Thursday 11 July 2019

गीतिका -क्रमांक 5

आई हूं सज धज कर,कहती चिड़िया रानी
जरा देख लूँ दर्पण,   बोले मीठी  बानी ।

कब तक करूँ प्रतीक्षा, सब्र नहीं अब होता
पास हमारे आओ   ,  लाया हूँ गुड़ धानी ।

धीरज धर लो प्रियतम,मैं हूँ सिर्फ तुम्हारी
दगा न देना मुझको,    तेरी हूँ दीवानी ।

नैन तीर से तेरे ,        घायल कई पड़े हैं
गठबंधन अब कर लो,तुम हो बड़ी सयानी।

कसम उठाकर तेरी,सच कहता हूं प्यारी
भूल नहीं सकता  मैं , मुख तेरा नूरानी ।

इन आँखों में झांको, रूप तुम्हारा झलके
हर पल बोले आंखें, लिख दूँ नई कहानी।

अद्भुत प्रेम हमारा ,  कहती दुनिया सारी
  करो नहीं अब नखरे ,बीते शाम सुहानी।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर

मानव छन्द आधारित गीतिका---(14 मात्रा अंत मे गुरु)

जब जब सूरज तपता है
सागर बहुत उबलता है ।

लिए लक्ष्य जन हित का वह
अलग राह पर चलता है ।

सूक्ष्म रूप धर कर उड़ता
मेघ वही तो बनता है  ।

आसमान में जाता है
बून्द बून्द में ढलता है।

सबकी प्यास बुझाता है
बड़ी तपस्या करता है ।

पर्वत की गोदी से वह
झरना बन कर झरता है ।

बारिश का जल सरिता बन
तन मन पावन करता है ।

अग्नि परीक्षा देकर ही
जल भी खरा उतरता है ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर

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