Sunday 9 February 2020

लघु कथा लेखन श्रृंखला -1

आदरणीय आचार्य ओम नीरव  जी एवम सम्मानीया संचालक महोदया
मुझे लघुकथा लोक में शामिल करने हेतु हार्दिक धन्यवाद
प्रस्तुत है लघुकथा --- शीर्षक है - "बहादुरी "
   
      सरोज बस्तर के बीहड़ जंगल मे इंद्रावती नदी के किनारे बसे गांव सेन्द्रीपाली में परिवार के साथ रहती है
मिट्टी का कच्चा घर है खेती किसानी करके दोजून का जुगाड़ हो जाता था। एक दिन कुछ नक्सली आये  और पिता को बाहर बुलाकर बात किया ।पिता के इनकार करने पर पिता ,मां ,बड़ा भाई सब को गोली से मार डाला।
उस दिन सरोज अपने मामा के घर गई हुई थी। उसकेबाद से वह अपने घर कभी नहीं लौटी ,आज ब पढ़ लिख कर  पुलिस की नौकरी ज्वाइन कर थाने में आई है।
   थाने दार एवम अन्य पुलिस कर्मियों ने बड़ी गर्म जोशी
से उसका स्वागत किया।
जब पुलिस विभाग में उसकी पोस्टिंग हुई तो कोंटा जिला मुख्यालय में पूछा गया - कि महिला है -नई नौकरी है-नई उमर की है कुछ दिन  यहीं  अटेच कर देते हैं  ।
सरोज ने बड़ी विनम्रता से कहा -  मैं सेन्द्रीपाली एरिया में जाना चाहती हूं  । थानेदार ने ध्यान से उसे देखा ।फिर कहा - उस बीहड़ जंगल के नक्सली इलाके में पग पग पर
मौत का खतरा मंडराता रहता है । सरोज ने कहा -- मौत तो एक दिन आनी ही है सर,  मैं किसी मकसद से पुलिस विभाग में आई हूँ । मेरी मौत तो आज से दस साल पहले
हो गई होती ।ईश्वर ने मुझे मेरे माता , पिता भाई के कातिलों से बदला लेने ही जिन्दा रखा है
मैं खतरों से नहीं डरती  । बहादुरी  से उनका सामना करते हुए अपने लक्ष्य को पाना चाहती हूँ ।
  खुश होकर थानेदार ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा ---  सच कहती हो सरोज "   बहादुरी "  सिर्फ पुरुषों की
जागीर नहीं है  यह तो एक जज्बा है जुनून है।
ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे ,कामयाबी दे  ।

  डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर ,छ ग
       लघुकथा लोक --समारोह 4
(शनि से गुरु )
       शीर्षक ---" मां का पत्र ''

दीपावली का त्यौहार समीप है।माधुरी की खुशी का पारावार नहीं है ।बेटे ने फोन पर बताया कि इस बार
वह पत्नी बच्चे सहित दिवाली  मनाने भारत आ रहा है।
शादी के बाद पहली बार उसका 2वर्षीय पोता और घर की लक्ष्मी दिवाली मनाने आ रहे हैं वे यू एस में रहते हैं।
सत्तर वर्षीय माधुरी  के नस नस में नई ऊर्जा का संचार
होने लगा । पास  पड़ोस में ,रिश्तेदारों में यह खबर फैल गई कि उसके बेटा बहू पोता पहली बार दिवाली मनाने घर आ रहे हैं। बरसों पहले पति का स्वर्गवास हो गया ।
उसके लिए क्या होली और क्या दिवाली  ।अकेले ही जिंदगी काट रही है
पोते के लिए सोने की चेन,बहू के लिए कोसाकी मंहगी साड़ी , बच्चे के लिए कुछ खिलौने  ले आई। घर की रँगाई,पोताई नये पर्दे ले आई। रंगोली से आंगन सज गया।
पर यह क्या  ? वह इंतजार ही करती रह गई।
बेटा तो पत्नी के पल्लू से बंधा बहू के मायके पहुंच गया।अपने सास ससुर साले सलियों उनके बच्चों के लिए मिठाई ,कपड़े तरह तरह के उपहार लेकर । वहां धूम धाम से दिवाली मनाई गई  ।
यहाँ  मां अकेली आंसू बहाते भूखी प्यासी कलपते  रह गई।दो दिन बाद  पड़ोसियों ने उसे समझाया  अपने अपने घर बुलाकर खाना खिलाया ।
  फिर उसने अपनी बहू के नाम एक पत्र लिखा -
    --प्रिय शिल्पा
    सदा सुखी रहो। दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
तुम्हारे माता पिता बहुत भाग्यशाली हैं जो बेटी के रूप में
तुम जैसे  संस्कारी समझदार बेटा पाया है और दामाद के रूप में जयंत जैसा आज्ञाकारी पुत्रवधू मिला है ।
मेरी तुमसे यही विनती है कि --अपने जीवन साथी को भी अपनी बूढ़ी मां की प्रति जिम्मेदार बने रहने का कोई तो गुर सीखा देना  । मैं जीवन भर तुम्हारी आभारी रहूंगी ------

