Tuesday, 12 March 2019

लावणी छन्द - क्रमांक--5-


1       अपना घर भरते हैं नेता ,देश धर्म को भूलें हैं
चिंता करते सात पुश्त की ,खाकर मुफ्त माल फूले हैं।

2  बड़ा पर्व है लोक तंत्र का ,जहां प्रमुख है मतदाता
    नेता सही अगर चुन लेता,बने देश का निर्माता।

3     जोड़ तोड़ में उलझे नेता, पहन मुखौटे आते हैं
    बड़े बड़े सब वादे करके, जनता को भरमाते हैं।

4     दृश्य दिखे है मेले जैसे,तरह तरह की दुकानें
   कहीं नवाड़ी -कहीं खिलाड़ी,कुछ होते जानें माने।

5      कोई बांटे पैसे चुपके,कोई दावत  देते  हैं
      साड़ी -धोती राशन पानी,गांव के लोग लेते हैं।

6   मेघों के पीछे से छिपकर,बिजली अदा दिखाती है
अँधियारी रातों में वह तो,चमक चमक चमकाती है ।

7     नाच रही है प्राची देखो, ओढ़े स्वर्ण चुनरिया है
   रूप देख मन भावन रवि का,लचके खूब कमरिया है।

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