लघुकथा समारोह 19 / ....
शीर्षक * बुढापा -केशव सृष्टि सदन में *
* केशव सृष्टि सदन*
बिलासपुर से शेयर टैक्सी करके ऊर्जा नगरी के लिए वे चल पड़ीं हैं ।तीनो एक दूसरे से पूर्णतः परिचित तो नहीं है, फिर भी यादों के धुन्ध में से परिचय की डोर थामने की कोशिश करने लगीं । चेहरा कुछ कुछ देखा देखा सा लग रहा है। उनमे एक ने बगल वाली से पूछा- आप शायद जयंती मेम हैं न ?
-- जी - - आप कैसे जानती हैं ?
आपको कौन नहीं जानता मेम -- आपका नाम और फ़ोटो अक्सर अखबारों में आता रहता है । आप कवियत्री ,लेखिका अनाउंसर भी तो हैं। पहली बार इंदिरा स्टेडियम में आपका अनाउंसमेंट सुन के हम झूम उठे थे, नवभारत में के "सुरुचि" में आपकी कहनियाँ ,आर्टिकल पढ़ने के लिए तो हमारे घर में -पहले पढ़ने कौन पढ़ेगा इस पर छीना झपटी मच जाती थी ।
--आप तो मुझे चने के झाड़ में चढ़ा रही हैं। मैं तो एक साधारण गृहिणी हूँ। घर में बैठे बोर होती रहती हूं तो थोड़ा बहुत कलम चला लेती हूं बस ।
-- वैसे आपका शुभ नाम तो बताइए ?
--मैं मानसी वर्मा हूँ ।मैं सिविक सेंटर में रहती हूं । आपके बेटे के साथ मेरी बेटी पढ़ती थी । मुझे कथा कहानी पढना बहुत अच्छा लगता है । आपसे मिलने की मन में बड़ी चाहत थी,आजइस तरह मुलाकात और बात होगी मैंने सोचा भी नहीं था।
(उन दोनों को इंटरेस्टिंग बातचीत सुन कर तीसरी वाली भी उनसे जुड़ ही जाती है। )
--नमस्ते जयंती जी । मैं नीना वर्मा K V में P G T थी ।
--नमस्ते मेम ।अहो भाग्य आज आपसे मुलाकात हुई । मेरे बच्चों की मार्ग दर्शिका हैंआप ।आप केमेस्ट्री पढ़ाती थीं न।बच्चे आपका बहुत नाम लेते थे।
--हमारे स्टाफ में आपकी प्रायः चर्चा होती थी।आज आपसे रूबरू होने का मौका मिला है। मीरा सिंह मेम लिटरेचर वाली है ।उनसे ही आपका नाम सुना था।आप भी कहीं नौकरी करती है क्या---?????
---जी बहुत पहले करती थी .....बच्चों की परवरिश में परेशानी आने लगी ,बच्चों का बार बार बीमार पड़ना,
काम की अधिकता से चिड़चिड़ापन बढ़ना, सर्वेंट के बढ़ते तेवर ये सब देखकर छोड़ना पडा।
-- आपके बेटे गौरव और सौरभ तो हमारे स्कूल के ही नहीं वरन पूरे मध्य प्रदेश की शान हैं उन्हें बहुत बढ़िया परवरिश दी
है आपने । वो टॉपर तो हैं ही साथ मे बड़े नम्र,आज्ञाकारी और टेलेंटेड भी हैं
आज कल वे दोनों कहाँ हैं ?
--आप सब का आशीर्वाद और मार्गदर्शन है । मेम - गौरव - सौरभ दोनो I I T करके U S A की अच्छी कम्पनी में नौंकरी कर रहे हैं ।
--आप तो बड़ी किस्मत वाली है जयंती जी । अच्छा तो आप भी
वहीं रहती हैं? ?? ?