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर

    लघुकथा समारोह -4

"मौका नहीं मिला"
सुनंदा ने चुपके से बहन की शादी के कुछ गहने और रुपये लेकर पोटली बांधी ।स्कूल बैग में दो चार कपड़े रखे और कोचिंग के लिए सुबह सुबह निकल पड़ी।स्कूटी अपनी सहेली के घर छोड़ा  और आगे बढ़ गई ।
आगे मोड़ पर शकील उसका इंतजार कर रहा था   दुकान में बाइक खड़ी करके दोनो बस में चढ़ गए।
एक घण्टे बाद शकील ने कहा - मेरे पास चेंज नही है 500 का नोट देना जरा  --
- सुनंदा  खाने का बिल दे दो
  थोड़ी देर बाद सुनंदा ने पूछा - हम तो नागपुर जा रहे थे ?
- नहीं
-- फिर कहाँ जाना है ?
--देखते हैं
--पैसे तो लाई हो न ?
  --  घर में सब लोग थे मौका नहीं मिला निकालने का
-- और गहने ?
आलमारी की चाबी तो नानी के कमर में खोंची रहती है ।
  मौक़ा ही नहीं मिला
  - तुम तो कहते थे नागपुर में जाकर शादी कर लेंगे।
- वहां चाचा बिज़नेस है ।उनकी कोई औलाद नहीं हैं
   शादी करके हम उन्हीं के पास रहेंगे।
-- अब मेरे अब्बू और उनकी  लड़ाई हो गई है
--मेरे दोस्त के घर भिलाई में रहेंगे  -पहले शादी तो---
सुनंदा का माथा ठनका । उसने कहा  मैंने कल ही मम्मी का ATM लिया था । मेरी बुक में रह गया है अभी तो तीन घण्टे ही  हुए हैं, हम वापस चलें  । किसी को शक भी नही होगा  हमारा काम  हो जाएगा ।
शकील  की आंखे चमक उठी । कल वेलेंटाइन डे  है इसी दिन  हमारी शादी होगी । यह कहकर सुनंदा  उसके करीब सरक कर धीरे से उसका हाथ चूम लिया।
घर लौटने में  सुनंदा को कुछ देर लगी ।उसने जाते ही मम्मी को जरूरी बात बतानी है कहकर अलग कमरे में बुलाया।  सब दरवाजे बंद कर  पहले तो  मम्मी के गले लग कर सिसक सिसक कर खूब रोई ।
फिर सारी कहानी बताई गठरी से निकाल कर पैसे और गहने दिए ।
मम्मी से माफी मांगी ।
मम्मी ने भगवान को बहुत धन्यवाद दिया --  कि उसने मेरी बेटी को सद्बुद्धि दी और हमे बहुत बड़ी मुसीबत और कलंक से बच लिया ।
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर   छ ग
     

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