Sunday, 17 March 2019

लावणी छंद क्रमांक 7


  1 नभ पर  बादल छाए देखो, सवके मन को भाते हैं
     दौड़ रहे हैं हिरणों जैसे,सबका मन हर्षाते हैं ।

2 कभी शेर से गरज गरज कर, सबको खूब डराते हैं
    कभी विदूषक रूप धरे ये, हमको खूब हँसाते हैं ।

3 भर भर कर मटके सागर से,  आसमान में लाते हैं
      भरे अंजुरी उसे उड़ेलें ,सबकी प्यास बुझाते हैं ।

4 आँचल में ढँक कर सूरज को, राहत यही दिलाते हैं
   कभी चंचला बिजली को भी ,लिए गोद दुलराते हैं।

5   यही चंचला  कभी अचानक ,चमक चमक       चमकाती है
आंख मिचौली करती यह तो, पल भर में छुप जाती है ।

6 बन छतरी  तपते सूरज की , मेघा ठंडक देती है
     लिए गोद में उसको अपने,नेह सदा ही देती है।

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