Sunday 31 March 2019

विधाता छन्द ---क्रमांक 2

1         न रूठो ईश तुम हमसे,सहारा छूट जाएगा
       अकेला सोच कर हमको,जमाना ये सताएगा।

2        तुम्हीं तो दीन के संगी,भरोसा टूट जाएगा
  सबल मन ही सजग रहता,जगत से पार पायेगा।

3 सभी से प्रेम हो इतना कि नफरत भी सिमट जाए
   खुशी दें हम सभी को खूब  गम का नाम मिट पाए

4   छलकता नेह इतना हो,खुशी के फूल खिल जाए
     रहें हम भूल कर के बैर,हृदय में हर्ष भर जाए।

5 चढ़ा कर शीश चरणों मे,धर्म हमको निभाना है
     धरा का अन्न खाया है,कर्ज हमको चुकाना है ।

6    सफल जीवन बने अपना,कुछ तो हमे भी कर दिखाना है
     सुकर्मों से मिले गौरव,धरा का मसान बढ़ाना है ।

7     सुरों के साथ सरगम की,नई सरिता बहाना है
  शरद की धूप बन जाएं ,दिलो में पुलक जगाना है।

8   भला सोचें सभी का हम,तभी अपना भला होगा
    हमारी सोच कब होगी फलित अब देखना होगा ।

9        बरसते बादलों की सावनी सी धार बन जाएं
   ऋचाएं वेद की पढ़ कर,शुचित मन जाग हम जाएं।

डॉ चन्द्रावती 

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