चित्र मंथन
इस गहरे सागर के जैसा
लहराता है
अंतरतम में
प्यार मेरा
अहो! सुंदरी
हाथ मे मेरे
हाथ तेरा
ये गीली गीली रेत
उड़ते श्यामल केश
ये दूधिया गोरा रंग
केसरिया कपड़ों में
पारिजात के पुष्प सी
खिली हुई महक बिखेरे
मेरे जीवन मे आई हो
कोई खुशी तेरे कमों से
नरम रेत सी खिसक न जाये
कण कण को सहेज रखूंगा
ओ मेरी सिंड्रेला
पलकों में तुझे बिठाउँगा
चन्द्रावती नागेश्वर
सेंटाक्लारा U S A
हमें बुलाया प्यार से,आई थी जब याद
देते हैं हम हृदय से,सभी को धन्यवाद
यही गुजारिश आपसे,सुन लो यह फरियाद
हमे भुलाना ना कभी, रहना तुम आबाद
याद रहें दिल मे सदा,मन से हो सम्वाद
बीच हमारे है कड़ी,जो है आशीर्वाद
बनेंगे बेटी बहना, सदा रहेंगें साथ
अगर भूल गए हमको, तुम जाने के बाद ।
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झूम झूम के बरसे सावन,छाई है हरियाली
लगे सभी को है मनभावन, लाई है खुशियाली ।
नाच रही हैं बूंदें छम छम , मेघ बजाए बाजा
धानी चूनर ओढ़े बैठी ,धरती लगे निराली ।
रंग बिरंगे कपड़े पहने ,सज धज कर हैं आई
अंग अंग से खुशियां छलके, लगती भोलीभाली।
हरे पेड़ पर बांधे झूला ,झूल रही हैं सखियाँ
हमको तो मन भाये सारी, गोरी हो या काली।
भीगी भीगी हवा चली है,रुत है ये मस्तानी
दादुर मोर पपीहा गाये, झूमे डाली डाली ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
, मुक्तक लोक
चित्र मंथन समारोह- २९३
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चली हाथ में ले सूरज को ,जग सारा रोशन करने
आओ बहना संग संग तुम ,सूर्य हथेली में रखने ।
आज बनाएं नया असमां ,करने हैं सपने पूरे
मानव वंश के आधार हम , चलें भूमि का तम हरने।
बने जगत में साँचा हम ही, अब नव पीढ़ी को गढ़लें
तन रचें कोख में जीव सभी , सुविचारों से हम मढ़ले।
मनभूमि में संस्कारों की ,इंसानियत के बीज हों ।
इस देश के इंसान से जग,पाठ कर्मफल का पढ़ ले।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
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