मुक्तक लोक
तरंगिणी छंद समीक्षा समारोह- २६२
आधार छंद- दोहा
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मुक्तक- १
माटी अपने देश की , मांगे है बलिदान
भारत माँ देती सदा ,शुभता का वरदान।
अतिथि देव होते यहां , पाते है सद्भाव
मात पिता जल अग्नि भी,कहलाते भगवान।
मुक्तक- 2
अखिल विश्व में देश यह,रखे अलग पहचान
कई जाति के धर्म के, सब इसकी संतान ।
दिया दशमलव ज्ञान यह, और शून्य उपहार
विधि गणना की सूक्ष्म अति, ऐसा देश महान ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
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शब्द में अक्षर होते ढाई
प्यार के अक्षर भी ढाई
इश्क ,प्रेम, प्रीत सब ढाई
भाव समझ के चल रे भाई
व्यर्थ में उमर गंवा न भाई
इर्ष्या ने तूफान मचाई
ढाई अक्षर की शक्ति में शिव
शब्द अर्थ शिव शक्ति की नाइँ
भक्ति में भगवान का वास
बात पते की मैं ले आई
आत्मा में रस रंग समाया
काव्य कलम से इश्क फ़रमाई
लिया रिस्क कई बार हमने
फिर भी कुंजी हाथ न आइ
बिंदु से सिंधु तक विस्तार
सारी उम्र दांव लगाई
तट में मिले कुछ शंख सीप
चुन उनको झोली भर लाई
डॉ चंद्रावतीनागेश्वर
सेंटा क्लारा
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