Thursday 25 June 2020

लघुकथा -श्रृंखला ---13 नीली डायरी,हादसा,कार एक्सीडेंट लेखिका बनी

  

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..लघुकथा समारोह 22 ( द्वितीय )
आदरणीय संचालक महोदय सम्मननीय मंच एवम कथाप्रेमी मित्रों को सादर .....
  शीर्षक-- * नीली डायरी *
            इंस्पेक्टर साहब  वो"   नीली डायरी "  मिल जाये तो जो दीदी न कह सकी  वो डायरी कह देगी ,प्लीज खोजिये  -- कहते हुए सुलभा फफक फफक कर रो पड़ी वो नीली डायरी उनकी टीचर ने उन्हें विदाई केसमय माधवी दीदी को यह कहते हुए दी थी --माधवी तुम बहुत अंतर्मुखी और जरूरत से ज्यादा सीधी हो ।किसी को भी किसी काम के लिए  " नहीं कहना  " तुम्हें आता ही  नही हैं। आज से ये डायरी तुम्हारी सखी है। जब भी तुम्हें कोई
दुख ,कष्ट,परेशानी हो तो इसमें डेट डाल कर  लिख देना।
 निराशा ,तनाव,अवसाद  से उबरने में सहायक बनेगा।
                       इंस्पेक्टर साहब हम पांच बहने हैं प्राइवेट में जॉब करते हुए भी पापा ने हमे पढा लिखा कर कमाने लायक तो बना ही दिया है ।अच्छे संस्कार दिए हैं।  बस दहेज देने की हैसियत नहीं थी ।प्रणय जीजा जी तो दीदी की एक झलक पाकर ही उनपर फिदा हो गए ।बिना दहेज शादी के लिए उतावले हो गए ।लैंको पावर कम्पनी में इंजीनियर हैं । चट मंगनी पट शादी हो गई। 
                       प्रणय के पड़ोस वालों ने बताया कि वो बहुत शक्की किस्म के हैं ।दीदी को किसी से मेलजोल न बढाने की हिदायत दे रखी है। वे जब भी ड्यूटी या अधिक वक्क्त के लिए घर से बाहर जाते बाहर से ताला
लगा देते । उन्हें  देर रात की पार्टियों का बड़ा शौक है ।
हर वीकेंड में और आये दिन दीदी  को साथ लेकर पार्टी में जाया करते हैं । दीदी से मारपीट भी  करते  रहते थे शायद ।दीदी की दबी घुटी चीखें प्रायः सुनाई दे जाती थीं।
                            आखिरकार वह नीली डायरी खोज 
निकाली गई ।किन्तु कोई अहम सुराग नहीं मिल पाया।
   आधी अधूरी बातें ही लिखी गयी थी--प्रणय जी  मुझसे वो काम करने को विवश करते हैं ।जिसके लिए मेरी आत्मा गवारा नहीं करती । 
 कहते हैं -तेरे पिता ने तो कोई दहेज नहीं दिया पर   तुमसे
तो वसूली करके रहूंगा। 
 -- मैं नौकरी कर लूंगी  सारा पैसा आप रख लिया करना।
   --- सवर्णो कोआसानी से नौकरी भी तो नहीं मिलती ।
--- भगवान ने इतनी सुंदरता दी है। वो कब काम आएगी।
-- मुझ पर बहुत कर्ज चढ़ गया है। मुझे पैसों की बहुत जरूरत है।
- दाल चटनी  से हम काम चला लेंगें।
-देखो मुझे ना सुनने की आदत नहीं है ।
  , ........... मेरी बीबी हो --मैं जो चाहता हूँ करना पड़ेगा । --   मेरी तबियत ठीक नहीं है ।
  ......ये बहाने खूब जनता हूँ..............
 डॉक्टर के पास  भी नहीं जाती  हो ...
 मुझे बच्चे नहीं चाहिए .... 
उनकी  इसी बात पर मैं अड़ गई...
तबसे जीना हराम कर दिया..
 दीदी पर मिटटी तेल छिड़क कर माचिस  की जलती तीली फेंक कर  बाहर जाने दरवाजा की सिटकनी खोलने लगे होंगे।  अधखुला दरवाजा सारी कहानी कह रहा है...
दीदी  के कपड़ों से लपटें निकलने लगी उसने पीछे से कमर में हाथ डाल जीजा जी को कस के जकड़ लिया और जब तक उनमे ताकत बनी रही वो उन्हें जकड़ी रहीं धू धू करके जलती रहीं.........कहती रहीं --अबतो जहां भी जाएंगे
साथ ही जायेंगे .....