---नही..... मैं मुम्बई के केशव सृष्टि सदन में रहती हूँ। सर्व सुविधा सम्पन्न गोल्डएज होम में .......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
9425584403
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लघुकथा लोक --समारोह 20 ( प्रथम )
आदरणीय संचालक महोदय -सम्माननीय मंच एवम लघुकथा प्रेमी मित्रों को सादर ----
शीर्षक --*मृत्यु का एहसास*
बिल्लो रानी हाँ यही नाम है उसका । कालोनी
वालों की की दुलारी । चमकता काला रंग,कालोनी के बच्चे बड़े सबको प्यार भरी नजरों से देखती,उनके आंखों
के इशारे समझती , चेहरे के हाव-भाव पढ़ती ,भागती
, दौड़ती रहती । उसके काले रंग के कारण ही सब उसे बिल्लो रानी पुकारते हैं।
बिल्लो आज दोपहर से ही कुछ अनमनी सी ,सुस्त -
सुस्त सी चुपचाप बैठी है । पिछले कुछ दिनों से कॉलोनी की आंटियां उसका विशेष धयान रख रहीं हैं ।
सारी बच्चा पार्टी को शीघ्र ही इसका राज भी पता
चल गया । सामने के टूटे से गैरेज में बड़े प्यारे
प्यारे , सुंदर सुंदर ,गोलू मोलू बच्चों को जन्म दिया है।
बच्चा पार्टी में खुशी की लहर उछाल मार रही है
अभी दो ही दिन तो हुए हैं ,उसके बच्चों की आंख खुली
है । बिल्लो रानी के पीछे-पीछे वो भी बाहर आने लगे हैं।
जब बिल्लो रानी के बच्चे उसके साथ या आसपास होते तो हम बच्चों को उसके पास जाने या उन्हें छूने की सख्त मनाही है। हम दूर से ही उनके क्रिया कलापों का आनंद लेते । पर आज बिल्लो रानी का व्यवहार ही बदला हुआ है । आज न कुछ खा रही है पी रही है, किसी के बुलाने पर पास भी नहीं आरही है, उसकी आंखों से
आंसू बह रहे हैं । यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी पास नहीं आने दे रही है ,उन्हें भौंक भौक कर भगा रही है ।
बेचारे बच्चे भूख से परेशान बार -बार उसके करीब जाने की कोशिश में अधमरे से हो रहे हैं।
शाम होते होते लोगों ने देखा कि कुछ दूर जाकर वह
लेट गई ।उसका शरीर शांत हो गया। उसके दो बच्चे आकर उसका दूध पीने लगे । थोड़ी ही देर में वे भी
निर्जीव हो गए ।
तब पता चला कि बिल्लो रानी को किसी ने
खाने में जहर दे दिया था । उसे अपनी मृत्यु का एहसास हो गया था । इसीलिए उसके आंसू निकल रहे थे।वह अपने बच्चों को पास नही आने दे रही थी .....
ईश्वर ने उस मूक पशु की प्रार्थना सुन ली ।उसके दो बच्चों को कालोनी की बच्चा पार्टी और ममतामयी अंटियों
ने पाल लिया ।
डॉ चन्द्रवती नागेश्वर
रायपुर
9425584403
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* क़ुदरत का करिश्मा *
ऋतुराज वसन्त के स्वागत में वन उपवन में बहार आ गई,हर डाली फूलों से लद गई।कोयल की कुहुक और भोरों की गुनगुन ने खिलते फूलों का स्वागत किया।रंगबिरंगी तितलियों ने
फूलों का मुख चूम कर अपनी खुशी का इज़हार किया ।आभार देते हुए फ़ूलों ने पूछा-- -बहन इतने सुंदर - सुंदर कोमल पँख, इतना मोहक रूप तुम कहाँ से लेकर आती हो ???? पल में यहाँ पल में वहाँ उड़ जाती हो ---
तितली ने हंसकर कहा -- पेड़ों की पत्तियों पर हमारा बसेरा है माँ नन्हे नन्हें अंडो में हमें छिपा के रखती है।फिर उन अण्डों से हम इल्ली बन बाहर निकलते हैं पत्तियोंको खाकर ज्यों ज्यों बड़े होते हैं पंछी हमे खा लेते हैं ।हमें माँ की तरह बढ़ना ,उड़ना था
अपनी रक्षा के प्रभु से प्रार्थना की।हमें उन्होंने कवच में बंद कर दिया,हमारा आकार बढ़ता गया हमारा खाना,पीना
सांस लेना दूर्भर हो गया। चुपचाप प्रभु
चित्रकारी करते ।मैंने ककुन के कवच से मुक्ति के लिए खूब छटपटाया बड़ी
मुश्किल से उसेतोड़कर बाहर निकला।
फिर शिकारी झपटे ,उनसे बचने सिमटे चिपके पँखो को फैलाया फड़फड़ा कर हवा में उड़ने का प्रयास किया ।
मैं आभार हूँ माँ का,पत्तियों का,प्रभु का और अपने उस प्रयास का जिसने
मुझे तुम तक पहुँचाया।
अब तुम भी तो बताओ ये सुन्दर रंग ,कोमलता,मनमोहक ख़ुशबू कहां से लाई हो ????
तुम्हरी बताई सारी खूबियों को कई नन्हे बीजों में भर कर अपनी कोख में सबसे बचाकर रखा, अपने देह की नमी,ताप देकर जीवनरस पिलाया।उसके प्यार और सुरक्षा में रहकर अंकुरित हुआ।तो सतह फोड़कर बाहर आया,मन्द हवा ने झुलाया, सहलाया,सूरज की किरणों ने मेरा हौसला बढ़ाया,भोजन के लिए ईंधन
दिया,बादलों ने अमृत जल बरसाया,
धरती ने मुझे जकड़ कर रखा, मेरी जड़ों को धरती माँ ने जीवनरस दिया।मैं बढ़ने लगा अनेक शाखा प्रशाखाएँ निकली ।मेरा अंग प्रत्यंग कलियों के रुप में खुशी से झूम उठा।भोर की किरणें देख कलियां खिलखिलाने लगी
मैं फूल बनकर खुशबू बिखेरते हुए प्रभु के चरणों पहुंच उन्हें दिल से आभार प्रकट करता हूँ कि मेरा जीवन जग को खुशियां देता रहे----मित्र इसमे मेरा अपना कुछ भी नहीं।
कुदरत का करिश्मा है .......
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर 9425584403
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