1 नभ पर बादल छाए देखो, सवके मन को भाते हैं
दौड़ रहे हैं हिरणों जैसे,सबका मन हर्षाते हैं ।
2 कभी शेर से गरज गरज कर, सबको खूब डराते हैं
कभी विदूषक रूप धरे ये, हमको खूब हँसाते हैं ।
3 भर भर कर मटके सागर से, आसमान में लाते हैं
भरे अंजुरी उसे उड़ेलें ,सबकी प्यास बुझाते हैं ।
4 आँचल में ढँक कर सूरज को, राहत यही दिलाते हैं
कभी चंचला बिजली को भी ,लिए गोद दुलराते हैं।
5 यही चंचला कभी अचानक ,चमक चमक चमकाती है
आंख मिचौली करती यह तो, पल भर में छुप जाती है ।
6 बन छतरी तपते सूरज की , मेघा ठंडक देती है
लिए गोद में उसको अपने,नेह सदा ही देती है।
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