Sunday 3 May 2020

लघु कथा लेखन



गोष्ठी में भाग लेने के लिए कृपया नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से व्हाट्सअप समूह में सम्मिलित होने का निवेदन है। ऑनलाइन गोष्ठी के सभी नियम और अन्य जानकारियां-----*
कार्यकारिणी समिति
दिल्ली शाखा, 
लघुकथा शोध केन्द्र
प्रतिभा – लिखने के लिए प्रतिभा का होना बहुत जरूरी है। प्रतिभा के अभाव में जो दोष उत्तम होते हैं उन्हें छिपाया नहीं जा सकता है,जबकि प्रतिभा होने पर उन्हें सहज ही छिपाया जा सकता है।   लेखक में कारयित्री और भावयित्री दोनों प्रकार की प्रतिभा का होना अति आवश्यक है। कारयित्री प्रतिभा अर्थात सृजन की प्रतिभा और भावयित्रि प्रतिभा अर्थात रसास्वादन की प्रतिभा ।  
कारयित्री प्रतिभा को हम तीन कोटि में रख सकते हैं। 
सहजा :-  कुछ लेखकों में लेखन प्रतिभा जन्मजात होती है। जन्मजात प्रतिभा को हम सहजा में रखते हैं।
आहार्या :- अभ्यास के द्वारा अर्जित प्रतिभा को आहार्या कहा जा सकता है।
औपदेशिकी :- प्रशिक्षण या रेफरेंस से प्राप्त होनेवाली प्रतिभा को औपदेशिकी में रखा जाता है।

  व्युत्पत्ति –  लेखन में व्युत्पत्ति या निपुणता भी एक महत्वपूर्ण गुण है । व्युत्पत्ति का विवेचन करते हुए आचायॅ राजशेखर ने बहुलता एवं उचितानुचित के विवेक को व्युत्पत्ति कहा है ।  आचार्य वाग्भट्ट ने व्युत्पत्ति की व्याख्या देते हुए लिखा है –व्याकरण, कोश इत्यादि शब्दशास्त्र, श्रुति,स्मृति पुराण आदि अर्थशास्त्र, कामशास्त्र एवं काव्यालंकारशास्त्र में गुरु परंपरा से रीति पूर्व उपदेश ग्रहण करके जो बोध प्राप्त किया जाता है उसे व्युत्पत्ति कहते है। 
आचार्य मम्मट्ट ने व्युत्पत्ति को निपुणता कहते हुए लिखा है कि –निपुणता (बहुज्ञता),लोकजीवन के अनुभव और निरीक्षण ,शास्त्रों के अनुशीलन तथा काव्यादि के विवेचन का परिणाम है ।’’­-
निपुणता लोकशास्त्र काव्याद्यवेक्षणात् ।
 वस्तुतः आचार्यों ने बहुलता के अर्थ में ही व्युत्पत्ति को माना है। सभी तरह के शास्त्रीय और लौकिक ज्ञान ,लक्ष्य एवं लक्षण ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त करना व्युत्पत्ति है। लेखन कर्म प्रायः सभी इसी से संबंधित है। सिर्फ कल्पना से काव्य की संभावना प्राणवत्ता को नहीं प्राप्त हो सकती । शास्त्र ज्ञान एवं लोक ज्ञान परमावश्यक है। 

