Thursday 4 July 2019

गीतिका---मुक्तक लोक ---4

   मुक्तक लोक-चित्र मंथन समारोह-२५७-

ईमान सजे दूकानों में , धर्म बना है अब व्यापार
पढ़ें वेद पुराण या कुरान,नहीं समझते उनका सार।

वही सफल काजी पंडा है,अपनी तरफ करे जो भीड़
ठेकेदार धर्म के जो  हैं,      वही चलाते कारोबार ।

भोली जनता को ठगते हैं,  नहीं बिके जब उनके माल
उन्माद जगाते लोगों में ,        खूब कराते  मारा मार ।

ये दो बच्चे मन के सच्चे  ,कृष्ण चन्द्र हों या रहमान
धूप तपे तो करदें छाया  , एक दूजे से करते प्यार।

सार धर्म का है मानवता , मानव मानव एक समान
मन में हो सद्भाव सभी के ,सुखमय हो सारा संसार ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ  ग

[09/07, 8:13 AM] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: तरंगिनी-२६५, सोमवार- ०८-०७-२०१९
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गीतिका आधार छंद : अभीर/ अहीर
कुल मात्राएँ : ११ अंत में गुरु लघु

आई है बरसात
लेकर ये सौगात।

झूमे है हर डाल
मिले तपन को मात।

तृण भी नाचे साथ
भीगे भीगे  गात ।

दिखे नहीं है बाट
बरसे जल दिन रात ।

बादल बिजली साथ
बूंदों  की  बारात  ।

इंद्रधनुष   के  रंग
चमक रहें हैं सात ।

सबके मन है मोद
बदले हैं हालात ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
[09/07, 3:29 PM] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: Nmn

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