Saturday 7 September 2019

कोयम्बटूर ---भावस्पंदन कार्यक्रम

  हम 151महिलाएं पांच दिवसीय भाव स्पंदन कार्यक्रम में भाग लेने सद्गुरु के आश्रम कोयम्बटूर गए थे ।जहाँ पूरे भारत के विभिन्न राज्यों की छोटी बड़ी ,युवा प्रौढ़, बुजुर्ग महिलाएं इस कार्यक्रम में भाग लेने आई हैं । यह कार्यक्रम पहली बार हिंदी भाषी महिलाओं के लिए आयोजित था।
सद्गुरु तमिल और अंग्रेजी जानते हैं ,इसीलिए उनके कार्यक्रम तमिल और अंग्रेजी में ही होते हैं।उनके मन में शिवभक्ति के साथ -साथ अटूट  राष्ट्र भक्ति भी है ।वे अब काफी कुछ हिंदी जानने लगे हैं। हिन्दी भाषी क्ष्रेत्र के लोगों को अपने ज्ञान अनुभव से वंचित नहीं रखना चाहते हैं।
                      
कोयम्बटूर के आश्रम में पहुँचते ही सबसे पहले वेलकम पॉइंट पर मनोमुग्धकारी मुस्कान के साथ वालेंटियर्स  सबका स्वागत करते हैं  जानकारी लेते हैं।

और फिर उसी  मधुर मुस्कान के साथ  आगन्तुकों के मोबाइल,चार्जर ,पैसे,कीमती सामान,पाकेट दर्पण, खाने पीने के चटर पटर सामान जो हमारे बैग में थे ,जमा करवा लिये जाते हैं एक छोटी सी रसीद पकड़ा कर पूर्ण सुरक्षा का आश्वसन भी मिलता है कि कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आखिरी दिन हमे वो सब वापस मिल  जाएगा ।

सोचिए आज के दौर में मोबाईल ,पैसे,दर्पण के बिना घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर -एक दिन भी गुजरना बड़ा ही मुश्किल लगता है वहाँ पांच दिन अपरिचितों के बीच  कैसे गुजरा होगा ?

          आप सोच रहे होंगे बहुत कष्टप्रद  रहा होगा ?

       बिल्कुल भी नहीं, बड़े आनंद से  ,नए अनुभवों के
साथ  सदगुरु के दिव्य ऊर्जा कर घेरे में हम रहे । बिना घड़ी देखे वालेंटियर्स बड़े समर्पित भाव से वहाँ की व्यवस्था सम्हालते हैं। ताली बजा बजा कर समय का संकेत देते हैं।  सुव्यवस्थित तरीके से सुबह पांच बजे से रात दस कैसे बजते थे ,पता ही नहीं चल  पाता था ।
ध्यान ,योग खेल,नाच गाने के साथ आध्यात्मिक माहौल में बिना मिर्च मसाले का, सादा भोजन जो सलाद से भरपूर होता था  अनाज की मात्रा कम रहती थी ।अब तो वही सबको रुचिकर लगने लगा था।
  और तो और आखरी दिन जब कार्य क्रम खत्म हुआ तो सब आपस में गले मिल कर ऐसे रो रहे थे जैसे पहली बार बेटी की बिदाई हो रही हो।
         विदाई के समय मैंने अपने भाव अपनी कविता में इस   तरह व्यक्त किया ---------

   गुरु चरणों मे हम आये हैं, करने को शिव वंदन है
दूर शहर से बना हुआ यह,आश्रम लगता मधुबन है।

पंछी चहके कोयल कुहके, जड़ चेतन सब हर्षित हैं
  हवा चले तो झूमे डाली,डाले ज्यों भुज बन्धन हैं।

वन पर्वत से घिरा हुआ है,मन मोहक यह आश्रम है
एक तपस्वी की ऊर्जा से,ऊर्जित यहाँ का जीवन है।

कहें सँवारो अपना जीवन,करें काम वे जन हित का
शिव शक्ति के आराधक हैं,भक्ति भाव का अर्चन है।

    खूब यहाँ पर हरियाली है ,      सुंदर सुन्दर फूल यहाँ
अतिशय गुरु की कृपा बरसती,सुखमय उनका दर्शन है।

हुआ कार्यक्रम आज विशेष ,  स्पंदन जब भाव लहर का
     कोई नाचे खूब खुशी से ,       कोई करता क्रंदन है।
   
दूर हुई  विषधर की जकड़न,  मिली है  मुक्ति उन सबसे
भस्म हुआ जलकर वह तो ,     आया नव परिवर्तन है ।

दर्शन है यह नव प्रभात का,जीवन महका खुशियों से
हम मिल करते उनका वंदन,मन बनता अब चंदन है।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग

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