अभ्यास- आचार्यों ने लेखन के लिए अभ्यास को भी आवश्यक माना है। किसी काम के लिए निरंतर प्रयत्न .चिंतन एवं मनन ’अभ्यास’ कहा जाता है।यह एक प्रकार की साधना है जिसे लगातार किया गया श्रम एवं सतत चिंतन से सिद्ध किया जा सकता है।  मर्मज्ञों के समीप में रहकर शिक्षा प्राप्त और साधना करना अभ्यास है। इससे बुद्धि प्रखर होती है, लेखन में बहुज्ञता का समावेश होता है व शब्द चयन में कसावट आती है । दरअसल अभ्यास के बिना कई प्रतिभाएँ कुंठित हो जाया करती है । ऐसे  अभ्यास के फल स्वरूप लेखन प्रभावशाली बनता हैं । संयुक्ताक्षरों के बाद लघु वर्णों का गुरु की तरह उच्चारण,विसर्गों का लोप तथा संधि न करने का भी अभ्यास करना लेखक के लिए जरूरी है। कथा ,वार्तालाप, इतिहास में नूतन अर्थ योजना का लेखक को प्रयास करना चाहिए।  आचार्य जयदेव का कथन सर्वथा सार्थक है कि ’जिस प्रकार जल और मिट्टी के बगैर बीज लता को जन्म नहीं दे सकता वैसे ही व्युत्पत्ति और अभ्यास के बगैर केवल प्रतिभा से सुन्दर  सर्जना नहीं हो सकती ।

Kumar Gourav
लघुकथा के तत्व * * * ** 

 संक्षिप्त  परिभाषा ----
गागर में सागर भरने वाली विधा है लघुकथा ,जो नतो लघुता को छोड़ती है न कथाको ।यह आडम्बरों,विसंगतियों मनोभावों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम है ।
जिसमे शैली की सूक्ष्मता ,अभिव्यक्ति कस पैनापन  और तीव्र सम्प्रेषणीयता होती है ।
मुख्य तत्व ---
1-क्षणिक घटना 
2-संक्षिप्त कथन
3 तीक्ष्ण प्रभाव

लक्षण----
1 कोई भूमिका न हो    - 2-कम शब्दों में अभिव्यक्ति 
3-सीमित पात्र         4 -सूक्ष्म आकार   5चिंतन को 
उद्वेलित करे          5-प्रतीकों में बात हो 
6-  सन्देश स्वतः ध्वनित हो ,बताया न जाये,
पूर्वाभास न हो।           7 -एक  ही  कालखण्ड हो    
8 -चरित्र चित्रण न हो       -9-मार के शक्ति,या पंचलाइन   प्राणवान हो ।
10 - शब्द प्रभावी हों अमिधा लक्षणा, व्यंजना का सटीक प्रयोग हो ।
*शीर्षक *  आकर्षक ,प्रभावी उत्सुकता वर्धक हो।
कालखण्ड --एक कालखण्ड में कथा समाई या सीमित हो   लंबे कालखण्ड का आभास दिलाया जा सकता है किंतु उसका ब्यौरा नहीं दिया जाता । 
कथानक का आधार ---जीवन के क्षण विशेष के कालखण्ड की घटना पर आधरित हो और 
* वह क्षण विशेष * द्वंद को उभारने वाला ,पाठक को उद्वेलित ओर ,प्रेरित करने वाला हो ।
लघुकथा का उद्देश्य  ---कथ्य की सूत्रबद्धता , विषय की तारतम्यता में बड़े से बड़ा समय सहज रूप से समा जाता है ।बस लेखकीय कौशल होना चाहिए ।
लघुकथा का प्रसव----इसकी उतपत्ति विसंगतियों से होती है,जिस के लिए चिंतन कि कोख चाहिए ।फिर चाहे देह मिट्टी की हो या जीव की ।
 ठीक वैसे ही जैसे सीप में से मोती जन्मता है
लेखकीय प्रवेश  --जो कहना हो वह पात्र कहे या परिस्थिति ज्ञातव्य है कि --चौंकाने वाली स्थिति के बाद
 कथा का  विस्तार  लघुकथा केप्रभाव को शून्य कर देता है ।
रचना प्रक्रिया ---यह अभिव्यंजना  से अभिव्यक्ति तक का  लंबा सफर है जो  रचनाकार की मानसिक सम्वेदना,
सामाजिक परिवेश कलात्मक अनुभवों की जागरूक पक्रिया  है ।
लघुकथा का आकार -40 --45 शब्दों से लेकर 400 --450  या 500 शब्दों तक हो सकता है।


,



No comments:

Post a Comment