1 महको खुशबू जैसे बन कर, फूल झरो
चार दिनों का जीवन पाया,क्लेश हरो ।
आये जो भी पास तुम्हारे, हर्षित हो
पुरवाई सा तन मन उसके,पुलक भरो।
2 जीवन मिलता नहीं दुबारा, सफल करो
रीते रीते रिश्तों के घट, नेह भरो ।
बहुत कीमती है नर तन यह, सोचो तो
यही वक्त है दान धर्म कर, सुभग तरो
3 मुबारक जन्म दिवस,मां शारद के भक्तों को
खुशियों का अक्षय कोश मिले , मास दिवस के बच्चों को
तुम रौनक साहित्य भवन के,होली दीवाली तुमसे,
हम सब मिल कर करें कामना,हे माँ तू वर दे सबको
4 गौरव तुम साहित्य भवन के,गर्व करे धरती तुम पर
सार्थक बनें लेखनी सबकी , बन तारे चमको नभ पर
कथ्य शिल्प सब झुकाएं
5 किया ब्रह्म ने कठिन तप ,हुआ सृष्टि निर्माण
चले निरन्तर सृष्टि यह, चाहे यही प्रमाण ।
माँ तब मिली विकल्प जो, करे सृजन का काम
जीव ब्रह्म की भांति ही ,भरे पिंड में प्राण।
2
ममता का सागर यही, जीवन का आधार
तन मन को आकार दे, सहती कष्ट अपार ।
सन्तति का सुख लक्ष्य है,माँ तो ब्रह्म स्वरूप
शिशु की मुस्कान पर,सब कुछ देती वार ।
डॉ चन्द्रावती वानप्रस्थी
रायपुर छ ग
3
कौन देवदूत सा श्वेत वस्त्र में खड़ा
मौत जिंदगी के बीच सदा रहा अड़ा ।
वक़्त है नहीँ स्वयं के लिए इसे जरा
प्राण को छीनने यमराज से यह लड़ा ।
उपज ये चीन की जो है, तमाशा खूब दिखायेगा
करें जो वार जड़ों पर हम ,कोरोना भाग जाएगा।
सदा सजग रहना न'ही तो ,भरोसा टूट सकता है
शिखर ओर लोभ के बैठा ,तबाही खूब मचाएगा।
च नागेश्वर
रायपुर
2
उजाला पास आएगा, अंधेरा दूर जाएगा
बहन तुम धीर मत खोना ,सबेरा लौट आएगा।
अडिग रहना बहन मेरी , मुसीबत रास्ता देगी
परीक्षा की घड़ी है यह,जमाना सिर झुकायेगा।
3
सहारे याद के रहना ,नहीं आसान है जीना
मुसीबत के भंवर को पार कर, कबतक डरायेगा ।
डॉ च नागेश्वर
रायपुर
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सुप्रभात:-----
नमन करें हम सूर्य को,पुलकित भू आकाश
कर लें स्वागत सूर्य का,कण कण भरे प्रकाश ।
शुभ स्वागत नव सूर्य का,बोलें हम सुप्रभात
शुभ स्वागत तव आगतम,कहें सभी सुप्रभात ।
बैठ गोद में सूर्य के ,आया नवल प्रभात
स्वागत सब उसका करें, कहें सभी सुप्रभात ।
प्राची पहने है खड़ी, सुखद लाल परिधान
पीत वस्त्र में सूर्य हैं, करते ऊर्जा दान।
बैठ गोद में सूर्य के , आया नवल प्रभात
स्वागत सब उसका करें, कहें सभी सुप्रभात ।
डॉ च नागेश्वर
7 ,7 ,2020
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पहेली,कूट प्रश्न,प्रश्नदूती,प्रहेलिका ,जनिका
उजला उजला रंग है, दिनकर की पहिचान
श्याम वर्ण क्यों पुत्र का, कूट प्रश्न
यह जान ।
2
साथ झूठ के सत्य भी , रहे सदा ही संग
बूझ पहेली जीत की , दोनो में क्यों जंग।
छंद मुक्त कविता :--
[12/07, 3:28 pm] Chandrawati Nageshwar: मैं तो उड़ चली रे परदेश
मेरे दिल में बसा है देश
मेरी धरती मेरा अम्बर
मन में बसा सारा परिवेश
आसमान में उड़ती जाती
नजरों से ओझल होता देश
सांसों में है इसकी खुशबू
जाने कब लौटूं मैं देश
इसकी मिट्टी-इसकी वायु
इससे बढ़कर नहीं विदेश
इसका कण कण मुझे बुलाता
रवि किरणें- देती सन्देश
दिल के टुकड़े जा बैठे हैं
उनसे मिलने चली विदेश
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
कोरबा छ ग
[12/07, 3:30 pm] Chandrawati Nageshwar: जीवन उत्सव
जीवन तब उत्सव बन जाता है
दुःख की घड़ी में जब कोई गले लगाता है
सुख दुःख तो आते जाते रहतें है
दुःख व्याकुल कर जाते हैं
मिलन घड़ी मन भाती है
विरह में मन भर आता है
सुख वेश बदल कर आता है
छलिया सा छल जाता है
टूटे मन को जब कोई सीवन दे जाता है
जीवन तब उत्सव बन जाता है
कोई जीता खुद के लिए
कोई मरता गैरों के लिए
अपनेपन को जो समझता है
देने का सुख वो ही पता है
सब तो पदचिन्हों पे चलते हैं
पदचिन्ह नया जब बनता है
जीवन त ब उत्सव हो जाता है
हर दिन सूर्य निकलता है
हर शाम वो ढ़ल जाता है
ढ़ल ने पर आंसू नही बहाता है
अपने हिस्से का कर्तव्य निभाता है
तंम के सी ने पर जब कोई दीपक रखता है
जीवन तब उत्सव बन जाता है
डा चन्द्रावती नागेश्वर
[12/07, 3:32 pm] Chandrawati Nageshwar: तेरी पाती
तेरी पाती मिली नहीं
लिखना अब छूट गया
मानस रस से पूरित घट
लगता है अब टूट गया
बार बार मै पढती थी
मन फिर भी नही भरता
हर अक्षर में चेहरा दिखता
भावों का सैलाब उमड़ता
आखों से नमी छलकती
सम्बोधन में मिठास तैरती
कुछ पंक्ति ही खबरें कहती
बाकी में मौसम का हाल
शेष कुशल में कही अनकही
हर पंक्ति तस्वीर नयी गढती
हर बार नयी नयी सी लगती
जब जब मै उसको पढ़ती
वो खत मुझसे बातें करता
छिप कर भाव मेरे वो पढ़ता
गीता कुरान सा मुझको लगता
डा च नागेश्वर
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छुप गये झिलमिल तारे उषा ने खिड़की खोली
चुपके चुपके चपल सूर्य ने पलकें खोली
रंग रंग के फूलों ने सजाया स्वागत द्वार
उपवन में गूंजी चिड़ियों की मीठी बोली
कर्म फल है यहां अटल, तर्क -वितर्क चलता नहीं
नीति नियम में देकर ढील, संचालन सधता नही
कर्म -फल का रिश्ता सगा ,क्षमा दान सम्भव कहाँ
जीवन के इस खेत मे , बीज गलित बोना नही
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अनमोल भाव है प्रेम का,लेन देन चलता नहीँ
समर्पण के सिंचन बिना,प्रेम बीज बढ़ता नहीं
तर्क -वितर्क की भूमि पर,उगे नहीं है प्रीत भी
तू -तू मैं - मैं की धूप में ,प्रीत कभी पलता नहीं
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
सेंटाक्लारा
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