मुक्तक लोक-चित्र मंथन समारोह-२५७-
ईमान सजे दूकानों में , धर्म बना है अब व्यापार
पढ़ें वेद पुराण या कुरान,नहीं समझते उनका सार।
वही सफल काजी पंडा है,अपनी तरफ करे जो भीड़
ठेकेदार धर्म के जो हैं, वही चलाते कारोबार ।
भोली जनता को ठगते हैं, नहीं बिके जब उनके माल
उन्माद जगाते लोगों में , खूब कराते मारा मार ।
ये दो बच्चे मन के सच्चे ,कृष्ण चन्द्र हों या रहमान
धूप तपे तो करदें छाया , एक दूजे से करते प्यार।
सार धर्म का है मानवता , मानव मानव एक समान
मन में हो सद्भाव सभी के ,सुखमय हो सारा संसार ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
[09/07, 8:13 AM] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: तरंगिनी-२६५, सोमवार- ०८-०७-२०१९
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गीतिका आधार छंद : अभीर/ अहीर
कुल मात्राएँ : ११ अंत में गुरु लघु
आई है बरसात
लेकर ये सौगात।
झूमे है हर डाल
मिले तपन को मात।
तृण भी नाचे साथ
भीगे भीगे गात ।
दिखे नहीं है बाट
बरसे जल दिन रात ।
बादल बिजली साथ
बूंदों की बारात ।
इंद्रधनुष के रंग
चमक रहें हैं सात ।
सबके मन है मोद
बदले हैं हालात ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग
[09/07, 3:29 PM] डॉ चंद्रावती नागेश्वर: Nmn
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