Wednesday 6 November 2019

मुक्तक क्रमांक -1


1   बचपन यौवन और बुढापा,ये है तीन पड़ाव
     संग तुम्हारा रहे सदा ही, लगे पार यह नाव।
    टेक नेह की लाठी चलते, दिन ये भी स्वीकार
   जीवन यूँ ही बीत रहा है ,लिए सत्य शिव भाव।

2   ईश सत्य है इस दुनियां में ,होता है अब भान
     जब तक दोनो साथ रखेंगे,इक दूजे का ध्यान।
      प्रेम और सद्भाव रखें हम, यह जीवन का सार
     फिर आगे प्रभु की जो इच्छा ,जीवन है वरदान।

3     बच्चे मगन हुए अपने में ,   वहां नहीं है ठाँव
      कटे पेड़ रिश्तों के सारे , मिले नहीं अब छांव।
      नहीं किसी से हमें गिला है , ना है मन में रंज
      रुका नहीं है क्रम जीवन का , थके हुए हैं पाँव ।
    
       

१-धर्म

प्रियजन जो अब विवश हुए हैं,मन से उनके साथ रहें
हमे बनाने हवन हुए जो,   उनसे भी हम जुड़े रहें ।
  उनके दिल को चोट न पहुंचे ,सभी तीर्थ से बढ़कर ये
यही धर्म है यही फर्ज है , इसी सत्य के पास रहें ।

२-अधर्म
   रखो न  मकसद  निज हित साधन,
नीच    कर्म  जग  में  पर  पीड़न ।
जो  कृतघ्न  हो     उपकारी   का
है  अधर्म  पथ  उसका  जीवन  ।

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा ,छ ग

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