आई हूं सज धज कर,कहती चिड़िया रानी
जरा देख लूँ दर्पण, बोले मीठी बानी ।
कब तक करूँ प्रतीक्षा, सब्र नहीं अब होता
पास हमारे आओ , लाया हूँ गुड़ धानी ।
धीरज धर लो प्रियतम,मैं हूँ सिर्फ तुम्हारी
दगा न देना मुझको, तेरी हूँ दीवानी ।
नैन तीर से तेरे , घायल कई पड़े हैं
गठबंधन अब कर लो,तुम हो बड़ी सयानी।
कसम उठाकर तेरी,सच कहता हूं प्यारी
भूल नहीं सकता मैं , मुख तेरा नूरानी ।
इन आँखों में झांको, रूप तुम्हारा झलके
हर पल बोले आंखें, लिख दूँ नई कहानी।
अद्भुत प्रेम हमारा , कहती दुनिया सारी
करो नहीं अब नखरे ,बीते शाम सुहानी।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
मानव छन्द आधारित गीतिका---(14 मात्रा अंत मे गुरु)
जब जब सूरज तपता है
सागर बहुत उबलता है ।
लिए लक्ष्य जन हित का वह
अलग राह पर चलता है ।
सूक्ष्म रूप धर कर उड़ता
मेघ वही तो बनता है ।
आसमान में जाता है
बून्द बून्द में ढलता है।
सबकी प्यास बुझाता है
बड़ी तपस्या करता है ।
पर्वत की गोदी से वह
झरना बन कर झरता है ।
बारिश का जल सरिता बन
तन मन पावन करता है ।
अग्नि परीक्षा देकर ही
जल भी खरा उतरता है ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
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