छन्द उल्लाला --सम मात्रिक छन्द
13 -13 मात्रा (लघु गुरु ) यह दोहे का विषम चरण है
तेज नदी की धार है, हिम्मत की पतवार है
प्रभु का करना ध्यान है, जग का तारणहार है ।
उस पर ही विश्वास है , महिमा अपरम्पार है
पल पल शक्ति दे हमको ,करते हम आभार हैं।
कर्म हमारे सार हैं , मिले हमे दिन चार हैं
दुख में यह बेजार करे , सुख में खुशी हजार है ।
कर्म ही सुख की कुंजी , प्यार गले का हार है
प्रीत अगर न हो मन में ,जीवन यह बेकार है ।
भारत देश महान है , खुशियों का आगार है
होते अतिथि देव यहाँ , हर घर में सत्कार है।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
मुक्तक लोक,चित्र मंथन,समारोह-266,बुद्धवार,17.07.19
समारोह अध्यक्ष- आद.पुनीता भरद्वाज जी
समारोह संचालक आद.श्यामल सिन्हा जी
व आद.ओम जी मिश्र अभिनव जी व आद.सुधा अहलुवालिया जी
निकल पड़ी है देखो नारी, करने को अपना उद्धार
शंख नाद करती निकली वह ,रिपु से लड़ने बिन तलवार।
खोने को कुछ बचा नहीं है , पांव बेड़ियाँ चारों ओर
पग पग पर गहन घोर अंधेरा ,दूर कहीं खोया है भोर ।
नहीं रोकना राह हमारी , बनी हैं दुर्गा सिंह सवार
लगा दांव पर अस्मत अब तो , मिला घात है बारम्बार।
रौंदी जाती नन्हीं कलियां , खूब मचा है हाहाकार
कोख नहीं सुरक्षित माता की ,जन्में तो जीवन है भार।
नहीं किसी से बैर रखें हम , जीवन भारतो बांटें प्यार
धूप हवा रात चांदनी तो,भगवन के सबको उपहार।
सारी बंदिश हम पर क्यों है , रहे दूर दिल्ली दरबार
मानव -मानव में भेद रखें ,करना इस पर हमें विचार ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
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