1 न रूठो ईश तुम हमसे,सहारा छूट जाएगा
अकेला सोच कर हमको,जमाना ये सताएगा।
2 तुम्हीं तो दीन के संगी,भरोसा टूट जाएगा
सबल मन ही सजग रहता,जगत से पार पायेगा।
3 सभी से प्रेम हो इतना कि नफरत भी सिमट जाए
खुशी दें हम सभी को खूब गम का नाम मिट पाए
4 छलकता नेह इतना हो,खुशी के फूल खिल जाए
रहें हम भूल कर के बैर,हृदय में हर्ष भर जाए।
5 चढ़ा कर शीश चरणों मे,धर्म हमको निभाना है
धरा का अन्न खाया है,कर्ज हमको चुकाना है ।
6 सफल जीवन बने अपना,कुछ तो हमे भी कर दिखाना है
सुकर्मों से मिले गौरव,धरा का मसान बढ़ाना है ।
7 सुरों के साथ सरगम की,नई सरिता बहाना है
शरद की धूप बन जाएं ,दिलो में पुलक जगाना है।
8 भला सोचें सभी का हम,तभी अपना भला होगा
हमारी सोच कब होगी फलित अब देखना होगा ।
9 बरसते बादलों की सावनी सी धार बन जाएं
ऋचाएं वेद की पढ़ कर,शुचित मन जाग हम जाएं।
डॉ चन्द्रावती
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