराब में उड़ा देता।जानकी के भी पैसे छीन लेता ।उसे मारता ,पीटता,गाली गलौज करता । अनिता माँ के पीछे साया की तरह लगी रहती। । अनिता जब पांच साल की हुयी तो हमने पास के सरकारी स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया ।
जब अनिता पांचवी पढ़ रही थी ,तब एक अधेड़ शराबी आदमी से शादी की बात कर लिया। उससे शादी के खर्चे के लिए एडवांस में पैसे ले लिये हैं। औऱ रोज शराब में धुत होकर बड़बड़ाता रहता है।जानकी ने रो रो कर यह बात हमे बताई। पांव पकड़ कर विनती करने लगी -- मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद होने से बचा लो मालिक । मैं जिंदगी भर तुम्हारा उपकार नहीं भुलूंगी।
हमने पुलिस में कम्प्लेन करके उसके पति को अंदर करवा दिया । अनिता को उसकी माँ ने नाना नानी के घर भेज दिया ,जहां उसकी पढ़ाई जारी रही ।
उस घटना के बाद भी वह हमारे घर काम करती रही । जेल से आने के बाद जानकी के पति को टी .बी. की बीमारी हो गई । कुछ ही महीनों के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद जानकी भी अपने मायके गई तोअब इतने साल बाद है अनिता मैट्रिक पास करके अपने मोहल्ले केबच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है। नौकरी की तलाश में है।अनिता की शादी के लिये जो लड़का। देखा है वह इसी शहर में कारपेंटर का काम करता है। जानकी ने हमसे विनती की - उसके होने वाले दमाद के चाल चलन के बारे में हमे पता लगाना होगा । अनिता भी आपकी बेटी जैसी है। ।
मालिक मैं ये काम मुझसे नहीं हो पायेगा । आपको ही करना होगा ।
आनिता की शादी के बाद मैं आप लोगों की सेवा करती रहूंगी । उसका कोई तनखा नहीं लूँगी । आपके बहुत से
उपकार हैं मुझ पर। बिना उसका कर्जा उतारे मैं मरना नहीं चाहती।
शादी के लिए अनिता ने एक ही शर्त बताई --- उसका होने वाला पति शराब न पीता हो। भले कम पढा हो , कम कमाता हो।हम दोनो मिल कर कमा के शांति से जिंदगी गुजार लेंगे।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
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