हाथों से छू लूँ मैं सूरज,इसका करूँ प्रयास
मन में हो जब उत्कट इच्छा,बढ़े आत्म विश्वास।
दूर नहीं होती मंजिल जब,हिम्मत भी हो साथ
पंख लगे हर चाहत को तब,मुट्ठी में आकाश।
पंथ सुनिश्चित करके चलता , राह बने आसान
हर प्रभात भी शीश झुकाता, रवि भी आये पास।
कदम कदम पर सजते इनके,विजय तिलक से भाल
तूफानों से डरें नहीं ये , मुख दमके उल्लास ।
नदियां इनके चरण पखारें , वंदन करें पहाड़
नौनिहाल ये भारत माँ के ,लिखते नव इतिहास।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
एक तरफ है बन्धन देखो,आजादी है दूजी ओर
नेह सूत्र लाई हैं किरणें , खासमखास आज की भोर।
बन्धन में ही आजादी है, बड़ा अनोखा है संयोग
देख गगन में उड़े तिरंगा ,थाम रखा जिसको इक डोर।
परिवारों को बांधे रखते, खुशियों के पावन त्यौहार
मानव के जीवन सागर में, भर देते आनंद हिलोर।
फहर तिरंगा हमको कहता, तुम्हे मिटाना सबके क्लेश
धरती को स्वर्ग बनाना है,इसी लक्ष्य पर देना जोर ।
आपस में सद्भाव रखें सब ,सारे मानव एक समान
मिटे भेद काले गोरे का,ऊंच नीच का रहे न शोर ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
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