1 अपना घर भरते हैं नेता ,देश धर्म को भूलें हैं
चिंता करते सात पुश्त की ,खाकर मुफ्त माल फूले हैं।
2 बड़ा पर्व है लोक तंत्र का ,जहां प्रमुख है मतदाता
नेता सही अगर चुन लेता,बने देश का निर्माता।
3 जोड़ तोड़ में उलझे नेता, पहन मुखौटे आते हैं
बड़े बड़े सब वादे करके, जनता को भरमाते हैं।
4 दृश्य दिखे है मेले जैसे,तरह तरह की दुकानें
कहीं नवाड़ी -कहीं खिलाड़ी,कुछ होते जानें माने।
5 कोई बांटे पैसे चुपके,कोई दावत देते हैं
साड़ी -धोती राशन पानी,गांव के लोग लेते हैं।
6 मेघों के पीछे से छिपकर,बिजली अदा दिखाती है
अँधियारी रातों में वह तो,चमक चमक चमकाती है ।
7 नाच रही है प्राची देखो, ओढ़े स्वर्ण चुनरिया है
रूप देख मन भावन रवि का,लचके खूब कमरिया है।
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