लालटेन लेकर चली , ढूंढे वह नव भोर
दिशा बदलकर रवि चले,अब उत्तर की ओर।
तिल तिल कर दिन बढ़ चला,विदा हो रहा शीत
अपने बैरी हो गये , छाया तम घनघोर ।
देख क्षितिज में लालिमा , मन में जागी आस
परिवर्तन का दौर है ,पंछी करते शोर ।
नारी भी है मानवी , कब समझेंगे लोग
मन पतंग बन उड़ चला , थाम आस की डोर ।
गढ़ना होगा अब तो , एक नया आकाश
सूरज चांद बनें हमीं ,होगा तब नव भोर ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर , छ ग
मुक्तकलोक चित्र-मंथन समारोह- 294
आदर्णीय विश्वम्भर शुक्ल जी, एवं मंच!
-को सादर
हाथ कलम ले सोच रही हूं ,लिखूँ नाम किसके पाती
सारी रात सोचती रहती , नींद नहीं है अब आती ।
लिए हाथ में राखी बैठी, टूट गया रक्षा- बंधन
गली मुहल्ले के सब भाई, हुए दफन किसे बुलाती ।
चाचा मामा के रिश्ते भी , नाग फनी से चुभन लिये
कोई किरण नहीं आशा की ,किन शब्दों में पीर सुनाती।
परिजन पुरजन सभी मनुज तो, शंकित कुत्सित से दिखते
पाती लिख मैं किसे भिजाती , किसके मन भाव जगाती ।
अपवाद छोड़ वृहनल्ला सब। ,शाप मुक्त प्रभु इन्हें करो
भारत माता का दिल छलनी,तुम तक भेज रही पाती।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
चयनित विलोम शब्द- अपना/ पराया
अपना ---
भाग्य है अपना अपना ,जोर चले किसका
किया कर्म जो हमने ,भुगतान मिला उसका।
हमें कर्म पर ध्यान ,बहुत अब देना होगा
तभी मिलेगा ब्याज हमें,उसी मूलधन का ।
पराया ---
साथ बंधे होते हैं ,जन्मों के कुछ रिश्ते
समय के साथ सधे ,होते हैं वही रिश्ते।
भाव पराया हो,रिश्ते पाक नहीं होते
स्वार्थ के साथ सजे होते है अब रिश्ते।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
No comments:
Post a Comment