 डॉ चन्द्रावती नागेश्वर 
रायपुर छ ग 
..9425584403
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*....*.हादसा "*   *
 

सौम्या ने पूछा- सविता तेरी बेटी अदिति 12वी में पढ़ती है न ?
 --हाँ दीदी वह पढने में तेज, गाने की शौक़ीन भी है।
उमंग भरी हंसमुख स्वभाव की है  पर.....
---पर क्या ----?
पिछले कुछ महीनों से उसे एक बीमारी हो गई है तब से 
न स्कूल जाती है ,न पढ़ती -लिखती है । बस अपने कमरे में घुसी रहती है । न T V देखती हैं न किसी से कोई बात करती है ।
---- ऐसा क्या हो गया है उसे ?
 ---- डॉक्टर उस बीमारी का नाम एलोपिसिया बताते हैं।
--- शहर के बड़े से बड़े स्पेशलिस्ट  को दिखाया किन्तु
बीमारी बढ़ती ही जा रही है। 
  हम सब परेशान हैं   और अदिति तो डिप्रेशन में असग़ी है  आत्म हत्या करने की बात कहती है। दीदी हमें तो अब बहुत डर लगने लगा है ।
   -----सविता  मैं उससे बात करती हूं  ।समझाने की कोशिश करती हूं । डरो मत सब ठीक हो जाएगा ।
शाम के समय जब सविता जब पूजा कर रही थी। सौम्या
 ने अदिति का दरवाजा खोला औऱ धीरे से उसके कमरे में   
गई । अदिति को देखकर सच मे वह  भौंचक हो गई।
उसका दिल बैठ गया । उसके सिर के सारे बाल झड़ गए थे। जैसे अधेड़ आदमियों की खोपड़ी चिकनी हो जाती है वैसे ही उसकी खोपड़ी में भी चांद नजर आरहे थे अपनी उम्र से 20 साल बड़ी  नजर आ रही थी। निस्तेज चेहरा धँसी आंखे  शून्य में ताकती निग़ाहें ---- 
 जैसे ही उसने पूछा -- बेटा कैसी हो? ? ? ? ?
 आंखों से अंसुओंकी धारा बहने लगी ।
  सौम्या ने कहा --- तुम तो हमारी बहादुर बेटी हो । कभी  हिम्मत न हारने वाली। हमेशा खुश रहने वाली ।
अदिति हिचकियां ले ले कर बहुत देर तक रोती रही  ।
  जब वह रोते रोते थक गई तब  सौम्या ने  दवाओं के बारे  में पूछा , तकलीफों के बारे में पूछा फर कहा -  इतनी सी बात के लिए  हमारी बेटी घबरा गई ।
 तुम्हारे बाल ही तो गए हैं  फिर से आ जाएंगे।यही तो डॉक्टर कहते हैं। थोड़ा वक्त लगेगा । यही न???
   बेटा दुर्घटना में तो कितनों के हाथ ,कितनों के पांव '
कितनों के आंख  कट जाते है जो फिर कभी वापस नहीं आते । तुम तो भाग्यवान हो केवल बाल ही गए है  ।
सुधा चंद्रन का पांव कट गया था  फिर भी वह डांस नही छोड़ी । बिना हाथ का तैराक है न कोई...
बेटा  स्कार्फ बांधकर बाहर निकलो,जबतक बाल नही आ जाते  विग बनवा देंगे।  हादसों से हमे टूटना नही है  और अधिक  मजबूत बनना है । चलो आज मेरे साथ मंदिर 
भगवान को धन्यवाद दे आते हैं ।उसने केवल तुम्हे परखने के लिए केवल बाल ही छीना है  बाकी हर अंग सही सलामत है ।तुम कविता भी लिखती हो  ,गाती हो  रियाज शुरू करो ।  हादसों को हराना है .....
-.अदिति ने सौम्या के पांव छुए  तैयार होकर चल पड़ीं---

डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग
-942558440-----------------------*------------------*------------------*-वह एक्सीडेंट *
रागिनी अपने पति को साथ लेकर अपनी कार में घर से 12किलोमीटर दूर फिजियोथेरेपिस्ट के पास रोज शाम विगत कई महीने से ले जाया करती है।उसके पति  को न्यूरो प्रॉब्लम है ।उनके हाथों की उंगलियां , कोहनी,कंधे काम नहीं करते पैरों की उंगलियों  ,घुटनों का भी वही हाल है ,   विशेषज्ञ का इलाज चल रहा है।  10 जनवरी 2010 को रात 8 बजे  वह फिजियोथेरेपिस्ट के पास से लौटते वक्क्त  उसकी कार मुख्य चौक के पास   यू टर्न लेते वक्त रोड डिवाइडर से 
टकरा कर उलट गई। थोड़ी ही देर में भीड़ जमा हो गई।
 लोगों ने मिलकर कार को सीधा किया , दोनो पति पत्नी को कार से निकाल कर  किनारे पर लिटाया पानी दिया।
 भगवान का शुक्र कि दोनो ही सही सलामत पूरे होशो हवाश में थे । घर में पति -पत्नी ही रहते थे। एम्बुलेंस केलिए फोन करने फोन खोजा गया ।जो कार सीट पर होना चाहिए था पर भीड़ में से किसी ने उड़ा लिया । पर्स में मोबाइल, कैश पैसे, घर की चाबी,ड्राइविंग लाइसेंस  कुछ जरूरी कागजात थे। भीड़ छँटने लगी  दोनो असहाय लाचार अपने घर से 8 किलोमीटर दूर रोड किनारे  बैठे सोच रहे थे ,इतने में एक सत्रह साल का किशोर वहां आया उसने उन्हें पहचाना।
 अपने पिता को फोन कर बुलाया  ,उन्हें हॉस्पिटल पहुचाया। उन्हें जादा चोट नहीं लगी थी ।प्रथमोपचार के बाद घर जाने की अनुमति देदी गई । उन्होंने घर तक पहुंचाया ,ताला तोड़ा उनके खाने पीने की व्यवस्था की। 
         रागिनी हमारी पड़ोसन है । उनसे ही सारी घटना की जानकारी हुई।   उस कार एक्सीडेंट ने उस किशोर के रूप में देवदूत के दर्शन कराए ।  ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास --दृढ़तम बनाया ........
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 

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शीर्षक -बच्चों ने बनाया लेखिका *
        जय श्री वर्मा आज बहुत खुश है । उसकी पुत्र वधू
अनन्या के प्रयासों से उसकी पहली पुस्तक * बन्द द्वार *
का विमोचन होने जा रहा है। जिले की  प्रख्यात लेखिका
निरुपमा शर्मा  मुख्य अतिथि बनकर आने वाली हैं।
 राज्य के प्रतिष्ठित  अखबार--  " नवभारत "के वरिष्ठ सम्पादक रामगोपाल शर्मा  विशिष्ट अतिथि के अलावा नगर निगम आयुक्त आदरणीय शिवदयाल जी की उपस्थिति मंच पर रहेगी ।नगर के साहित्यप्रेमी लोग काफी संख्या में आये हुये हैं
            स्वागत सत्कार के बाद संचालक महोदय ने लेखिका को स्वयं अपना परिचय    देने कहा --जयश्री जी ने सबका अभिवादन और स्वागत करते हुए सिर्फ इतना कहा कि मैं कोई बड़ी लेखिका नहीं हूं  यह तो आप सबका प्यार और सहयोग है। मेरा लेखन आप सबको रुचिकर लगा । मैं नवभारत के सम्पादक  जी की  शुक्र गुजार हूँ  जिन्होंने  सुरुचि  साप्ताहिक स्तम्भ में  मेरी कहानियों का नियमित  प्रकाशन कर  मुझे लोकप्रियता दी है ।
        विमोचन के पश्चात  नवभारत सम्पादक जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि  -विगत 5 वर्षों से जयश्री जी की
शिक्षाप्रद ,प्रेरक ,सामयिक रुचिकर कहानियां  नियमित प्रकाशित की जा रहीं है  तब से उनसे रूबरू होने  की चाहत थी । 
               प्रेस रिपोर्टरों ने उनका साक्षात्कार लेते हुए पूछा कि - आपको लेखन की प्रेरणा कहां से मिली--
  ----बचपन से कथा कहानी  पढ़ते पढ़ते  लिखने का शौक हो गया। बी ए के बाद शादी  उसके बाद गृहस्थी के काम और बच्चों के लालन-पालन में  लिखना पढ़ना भी छूट गया। बच्चे  10 वी -12वी बोर्ड में पहुंचे तो मैंने सोचा कि - अब बोर्ड की  तैयारीमें  बच्चों का साथ दिया जाय। 
मैं जानती थी कि रात का सन्नाटा हो,सब चैन की नींद ले रहें हो ,सामने कोर्स की मोटी किताबें खुली हो तो न चाहते हुए भी नींदआती ही है मैंने ठान लिया  कि -बच्चो के साथ
मुझे भी जागकर उनका हौसला बढाना है।मैं प्रश्नोतर करवाती  जब तक वो याद करते मैं कागज कलम लेकर सामयिक विषयों पर लिखती रहती। मेरी सहेली एक दिन  मेरे घर आई ।मेरी कहानी वाली डायरी देखी और नवभारत में भेजने की सलाह दी । जब मैं 8 -10 कहानी लिख चुकी थी।जब नवभारत पेपर में छपने लगा तो हौसला बढ़ा।
    -- ---- -----   इस तरह इन बच्चों की पढ़ाई ने मुझे लेखिका बना दिया । अखबार की सारी कतरन मैने सम्हालकर रखा था।  जिसे मेरी पुत्र वधू ने संकलित कर प्रकाशित करवा दिया -----
डॉ चन्द्रावती नागेश्वर
रायपुर छ ग 








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